नई दिल्ली। केंद्र सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को लेकर संसद के आगामी मॉनसून सत्र में विधेयक लाने की तैयारी में है. लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अकेले दम बहुमत में है. लोकसभा में नंबरगेम बीजेपी के पक्ष में है और निचले सदन से विधेयक पारित होने में कोई रुकावट नजर नहीं आ रही लेकिन राज्यसभा का नंबरगेम क्या है? संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा में अगर यूसीसी से संबंधित बिल पर वोटिंग होती है तो गणित क्या होगा?
लोकसभा में अकेले बीजेपी के ही 300 से ज्यादा सांसद हैं. एनडीए के घटक दलों को भी जोड़ लें तो आंकड़ा 350 सीट के आसपास पहुंच जाता है. लोकसभा से बिल पारित कराने में बीजेपी के सामने किसी तरह की अड़चन नहीं आएगी. लोकसभा का नंबर गेम पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में है लेकिन राज्यसभा में तस्वीर दूसरी है.
राज्यसभा में असली परीक्षा
राज्यसभा के नंबर गेम की बात करें तो इस समय उच्च सदन की आठ सीटें रिक्त हैं और कुल सदस्य संख्या 237 है. ऐसे में वर्तमान संख्याबल के आधार पर राज्यसभा से बिल पारित कराने के लिए 119 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी. बीजेपी सांसद हरद्वार दुबे का हाल ही में निधन हो गया था जिसके बाद पार्टी के पास राज्यसभा में 91 सांसद बचे हैं. बीजेपी के गठबंधन सहयोगियों की सीटें भी मिला लें तो संख्याबल 108 तक पहुंचता है.
ऐसे में उच्च सदन से बिल पारित कराने के लिए बीजेपी को 11 और सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी. आम आदमी पार्टी के राज्यसभा में 10 सांसद हैं और पार्टी ने यूसीसी का समर्थन करने का ऐलान भी कर दिया है. शिवसेना यूबीटी भी यूसीसी के मुद्दे पर सरकार के समर्थन में है. शिवसेना यूबीटी और आम आदमी पार्टी, दोनों अगर यूसीसी के पक्ष में मतदान करते हैं तो बीजेपी की राह आसान हो जाएगी.
BJD-YSRCP का रुख अहम
अगर आम आदमी पार्टी यूसीसी के समर्थन में वोट नहीं करती है तो ऐसी स्थिति में बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस, बीआरएस का रुख अहम हो जाएगा. इन दलों ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस, दोनों के ही राज्यसभा में नौ-नौ सांसद हैं जबकि बीजेडी के सात. तीनों दल अगर यूसीसी के पक्ष में वोट करते हैं को ये बिल उच्च सदन से भी आसानी के साथ पारित हो जाएगा.
राज्यसभा चुनाव से बदलेगा समीकरण?
राज्यसभा की 10 सीटों के लिए 24 जुलाई को चुनाव होने हैं. एक सीट पर उपचुनाव भी है. इन चुनावों से सदन की तस्वीर पर कुछ ज्यादा असर पड़ता नहीं नजर आ रहा. 10 में से चार सीटें बीजेपी और पांच टीएमसी और एक कांग्रेस के कब्जे में हैं. जिस सीट पर उपचुनाव होना है वह टीएमसी सांसद के इस्तीफे से रिक्त हुई थी. उपचुनाव के बाद टीएमसी की स्ट्रेंथ में एक सीट का इजाफा होगा. 10 सीटों के चुनाव में टीएमसी की पांच सीटें हैं और पार्टी पांचों सीटें बचा ले जाएगी. बीजेपी की भी पांच सीट पर जीत तय है यानी पार्टी को एक सीट का फायदा होगा. इससे समीकरण केवल इतना बदलेगा कि बीजेपी की स्ट्रेंथ जो यूपी से राज्यसभा सांसद हरद्वार दुबे के निधन से 91 रह गई थी, वह 92 और एनडीए की स्ट्रेंथ 109 पर पहुंच जाएगी.
राज्यसभा में किस पार्टी के कितने सांसद?
राज्यसभा में राजनीतिक दलों के स्ट्रेंथ की बात करें तो कांग्रेस के अभी 31 सांसद हैं. उच्च सदन में टीएमसी के 12, डीएमके के 10, जेडीयू के 5, एनसीपी के 4, शिवसेना यूबीटी के 3, सपा के 3, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के एक, लेफ्ट पार्टियों के दो, झारखंड मुक्ति मोर्चा के दो, केरल कांग्रेस (एम) के एक, राष्ट्रीय जनता दल के छह सांसद हैं.
किस पार्टी का क्या है रुख?
– शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पदाधिकारियों के साथ मुलाकात के दौरान साफ कर चुके हैं कि हम यूसीसी का समर्थन करते हैं. हालांकि, उन्होंने ये भी कहा है कि अलग-अलग वर्गों पर इसका क्या असर होगा? हम केंद्र सरकार से इसे लेकर स्पष्टीकरण की मांग करते हैं. वहीं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने बीच की राह पकड़ ली है. एनसीपी ने कहा है कि हमने न तो यूसीसी का समर्थन किया है और ना ही विरोध. हम तो बस इतना कह रहे हैं कि बड़े फैसले जल्दबाजी में नहीं लिए जाते.
– बिहार की सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के प्रवक्ता केसी त्यागी ने इसे पॉलिटिकल स्टैंड बताया है. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने यूसीसी का विरोध किया है. तमिलनाडु की सत्ताधारी डीएमके ने कहा है कि यूसीसी पहले हिंदुओं के लिए लागू किया जाना चाहिए. बीजेपी के पुराने गठबंधन सहयोगियों में शिरोमणि अकाली दल भी यूसीसी के विरोध में उतर आया है. राष्ट्रीय जनता दल ने कहा है कि ये हिंदू-मुसलमान का मसला नहीं है. हिंदुओं में भी विविधता है, आदिवासी रिवाज हैं. सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता दिखानी चाहिए. कई दलों की ओर से इसे लेकर अभी कोई बयान नहीं आया है.
– संसदीय मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह कहते हैं कि ये सही है कि बीजेडी जैसी पार्टियों ने कई बार संसद में सरकार के लिए संकटमोचक की भूमिका निभाई है लेकिन यूसीसी का मामला अलग है. हर दल की अपनी सियासत है और इन पार्टियों को अपने वोटबैंक का भी ध्यान रखना है. बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, बीआरएस जैसी पार्टियां हर मसले पर सरकार के पक्ष में मतदान करें, ये जरूरी नहीं है. सरकार अगर यूसीसी को लेकर संसद में बिल लाती है और वोटिंग की नौबत आती है तो राज्यसभा में इसका पारित हो पाना इतना आसान नहीं होगा.