सीएए विरोध के नाम पर दिल्ली के शाहीन बाग में शुरू हुआ राजनीतिक धरना करीब 100 दिन बाद दिल्ली पुलिस ने हटा दिया। इसके बाद पुलिस-प्रशासन ने भले ही राहत की साँस ली हो, लेकिन वामियों और खबर के नाम पर प्रोपेगेंडा चलाने वाले कुछ लोगों के पेट में दर्द शुरू हो गया है। यहाँ तक कि ‘द लायर’ जैसे ग्रुप के लोग ‘इस मौके का इस्तेमाल कर’ शाहीन बाग धरने के हटने पर आँसू बहा रहे हैं। प्रोपेगेंडा पोर्टल द वायर की कथित पत्रकार आरफा ख़ानम ने एक विडियो वीडियो जारी कर आखिरी में प्रार्थना की कि मैं चाहती हूँ कि जल्द ही देशभर में सीएए के खिलाफ आंदोलन शुरू हो और यह तब तक जारी रहे जब तक कि मोदी सरकार इस काले कानून को वापस नहीं ले लेती।
पहला वीडियो #ShaheenBagh #ShaheenBaghEmpty शाहीन बाग खाली कराया गया, टेंट हटाया गया, कुछ लोगो ने विरोध किया, 5 लोग हिरासत में लिए गए। pic.twitter.com/FYrWJU55DK
— Vikas Bhadauria (ABP News) (@vikasbhaABP) March 24, 2020
देश में कोरोना महामारी की बढ़ती रफ्तार के बाद दिल्ली पुलिस ने शाहीन बाग की महिलाओं को पहले तो स्थान खाली करने की अपील की। इसके बाद भी धरना स्थल खाली नहीं करने पर पुलिस ने जगह को खाली करा दिया था। मौके से 10 प्रदर्शनकारियों को भी गिरफ्तार किया गया था, जिनमें कुछ महिलाएँ भी शामिल थीं। उसी दिन यानी की 24 मार्च को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के संबोधन में रात 12 बजे से लॉकडाउन की घोषणा की थी।
इस मौके का इस्तेमाल करते हुए आरफा ख़ानम ने एक विडियो जारी की। कहा कि सीएए के खिलाफ दर्जनों महिलाओं ने जो धरना शुरू किया था, उसमें पहले सैकड़ों फिर हजारों और बाद में तो लाखों की संख्या में महिलाओं ने हिस्सा लिया। सीएए को स्वीकार नहीं करते हुए लोकतांत्रिक तरीके से सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की। इसे बाद में दिल्ली पुलिस ने जबरन अलोकतांत्रिक तरीके से हटा दिया। हालाँकि ख़ानम ने यह नहीं बताया कि जिस धरने में कथित तौर पर हजारों, लाखों की भीड़ जुटती थी वह दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद दर्जनों में क्यों सिमट गई? दिल्ली चुनावों के बाद शाहीन बाग लगातार क्यों दम तोड़ता चला गया? इस बात का खुलासा जब इंडिया टीवी की पत्रकार ने लाइव कवरेज में की तो उन पर वहाँ मौजूद प्रदर्शनकारी भड़क गईं थी।
चौंकाने वाली बात यह कि जो बीमारी देश में 19 से अधिक और पूरे विश्व में 27, 000 से अधिक लोगों की जान ले चुकी है, जिस महामारी से आज देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व जूझ रहा है और लॉकडाउन जैसे कठिन फैसलों को लेने के लिए मजबूर है, ऐसी बीमारी आरफा को शाहीन बाग हटाने के लिए एक बहाना नजर आई। उसके मुताबिक सरकार ने कोरोना का बहाना लेकर शाहीन बाग की महिलाओं को पुलिस की मदद से जबरन और अलोकतांत्रिक तरीके से हटा दिया। प्रदर्शनकारी महिलाओं को पीड़ित साबित करते हुए कहा कि जिन महिलाओं ने जनता कर्फ्यू का पूरी तरह से पालन किया, उनके प्रदर्शन का गलत तरीके से अंत कर दिया गया।
आरफा ने विडियो में एक कथित प्रत्यक्षदर्शी को पेश किया। उसने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा कि पुलिस ने धरना स्थल को खाली कराने के दौरान महिलाओं के साथ बदसलूकी की। उस निशानी यानी टेंट को भी हटा दिया, जिसके नीचे भारत के झंडे लगे हुए थे। जिसके नीचे लोकतंत्र की बातें होती थीं। इस पर आरफा ने कहा कि प्रदर्शन ने कई सारे इतिहास बनाए। लेकिन आरफा ने यह नहीं बताया कि कितनी बार धरने में जिन्ना वाली आजादी माँगी गई, शरजील जैसे देशद्रोहियों को समर्थन मिला, उल्टा तिरंगा करके महिला को हिजाब पहनाया गया और स्वास्तिक को उल्टा कर दिखाया गया वगैरह। इसके बाद आरफा ने तीन महीनों से धरने पर बैठी महिलाओं को उठाने के बहाने कुछ आँसू बहाए, जब कोई उन्हें पोंछने वाला दिखाई नहीं दिया तो खुद ही पोंछ कर फिर से शाहीन बाग को सलाम करने लगी।
आरफा ने आगे अल्पसंख्यकों का हितैषी बनने की कोशिश करते हुए कहा कि धरने ने पिछले पाँच-छ सालों से बहुसंख्यकवाद की हो रही राजनीति को तोड़ने की एक बेहतर और सफल कोशिश की। इतना ही नहीं शाहीन बाग ने पहली बार मोदी सरकार को जनता की तरफ से बेहतर पुश किया। आरफा ने अपना दर्द बयाँ करते हुए कहा कि तीन महीने से कड़कड़ाती ठंड में बैठी प्रदर्शनकारी महिलाओं से देश के प्रधानमंत्री ने बात तक करना उचित नहीं समझा, जो ट्रिपल तलाक जैसे कानून लाकर मुस्लिम महिलाओं के हमदर्द बनते हैं। आरफा को तीन महीने से प्रदर्शन कर रही महिलाओं का दर्द तो दिखाई दे गया, लेकिन 30 साल से अपने ही देश में शरणार्थी बने कश्मीरी पंडितों का दर्द आज तक दिखाई नहीं दिया, खैर!
आरफा ने आगे अपनी मूर्खता के साथ चाटुकारिता का परिचय देते हुए कहा कि ये जो सीएए का काला कानून है यह देश को बाँटने वाला कानून है। इससे संविधान को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। सरकार को तानाशाह करार देते हुए और नीचता की सारी हदों को पार करते हुए कहा कि ऐसी सरकारें आवाजों को दबाने के लिए प्राकृतिक आपदाओं का इस्तेमाल करती है। आखिर में आरफा ने कहा कि शाहीन बाग के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। साथ ही भगवान से प्रार्थना की कि जल्द ही भारत इस महामारी से उभरे और वह चाहती हैं कि फिर से सीएए, एनआरसी के खिलाफ देशभर में आंदोलन शुरू हो। यह तब तक जारी रहे जब तक कि सरकार इसे वापस नहीं ले लेती।
आश्चर्य की बात यह कि आरफा ने एक बार भी इस बात का जिक्र नहीं किया कि प्रदर्शनकारी महिलाओं ने 100 दिनों तक बिना किसी इजाजत के सड़क जाम कर रखा था। इसके कारण महीनों तक नोएडा आने-जाने वाले लोगों ने भीषण जाम का सामना किया। यहाँ तक कि इस बीच जाम में फँसने से जान भी गई।