नई दिल्ली। सीएम भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बच टसल थी लेकिन आलाकमान ने एक फार्मूला तैयार किया और सारे विवाद को जड़ से ही खत्म कर दिया। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ कांग्रेस में एक नई उम्मीद की लहर दौड़ पड़ी है। कुछ अरसे बाद ही वहां चुनाव होना है। बघेल और टीएस के बीच की तनातनी खत्म होने के बाद गांधी परिवार का रुतबा बढ़ा है। अब सारी निगाहें राजस्थान की तरफ हैं। यहां की टसल छत्तीसगढ़ से कहीं ज्यादा है।
जानकार कहते हैं कि बेशक राजस्थान कांग्रेस की भी हालत छत्तीसगढ़ जैसी ही है। जैसे बघेल के सामने टीएस सिंह देव खड़े थे वैसे ही अशोक गहलोत के सामने सचिन पायलट हैं। लेकिन राजस्थान का संकट कुछ ज्यादा ही बड़ा है। भूपेश बघेल आलाकमान की बात को संजीदगी से लेते रहे हैं वहीं गहलोत पिछले कुछ अरसे में गांधी परिवार की रणनीति को फेल भी कर चुके हैं। गांधी परिवार चाहता था कि गहलोत को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर सचिन पायलट को सीएम बना दिया जाए। लेकिन गहलोत ने इस्तीफों की धमकी के जरिये गांधी परिवार की रणनीति को फेल कर दिया।
छत्तीसगढ़ से राजस्थान का संकट इस वजह से भी बड़ा है, क्योंकि बघेल और टीएस के बीच कितनी भी तनातनी रही हो लेकिन दोनों ने सीमा को कभी नहीं लांघा। न तो बघेल ने टीएस के लिए कोई अपमानजनक बात कही और न ही टीएस ने खुले तौर पर कभी बघेल को चुनौती। जबकि राजस्थान में गहलोत सचिन पायलट को निकम्मा, नाकारा और गद्दार जैसी उपाधियों से नवाज चुके हैं। टीएस ने बघेल के खिलाफ कभी खुले तौर पर बगावत नहीं की अलबत्ता गहलोत सरकार को गिराने के लिए 2020 में सचिन पायलट अपने खेमे के विधायकों को लेकर हरियाणा के लंबे प्रवास पर भी जा चुके हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी मिलने पर राजी हो सकते हैं सचिन
विश्लेषक मानते हैं कि जो प्रयोग छत्तीसगढ़ में करके आलाकमान खुद को खिलाड़ी मान रहा है वो राजस्थान में नहीं चलने वाला। सचिन किसी भी सूरत में डिप्टी सीएम की पोस्ट पर नहीं मानने वाले। उनको पता है कि ये पद केवल औपचारिकता भर है। असली पावर सीएम के पास ही है। सीएम भी गहलोत जैसा, जो सचिन जैसे नेता को एक इंच जमीन देने को भी तैयार नहीं होगा। सचिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर मान सकते हैं। लेकिन लगता नहीं कि गहलोत इसके लिए तैयार होंगे। उनको लगता है कि सूबे की कमान सचिन के पास गई तो चुनाव में जीत का श्रेय भी वो ही ले जाएंगे।
छत्तीसगढ़ में सुलह होते ही गहलोत को लगी चोट, एक बड़ा इशारा
छत्तीसगढ़ संकट हल करने के बाद हाईकमान की निगाहें राजस्थान पर हैं। फिलहाल उनको अचानक लगी चोट राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय है। माना जा रहा है कि गहलोत और सचिन को दिल्ली बुलाने की तैयारी थी पर गहलोत को लगी चोट से आलाकमान भी हाथ पर हाथ रखकर ही बैठने को मजबूर हो गया है। संकेत साफ हैं कि गहलोत सचिन को एडजस्ट करने को तैयार नहीं हैं। वो नहीं चाहते कि सचिन को बड़ी जिम्मेदारी मिले।