प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक मामले में कहा है कि किसी भी धर्म में पूजा-अर्चना के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल का उल्लेख नहीं है. कोई भी धर्म ये आदेश या उपदेश नहीं देता कि तेज आवाज वाले यंत्रों से ही प्रार्थना की जाए. लाउडस्पीकर पर अगर रोक हटा ली गई तो क्षेत्र में असंतुलन हो सकता है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने जौनपुर (Jaunpur) जिले के शाहगंज (Shahganj) के बद्दोपुर गांव में दो मस्जिदों में अजान के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के लिए दाखिल की गई याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि जिला प्रशासन के निर्णय पर रोक लगाना ठीक नहीं है. इसके साथ ही न्यायमूर्ति पंकज मिताल और न्यायमूर्ति वीसी दीक्षित की पीठ ने जौनपुर के मसरूर अहमद द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी.
दो मस्जिदों पर लाउडस्पीकर का उपयोग करने की मांगी थी अनुमति
याचिकाकर्ता ने इन दो मस्जिदों पर लाउडस्पीकर का उपयोग करने की अनुमति मांगी थी. क्षेत्राधिकारी ने सात मार्च, 2019 को दोनों मस्जिदों के इलाके का निरीक्षण किया था और अपनी रिपोर्ट में कहा कि वहां हिंदुओं और मुस्लिमों की मिश्रित आबादी है और यदि किसी पक्ष को साउंड एंप्लीफायर का उपयोग करने की अनुमति दी जाती है तो इससे दोनों समूहों के बीच तनाव बढ़ेगा, जिससे इलाके में शांति भंग होने की आशंका है.
इससे गांव के दो धार्मिक समूहों के बीच पैदा होगी दुर्भावना
जौनपुर के शाहगंज के एसडीएम ने 12 जून, 2019 को इस आधार पर लाउडस्पीकर बजाने की अनुमति देने से मना कर दिया था कि इससे गांव के दो धार्मिक समूहों के बीच दुर्भावना पैदा होगी और इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है क्योंकि उस इलाके में मिली-जुली आबादी है.
मस्जिद में लाउडस्पीकर का उपयोग करने की अनुमति नहीं देना सही है
एसडीएम के आदेश पर गौर करने के बाद पीठ ने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं को न केवल ध्वनि प्रदूषण के कारण से बल्कि इलाके में शांति एवं सौहार्द बनाए रखने के लिए मस्जिद में लाउडस्पीकर का उपयोग करने की अनुमति नहीं देना सही है.’ अदालत ने ध्वनि प्रदूषण और आम जनता द्वारा इसे नजरअंदाज किए जाने का जिक्र करते हुए कहा, ‘भारत में लोगों को इस बात का एहसास नहीं है कि ध्वनि अपने आप में एक तरह का प्रदूषण है. वे स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभावों के प्रति पूरी तरह जागरूक नहीं हैं.