नई दिल्ली। अयोध्या विवाद मामले में मध्यस्थता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज जारी (बुधवार को) सुनवाई के दौरान हिंदू पक्षकार ने मध्यस्थता से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में हिन्दू महासभा मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं हुई. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई और कहा कि विकल्प आज़माए बिना मध्यस्थता को खारिज क्यों किया जा रहा है? कोर्ट ने कहा कि अतीत पर हमारा नियंत्रण नहीं है, लेकिन हम बेहतर भविष्य की कोशिश जरूर कर सकते हैं. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए. बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय पीठ कर रही है.
जस्टिस एस.ए बोबड़े ने सुनवाई के दौरान कहा कि बाबर ने जो किया उसे बदल नहीं सकते. हमारा मकसद विवाद को सुलझाना है. इतिहास की जानकारी हमें भी है. उन्होंने आगे कहा कि मध्यस्थता का मतलब किसी पक्ष की हार या जीत नहीं है. ये दिल, दिमाग, भावनाओं से जुड़ा मामला है. हम मामले की गंभीरता को लेकर सचेत हैं.
जस्टिस बोबड़े ने कहा कि जब मध्यस्थता की प्रक्रिया चल रही हो तो उसमें क्या कुछ चल रहा है, यह मीडिया में नहीं जाना चाहिए. जस्टिस बोबड़े ने मध्यस्थता की विश्वसनीयता को बरकरार रखने पर जोर देते हुए कहा कि जब अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता चल रही हो तो इसके बारे में खबरें न लिखी जाएं और न ही दिखाई जाएं. जस्टिस ने आगे कहा कि हम मीडिया पर प्रतिबंध नहीं लगा रहे, लेकिन मध्यस्थता का मकसद किसी भी सूरत में प्रभावित नहीं होना चाहिए.
एक हिंदू पक्षकार ने कोर्ट में दलील दी कि मध्यस्थता के लिए आदेश जारी करने से पहले पब्लिक नोटिस जारी करने की जरूरत होती है. हिंदू पक्षकारों ने दलील दी कि अयोध्या मामला धार्मिक और आस्था से जुड़ा मामला है. यह केवल संपत्ति विवाद नहीं है. हिंदू पक्षकार के वकील ने कहा कि मध्यस्थता से कोई फायदा नहीं, कोई तैयार नहीं होगा. इस पर CJI ने कहा, अभी से यह मान लेना कि फायदा नहीं, ठीक नहीं है.