अभिरंजन कुमार
याद कीजिए कि सीएए और एनआरसी के निराधार विरोध की शुरुआत हिंसा से हुई थी। चारों तरफ़ “ला इलाही इल्लल्लाह” और “बस नाम रहेगा अल्लाह का” जैसे नारे गूँज रहे थे। हालांकि इन साम्प्रदायिक नारों और नज़्मों को भी सेक्युलरिज्म का अंडरवियर पहनाने की कोशिशें खूब हुईं, लेकिन चीज़ें स्पष्ट थीं, इसलिए लोग एक्सपोज हो गए।
फिर इन लोगों ने तय किया कि हाथ में तिरंगा उठा लो और गाल पर तिरंगा बना लो, हिंदुस्तानी तो मूर्ख हैं, भरम में आ जाएंगे। लेकिन चूँकि तिरंगा उठाने वाले लोग भी वही थे, जो इससे पहले हिंसा कर रहे थे और साम्प्रदायिक नारे लगा रहे थे, इसलिए कितना सब्र कर पाते बेचारे? बैकग्राउंड में तिरंगे को रखकर जल्दी ही फिर से हिंदुस्तान को तोड़ने की बात करने लगे।
इस प्रकार जब फिर से एक्सपोज हुए तो कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि इस्लामिक नारे मत लगाओ और समावेशी ट्रिक अपनाओ। लेकिन भैया मेरे, इस देश में अन्य लोग क्या आपसे कम इंटेलीजेंट हैं कि आपकी ट्रिक और आपके मंसूबे नहीं समझते? जो लोग आपके एजेंडे से सहमत ही नहीं हैं, उन्हें क्या पागल कुत्ते ने काटा है कि आपके साथ समाविष्ट हो जाएंगे?
फिर, जो लोग CAA और NRC का जबरदस्ती विरोध करने में जुटे हैं, वे पहले से आइडेंटिफाइड हैं। वे कोई भी चोला या झंडा या नारा धारण कर लें, उन्हें एक्सपोज होते देर नहीं लगेगी। न तो उधर सभी लोग मोहम्मद गोरी हो सकते हैं, न इधर सभी लोग जयचंद हो सकते हैं। फिर क्यों फालतू की उम्मीद लगाए बैठे हो कि चोला, झंडा या नारा बदल लेने से लोग आपके साथ समाविष्ट हो जाएंगे?
अब देखिए न। इस साजिश के लिए शुरू से ही जिस पीएफआई का नाम लिया जा रहा था, उसके 73 बैंक एकाउंट का पता चला है, जिसमें महज कुछ ही दिनों के भीतर करीब 125 करोड़ रुपये जमा हो गए और उतनी ही तेजी से निकाल भी लिए गए। सुनने में आ रहा है कि मालामाल होने वालों में श्रीमान कपिल सिब्बल भी हैं।
मैं तो पहले दिन से कह रहा था कि आम मुसलमान भाई-बहन बदनामी कमाएंगे और उनके ठेकेदार माल कमाएंगे। जब तक मुसलमान धर्म के नाम पर उल्लू बनते रहेंगे, उनके ठेकेदार अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे।
सच तो यह है कि इनके ठेकेदारों की सारी उम्मीदें इस बात पर टिकी थीं कि किसी भी तरह से मोदी सरकार को उकसाकर आम प्रदर्शनकारियों पर लाठी-गोली चलवा दी जाए, ताकि कुछ बेगुनाह मारे जाएं, ताकि वे कह सकें कि देख लो CAA और NRC का विरोध कितना तीव्र है कि डरी हुई सरकार ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर लाठी-गोली चलवा दी, और फिर उनकी नफरत और प्रोपगंडा की दुकान चल निकले।
यानी मुसलमानों के ठेकेदार उनके खून से होली खेलना चाहते थे, लेकिन सौभाग्य से सरकार की खुफिया एजेंसियों को उनके मंसूबे अच्छी तरह मालूम हो गए थे, इसलिए पुलिस को अपार धैर्य और संयम दिखाने का निर्देश दिया गया था। नतीजा सामने है। सांप भी मरने के कगार पर है और लाठी भी नहीं भांजनी पड़ी।
अब अपनी इज्जत बचाने के लिए ये सांप (अलगाववादी, साम्प्रदायिक और देशविरोधी लोग) भले दिल्ली चुनाव तक सीएए और एनआरसी का विरोध खींच ले जाएं, लेकिन सरकार ने जो आईना उनके सामने रख दिया है, उसपर अपने फन पटक-पटक कर वे खुद ही चोटिल हो रहे हैं।
इसलिए, देश के शांतिप्रिय हिन्दू-मुसलमान सभी तसल्ली रखें। भारत के सभी नागरिक महफूज़ रहेंगे और एक-एक करके सभी घुसपैठिए निकाले जाएंगे। भारतवर्ष में देर है, अंधेर नहीं। वो सुबह जल्द ही आएगी, जब नया उजाला फैलेगा।