नई दिल्ली। दिल्ली दंगों पर आधारित किताब ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ का प्रकाशन ब्लूम्सबरी ने रोक दिया था। ऐसा करने के लिए वामपंथी, लिबरल और इस्लामी समूह ने सबसे ज़्यादा दबाव बनाया था। इनके अलावा एक नाम खूब चर्चा में रहा। वह है स्कॉटिश इतिहासकार और लेखक विलियम डेलरिम्पल का। पुस्तक का प्रकाशन रुकवाने में इस कथिम इतिहासकार की मुख्य भूमिका बताई जा रही। हालॉंकि यह पहला मौका नहीं है जब विलियम ने अपनी ज़हरीली मानसिकता का परिचय दिया हो।
विलियम डेलरिम्पल का मुग़लों से लगाव कभी छिपा नहीं रहा। यही वजह है कि मुग़लों का महिमामंडन करते हुए उसने दो पुस्तकें लिखी, ‘द लास्ट मुग़ल’ और व्हाइट मुग़ल।’ इतिहास गवाह है कि मुग़ल शासकों से ज्यादा मानव सभ्यता और मानव अधिकारों का नुकसान किसी और ने नहीं किया। डेलरिम्पल ने अपनी किताब में सबसे ज़्यादा औरंगज़ेब की तारीफ़ की है। उसने औरंगज़ेब को जादुई व्यक्तित्व वाला बताया है।
उसने अपनी किताब में लिखा है, “औरंगज़ेब का शुरुआती रवैया भले कैसा भी रहा हो लेकिन अंत में उसे अपनी भूल का पछतावा हुआ था। उसने अपने अंतिम पत्रों में इन बातों का ज़िक्र किया है कि उसने लोगों को जितना नुकसान पहुँचाया, जितनी तोड़-फोड़ और लूट-पाट की उसे सारी बातों का पछतावा था।” औरंगज़ेब की असलियत पर अपने झूठ का पर्दा डालते हुए डेलरिम्पल ने ऐसी कुछ और बातें लिखी हैं जो हैरान करने वाली हैं।
सभी जानते हैं कि औरंगज़ेब ने कितने मंदिरों का विध्वंस किया। लेकिन इन वास्तविक तथ्यों को दरकिनार करते हुए डेलरिम्पल ने लिखा कि औरंगज़ेब ने भारत हिंदू धर्म के मंदिरों में जितना दान किया वह उल्लेखनीय था। एक ऐसा मुग़ल शासक जिसने राज करने के लिए अपने दो भाइयों को मरवा दिया, अपने पिता को कारावास में कैद करवा दिया, वह डेलरिम्पल जैसे इतिहासकारों की नज़र में दानवीर, दयालु और जादुई है।
इसके अलावा प्रीठा ने भी डेलरिम्पल के व्यवहार के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि डेलरिम्पल के आसपास रहना बिलकुल आसान नहीं है। उन्होंने पूरी घटना का ज़िक्र करते हुए बताया था कि कैसे विलियम डेलरिम्पल ने उन्हें फेसबुक पर मित्रता निवेदन भेजा। वह इतने पर ही नहीं रुका और तारीफ़ करते हुए संदेश में भद्दे स्माइली का इस्तेमाल करने लगा। प्रीठा ने बताया कि वह इन बातों से असहज हो ही रही थीं कि डेलरिम्पल ने उनसे डिनर और कॉफ़ी के लिए भी पूछ लिया।
मिस कांडपाल ने भी कहा था कि जैसा प्रीठा के साथ हुआ कुछ वैसा ही मेरे साथ भी हुआ। विलियम ने मुझसे भी डिनर के लिए पूछा था। इसके अलावा लेखक और राजनीतिक विश्लेषक शुभ्रष्ठा ने भी इस बारे में जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था शुक्र है मैं इस डिनर से बच गई और इसके बाद उन्होंने विलियम डेलरिम्पल के सन्देश का स्क्रीनशॉट साझा किया था।
ठीक ऐसे ही साल 2008 में एक साक्षात्कार के दौरान विलियम डेलरिम्पल ने काफी ज़हर उगला था। उसने कहा था कि लोग सीमाओं के पार एक दूसरे से मिलने के लिए आते-जाते रहेंगे। ठीक ऐसा ही जिन्ना ने भी इन दो देशों के बीच बर्लिन की दीवार जैसा कुछ नहीं सोचा था। जिन्ना ने सोचा था कि उसका घर मालाबार की घाटियों में होगा और सप्ताह का अंत बॉम्बे में बीतेगा। मैं इस बात के लिए पूरी तरह आशावादी हूँ, पाकिस्तान का मध्यम वर्ग तरक्की कर ही रहा है।
इस साक्षात्कार के प्रकाशित होने के कुछ महीने बाद ही मुंबई के ताज होटल पर पाकिस्तान के आतंकवादियों ने हमला कर दिया था। जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गई थी। इसके अलावा डेलरिम्पल ने तहलका पत्रिका को एक साक्षात्कार दिया था। इसमें उसने कहा था, “मैंने पाकिस्तान को 20 साल तक कवर किया है और मैं वहाँ के लोगों के बारे में पूरी तरह गलत था। वहाँ के लोग मेरी अपेक्षा से कहीं ज़्यादा अच्छे हैं और मैं उनके लिए आशावादी हूँ।”
खुद को उदारवादी साबित करने की होड़ में विलियम डेलरिम्पल ने अपनी किताब ‘The Anarchy: The Relentless Rise of the East India Company’ में समलैंगिकता पर विचित्र श्रेणी के विचार रखे हैं। डेलरिम्पल लिखता है कि इस्लाम के अभिजात्य वर्ग में उच्च और निम्न वर्ग के लोगों के बीच समलैंगिक संबंध स्वीकार्य थे। जबकि सच यह था कि वह समलैंगिक संबंध नहीं बल्कि नाबालिग और वयस्क के बीच संबंधों की घंटनाएँ थीं। यानी डेलरिम्पल बुद्धिजीवी बनने की दौड़ में अप्राकृतिक कृत्यों को सही बता रहा था।
इतना ही नहीं खुद को इतिहासकार बताने वाला डेलरिम्पल इतिहास से जुड़े तथ्यों में भी गलती करता है। इस संबंध में लेखक अनीश गोखले ने ट्वीट कर जानकारी दी थी। उन्होंने अपनी किताब में नारायणराव पेशवा को माधवराव पेशवा से मिला दिया था। इसके अलावा झूठा दावा भी किया कि बंगाल की लड़ाई में मराठाओं की हार हुई थी।
खुद को इतिहासकार, क्यूरेटर, ब्रॉडकास्टर और आलोचक बताने वाले विलियम डेलरिम्पल ने अभी तक कई किताबें लिखी हैं। जिसमें साल 2009 में आई ‘नाइन लाइव्स’ उल्लेखनीय है, जो अलग-अलग पंथ और समुदाय से आने वाले साधुओं पर आधारित है। डेलरिम्पल ने दो टेलीवीज़न सीरीज़ भी लिखी हैं स्टोन्स ऑफ़ द राज और इंडियन जर्नीज़। कुल मिला कर उसने भारत के आधुनिक इतिहास को कई बार नए सिरे से बताने की कोशिश की है। लेकिन हर बार कही गई बात में विचारधारा ऊपर हो जाती है और वास्तविकता नीचे। मुग़लों पर लिखी गई विलियम डेलरिम्पल की पुस्तकें इस बात का सबसे सटीक उदाहरण हैं। जिस तरह अपनी किताब में उन्होंने औरंगज़ेब को अच्छा शासक बताया, उससे लेखक की असल मंशा पूरी तरह साफ़ हो जाती है।
ठीक वैसा ही कुछ नज़र आ रहा है दिल्ली दंगों पर आधारित किताब दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी के मामले में। ख़बरों में बात यहाँ तक सामने आई है कि किताब के प्रकाशन पर रोक उसके बिना संभव ही नहीं होती। कई लोगों ने ट्विटर पर सार्वजनिक रूप से इसके लिए विलियम डेलरिम्पल का आभार तक जताया है।
इतना ही नहीं वह इस किताब का प्रकाशन रुकवाने के लिए काफ़ी समय से लगा हुआ था। इसके लिए उससे कई वामपंथी लेखकों से निवेदन भी किया था। ऐसे में इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है कि डेलरिम्पल ने भारतीय आधुनिक इतिहास को केंद्र में रख कर जितना कुछ लिखा है, वह कितना विश्वसनीय और प्रासंगिक होगा।