नई दिल्ली। UCC, समान नागरिक संहिता। मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका मु्द्दा छेड़ दिया है। सियासत के साथ-साथ कानूनी गलियारों में भी इसकी चर्चाएं हैं। भारतीय संविधान की धारा 44 में एक समान नागरिक संहिता का जिक्र मिलता है। फिलहाल, जहां भारत में अलग-अलग धर्मों को मानने वाले नागरिक अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं। अब अगर पूरे देश में UCC लागू हो जाता है, तो इनकी जगह सिर्फ एक कानून ले लेगा।
किस धर्म पर कैसा असर
हिंदू
अगर UCC आता है, तो मौजूदा कानून जैसे हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 और हिंदू सक्सेशन एक्ट, 1956 में संशोधन करना जरूरी हो जाएगा। उदाहरण के लिए हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 2(2) में कहा गया है कि इसके प्रावधान अनुसूचित जनजाति पर लागू नहीं होते। UCC में इस तरह के अपवादों को जगह नहीं होगी।
इस्लाम
द मुस्लिम पर्सनल (शरियत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 में कहा गया है कि शरियत या इस्लामिक कानून से शादियां, तलाक होगा। ऐसे में अगर UCC आता है, तो शरियत कानून के तहत न्यूनतम उम्र में बदलाव किया जाएगा। साथ ही पॉलीगैमी यानी एक से ज्यादा पत्नियां रखने की प्रथा खत्म हो सकती है।
सिख
आनंद मैरिज एक्ट, 1909 के तहत सिख समुदाय में शादियां होती हैं। खास बात है कि यहां तलाक का कोई प्रावधान नहीं है। तब अगर पति-पत्नी अलग होते थे, तो हिंदू मैरिज एक्ट को माना जाता था, लेकिन अगर UCC आता है तो आनंद एक्ट में शामिल सभी समुदाय और शादियां एक कानून के तहत आ जाएंगी।
पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट, 1936 के तहत कहा गया है कि अगर कोई भी पारसी महिला किसी अन्य धर्म में शादी करती है, तो वह पारसी परंपराओं से जुड़े सभी अधिकार खो देगी। साथ ही पारसी समुदाय में गोद ली हुईं बेटियों के अधिकारों को भी मान्यता नहीं दी जाती। जबकि, गोद लिया हुआ बेटा सिर्फ पिता का अंतिम संस्कार कर सकता है। अगर UCC आता है, तो सभी पर एक तरह के नियम लागू होंगे।
ईसाई
ईसाई समुदाय में UCC के आने का असर उत्तराधिकार, गोद लेना और विरासत जैसी चीजों पर पड़ेगा। क्रिश्चियन डिवोर्स लॉ के सेक्शन 10(1) के तहत अगर जोड़ा अलग होना चाहता है, तो उन्हें तलाक के लिए दो साल अलग रहना ही होगा। वहीं, सक्सेशन एक्ट 1925 में कहा गया है कि मां को मृत बच्चों की संपत्ति पर अधिकार नहीं मिलेगा। ऐसी संपत्ति पिता को मिलती है। अगर UCC आता है, तो प्रावधान खत्म हो जाएंगे।