“हालाँकि चीन के वुहान शहर से कोरोना संक्रमण का पहला मरीज सामने आया था, लेकिन यह इस बात का साक्ष्य नहीं माना जा सकता कि चीन ही कोरोना संक्रमण COVID-19 का स्रोत है।”
उपरोक्त प्रेस रिलीज दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने बुधवार की शाम को जारी की। यह प्रेस रिलीज इस दृष्टिकोण की पुष्टि करता है कि जहाँ एक तरफ सम्पूर्ण विश्व कोरोना महामारी से जीवन-मृत्यु के संघर्ष में उलझा है, वहीं चीन अपने हुबेई प्रॉविन्स से प्रतिबंधों को ढिला कर रहा है, जिससे अब कोरोना संक्रमण के नए मामले अपेक्षाकृत कम संख्या में सामने आ रहे हैं। इसके साथ ही बीजिंग अपने इस पाप से बचने के लिए, एक नैरेटिव गढ़ने की फ़िराक में जुटा हुआ है। इसके लिए वह पूरी दुनिया में एक आक्रामक प्रोपेगेंडा चला रहा है।
चीनी राष्ट्रपति के वुहान दौरे के बाद से ही चीनी प्रोपेगेंडा चैनल इस बात पर लगातार जोर देते रहे हैं कि कोरोना वायरस शायद चीन में पैदा ही नहीं हुआ। 27 फरवरी को चीन के प्रसिद्ध epidemiologist (यानी बीमारियों के पैदा होने, उनके उपचार, और रोकथाम जैसी मेडिसिन की शाखा से जुड़े) झॉंग नानशान जो अभी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं, कहते हैं – “हालाँकि SARS-CoV-2 नामक बीमारी सबसे पहले चीन में ही खोजी गई थी लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह पैदा भी चीन में हुई।”
यही लाइन दक्षिण अफ्रीका में चीन के राजदूत, लींग सॉन्गतियन ने भी 7 मार्च को अपने ट्विटर पोस्ट के जरिए दोहराई। चीनी विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता लीजियन झाओ ने 12 मार्च को किए एक ट्वीट में वुहान में फैले इस घातक वायरस संक्रमण के लिए सीधे-सीधे अमेरिकी आर्मी को जिम्मेदार ठहराया। उसने अपने ट्वीट में लिखा, “यह हो सकता है कि अमेरिकी आर्मी इस कोरोना महामारी को वुहान लाई हो।” उसने अपने ट्वीट में यह भी दावा किया कि अमेरिका को इस संबंध में चीन को स्पष्टीकरण देना चाहिए। झाओ की यह टिप्पणी, अमेरिका के सेंट फैट्रिक स्थित संक्रामक बीमारी से संबंधित लेबोरेट्री के कामकाज को अचानक से ठप्प किए जाने के संबंध में देखी जा रही है। मैरीलैंड स्थित यह लेबोरेट्री जुलाई 2019 में अचानक से तब बंद कर दी गई थी जब अमेरिका के ‘डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन सेंटर’ ने इस लैब को बंद करने का आदेश दिया था।
चीनी प्रोपेगेंडा मशीनरी इस कोरोना महामारी के उद्भव को लेकर अपने नैरेटिव को गढ़ने के लिए पिछले साल अक्टूबर में अमेरिका में हुए ‘इवेंट 201 पैंडेमिक रिहर्सल’ पर भी ऊँगली उठाने में लगी है। इस इवेंट के समय ही वुहान में हुए विश्व मिलिट्री गेम्स में अमेरिकी सेना की तरफ से भी 300 सैनिकों का एक दल गया था। चीनी प्रोपेगेंडा मशीनरी अपने नैरेटिव को सेट करने के लिए इन दोनों को एक साथ मिला कर ‘कच्चे माल’ की तरह प्रयोग करने में लगी हुई है। इसके साथ ही कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने विश्व भर में स्थित अपने दूतावासों को यह संदेश भेजा हुआ है कि वो सभी चीन के प्रति झुकाव रखने वालों को इस बात के लिए राजी कर लें कि वे कभी इस बात का जिक्र न करें कि कोरोना वायरस का उद्भव चीन में हुआ है। साथ ही इस बात पर जोर दें कि इस वायरस की उत्पत्ति अभी अज्ञात है।
मंगलवार को बीजिंग ने भारत से प्रार्थना की कि वह इस नोबल वायरस के संबंध में चीन का नाम न ले क्योंकि इससे चीन की छवि खराब होगी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में बाधा पड़ेगी। इसके अलावा चीन अब उन देशों को मदद भी कर रहा है, जो इस कोरोना महामारी से बदहाल हैं। उसने अब तक अपनी कई मेडिकल टीमों को ईरान, इराक और इटली में इस महामारी से निपटने के लिए भेजा है। जब इटली की मदद के लिए कोई यूरोपीय देश सामने नहीं आया, चीन ने 31 टन मेडिकल सामग्री इटली भेजी। इसमें 1000 वेंटिलेटर्स, 2 मिलियन मास्क, 1 लाख रेस्पिरेटर्स, 20000 बचाव सूट और 50000 टेस्ट किट शामिल हैं। चीन ने 250000 मास्क और अपनी मेडिकल टीमों को ईरान भी भेजा। सर्बिया के राष्ट्रपति ने तो यूरोपीय सहयोग और बंधुत्व को महज एक ‘दिवास्वप्न’ करार देते हुए कहा कि सिर्फ चीन ही था, जिसने उनकी मदद की।
चीन को अच्छे से पता है कि यदि वह इस कोरोना महामारी के दौरान विश्व स्तर पर यह संदेश देने में कामयाब हो गया कि उसने इस संकट के समय वैश्विक स्तर पर एक सकारात्मक भूमिका निभाई है जो कि ट्रम्प का अमेरिका नहीं कर सका, तो ऐसे में 21 वीं सदी के वैश्विक नेता की दौड़ में चीन बाकियों से कहीं आगे खड़ा हो सकता है। इस प्रकार जहाँ एक तरफ चीनी प्रोपेगेंडा मशीनरी इस वायरस के उद्भव में चीन का नाम न लिया जाए – इस बात के लिए पूरी मशक्क्त से लगी हुई है, वहीं दूसरी तरफ चीन ने इस पर कितनी जल्दी काबू पाया और कैसे अब वह अपनी इस काबिलियत का फायदा दुनिया भर के पीड़ित देशों तक पहुँचा रहा है, इस नैरेटिव को सेट कर रहा है। जहाँ पूरी दुनिया में रोजाना हजारों मौतें इस घातक महामारी के चलते हो रही, वहीं चीन इस दुर्भाग्यपूर्ण समय को खुद के लिए एक अवसर के तौर पर देख रहा है, जो उसे 21वीं सदी की और मान्य वैश्विक नेता के तौर पर स्थापित कर सकता है। चीन के इस पहलू को वैश्विक शक्तियों तथा चीन के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी भारत को बिल्कुल नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।