‘ये सेक्युलरिज्म के खिलाफ’: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित किया, पूछा – ये शिक्षा मंत्रालय की जगह अल्पसंख्यक विभाग के पास क्यों?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट को खत्म कर दिया है। हाईकोर्ट ने इसे धर्मनिरपेक्षता विरोधी और असंवैधानिक भी बताया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि मदरसे की शिक्षा सेक्युलरिज्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है और सरकार को ये कार्यान्वित करना होगा कि मदरसों में मजहबी शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों को औपचारिक शिक्षा पद्धति में दाखिल करें। जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने इसके साथ ही यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
अंशुमान सिंह राठौड़ नामक शख्स ने इस संबंध में याचिका दायर की थी। उन्होंने इस एक्ट की कानूनी वैधता को चुनौती दी थी। इसके साथ-साथ उन्होंने निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार संशोधन अधिनियम, 2012 के कुछ प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई थी। इससे पहले भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकारों से पूछा था कि मदरसा बोर्ड को शिक्षा विभाग की जगह अल्पसंख्यक विभाग द्वारा क्यों संचालित किया जा रहा है।
इसके साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों पर पारदर्शिता पर भी जोर दिया। याचिका में पूछा गया था कि क्या मदरसों का उद्देश्य शिक्षा देना है या फिर मजहबी शिक्षा देना? साथ ही सवाल किया गया था कि जब संविधान सेक्युलर है तो फिर क्या सिर्फ एक खास मजहब के व्यक्ति को ही शिक्षा बोर्ड में नियुक्त किया जा सकता है? सुझाव दिया गया था कि शिक्षा से संबंधित बोर्ड में विद्वान लोगों की नियुक्ति अलग-अलग क्षेत्रों में उनकी दक्षता को देखते हुए की जानी चाहिए, बिना मजहब देखे हुए।
याचिका में इस तरफ भी ध्यान दिलाया गया था कि जैन, सिख ईसाई इत्यादि मजहबों से संबंधित सभी शैक्षिक संस्थानों को शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत संचालित किया जाता है, जबकि मदरसों को अल्पसंख्यक विभाग के तहत। इससे शिक्षा विशेषज्ञों और शिक्षा नीतियों के लाभ से मदरसे के छात्र वंचित रह जाते हैं। बता दें कि कई आतंकी गतिविधियों में भी देवबंद के दारुल उलूम जैसे मदरसों का नाम आता है। मदरसों में शिक्षा के आधुनिकीकरण पर योगी सरकार भी जोर दे रही है।