दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन तो हो गया, लेकिन दिल्ली कांग्रेस चीफ अरविंदर सिंह लवली के इस्तीफे के बाद राजनीतिक परिस्थितियां बदली हुई नजर आ रही हैं. यही कारण है कि बीजेपी ने गठबंधन पर हमले और तेज कर दिए. वहीं इस बीच अब बहुजन समाज पार्टी को भी राष्ट्रीय राजधानी में सियासी फायदा दिख रहा है. और पार्टी ने शहर की सातों लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए हैं.
दिल्ली बसपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह का कहना है कि कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी ने हमें एक दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल करते हुए ‘बी’ टीम बता दिया, लेकिन जब आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन ही हो गया तो अब सब साफ है कि कौन किसके साथ है. आकाश आनंद और बहन जी आक्रोशित हैं. हम (बसपा) अपने दम पर चुनाव लड़ते हैं.
लक्ष्मण सिंह का दावा है कि किसी भी पार्टी ने आज तक दिल्ली लोकसभा की सातों सीटों पर एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा. लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा ने मुस्लिम समाज से दो टिकट दिए हैं. बसपा का कोर वोटर छिटककर कांग्रेस और फिर आम आदमी पार्टी में चला गया था, लेकिन दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में बसपा का कोर वोटर वापस लौट रहा है.
ऐसे में सवाल उठता है कि बसपा ने सातों सीटों पर उम्मीदवारों को उतारकर किसका खेल बिगाड़ा है? क्या इससे AAP-कांग्रेस गठबंधन को नुकसान होगा या फिर बीजेपी को. हालांकि यह आने वाली 4 जून को रिजल्ट डे पर ही पता चल सकेगा.
बसपा के प्रत्याशियों में 3 एडवोकेट
बसपा ने चांदनी चौक से एडवोकेट अब्दुल कलाम, साउथ दिल्ली से अब्दुल बासित जो कभी आरजेडी में हुआ करते थे. पूर्वी दिल्ली से ओबीसी समाज से एडवोकेट राजन पाल को उतारा गया है, जो पाल समाज से आते हैं. उत्तर पूर्वी दिल्ली से डॉक्टर अशोक कुमार हैं, जो एससी समुदाय से आते हैं. नई दिल्ली से एडवोकेट सत्यप्रकाश गौतम, उत्तर पश्चिमी दिल्ली से विजय बौद्ध तो पश्चिमी दिल्ली से विशाखा आनंद को उतारा है.
ये है दिल्ली में बसपा की स्थिति
गौरलतब है कि बसपा दिल्ली नगर निगम की 250 और दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है. 2008 में दिल्ली विधानसभा लड़ने पर बसपा के 2 विधायक भी जीते थे. हालांकि 2013 में पार्टी को झटका लगा और पार्टी को किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली. इसके बाद बसपा ने साल 2009, 2014 और 2019 में दिल्ली में लोकसभा चुनाव भी लड़ा. दावा है कि चुनाव लड़ने के बाद वोट प्रतिशत बढ़ा है. लेकिन चुनावी आकंड़ों पर गौर करें तो पार्टी का ग्राफ दिखता ही नजर आया है. कारण, 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 9% वोट मिले, 2014 में ये घटकर 6% हो गए और 2019 में यह सिर्फ 1% रह गया.