नई दिल्ली: अनुच्छेद 35-A पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को लेकर सस्पेंस जारी है. इसको लेकर कश्मीर घाटी में बवाल मचा हुआ है. अलगाववादी सड़कों पर हैं और देश में संविधान के इस अनुच्छेद को खत्म करने की मांग तेज हो रही है. 5 साल पहले वर्ष 2014 में अनुच्छेद 35-ए को खत्म करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई थी. तब से ये मामला देश में बहस और कश्मीर में विरोध का केंद्र बना हुआ है. ऐसे में ये समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर कश्मीर से जुड़ा संविधान का अनुच्छेद 35-A क्या है और क्यों इसे कश्मीर में अलगाववाद की जड़ बताया जा रहा है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की कंस्टीट्यूशन बेंच को फैसला लेना है.
अनुच्छेद 35-A को आजादी के 7 साल बाद यानी 1954 में संविधान में जोड़ा गया था. ये अनुच्छेद नेहरू कैबिनेट की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के एक आदेश से संविधान में जोड़ा गया था. इसका आधार है 1952 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के बीच हुआ दिल्ली एग्रीमेंट. जिसमें भारतीय नागरिकता के मामले को जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में राज्य का विषय माना गया.
क्या विशेष अधिकार देता है ये अनुच्छेद
35-A संविधान का वो अनुच्छेद है जिसके तहत कश्मीर के स्थायी निवासियों के लिए नियम तय हुए हैं. इस अनुच्छेद के तहत कश्मीर के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार और सुविधाएं दी गई हैं जो कि नौकरियों, संपत्ति की खरीद-विरासत, स्कॉलरशिप, सरकारी मदद और कल्याणकारी योजनाओं से जुड़ी सुविधाओं से संबंधित हैं.
राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जुड़ा ये अनुच्छेद
राष्ट्रपति का ये आदेश संविधान के अनुच्छेद 370 (1) (d)के तहत जारी किया गया था. ये प्रावधान राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर के मामले में राज्य के विषय पर संविधान में आवश्यकता पड़ने पर बदलावों और छूट देने का अधिकार देता है.
अनुच्छेद 35-A से जुड़ी खात बात ये है कि इसे बनाते समय संसदीय प्रणाली से कानून बनाने की प्रक्रिया की जगह राष्ट्रपति के आदेश के जरिए इसे संविधान में जोड़ा गया. जबकि संविधान का अनुच्छेद 368 (i)संविधान में किसी भी संशोधन का अधिकार सिर्फ संसद को देता है. 1961 में ये मामला आदालत के सामने आया था कि क्या राष्ट्रपति 370 के तहत संसद को बाइपास करके संविधान में संशोधन का अधिकार रखते हैं. हालांकि अदालत के फैसले में इस बात का तब जवाब नहीं मिला था.
किन तर्कों के आधार पर दी गई चुनौती?
2014 में सुप्रीम कोर्ट में एक एनजीओ ने याचिका दायर कर इस अनुच्छेद को एक भारत की भावना के खिलाफ और अलगाववाद को बढ़ावा देने वाला प्रावधान बताया. इस याचिका में अनुच्छेद 35A और अनुच्छेद 370 की वैधानिकता को चुनौती दी गई. इस याचिका में तर्क दिया गया है कि आजादी के बाद देश का संविधान बनाने के लिए जो संविधान सभा बनी थी उसमें जम्मू-कश्मीर के 4 प्रतिनिधि भी शामिल थे. साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य को कभी भी स्पेशल स्टैटस नहीं दिया गया. ये भी तर्क दिया गया कि 35-ए एक अस्थायी उपबंध था जिसे राज्य में हालात को उस समय स्थिर करने के लिए जोड़ा गया था. इस अनुच्छेद को संविधान के निर्माताओं ने नहीं बनाया.
अलगाववाद को बढ़ावा देने का लगा आरोप
याचिका में यह भी कहा गया कि ये अनुच्छेद नागरिकों के बीच भेद उत्पन्न करता है और एक भारत की सोच को कमजोर करता है. ये अनुच्छेद बाकी राज्यों के लोगों को जम्मू-कश्मीर में नौकरी हासिल करने, संपत्ति खरीदने से रोकता है जो कि संविधान में दिए गए मूल अधिकारों का उल्लंघन है. देश के हर नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 में मूल अधिकार यानी फंडामेंटल राइट्स दिए गए हैं. इसी के साथ दायर एक अन्य याचिका में जम्मू-कश्मीर की महिलाओं के बाहरी शख्स से शादी करने पर उनके बच्चों को नागरिकता नहीं मिलने के प्रावधान को भी चुनौती दी गई है. इस कानून के प्रावधानों को कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा देने वाला बताते हुए खारिज करने की मांग की गई.
क्या प्रावधान हैं अनुच्छेद 35-ए में:
-अनुच्छेद 35-A से जम्मू कश्मीर राज्य के लिए स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के अधिकार तय होते हैं
-जम्मू कश्मीर सरकार उन लोगों को स्थाई निवासी मानती है जो 14 मई 1954 के पहले कश्मीर में बस गए थे
-ऐसे स्थाई निवासियों को राज्य में जमीन खरीदने, रोजगार हासिल करने और सरकारी योजनाओं में लाभ के लिए अधिकार मिले हैं.
-किसी दूसरे राज्य का निवासी जम्मू-कश्मीर में जाकर स्थाई निवासी के तौर पर नहीं बस सकता
-किसी दूसरे राज्य के निवासी ना तो कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं, ना राज्य सरकार उन्हें नौकरी दे सकती है
-अगर जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसके अधिकार छीन जाते हैं, हालांकि पुरुषों के मामले में ये नियम अलग है
उदाहरण के लिए जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला राज्य से बाहर के व्यक्ति से विवाह करने के बाद संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दी गई थीं जबकि उमर अब्दुल्ला की शादी भी राज्य से बाहर की महिला से हुई, लेकिन उनके बच्चों को राज्य के सारे अधिकार हासिल हैं. याचिका में इस तरह के भेदभावपूर्ण नियम को खत्म करने पूरे देश में एक जैसे कानून को लागू करने की मांग की गई.