लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के वजीरगंज थाना क्षेत्र में मुख्तार अंसारी के करीबी की गोली मारकर हत्या करने का मामला सामने आया है. कातिल वकील की ड्रेस पहनकर आए थे और उन्होंने कचहरी में घुसकर वारदात को अंजाम दिया है. इस फायरिंग में एक बच्ची और एक महिला को भी गोली लगने की बात सामने आई है. घटना के बाद एक शूटर को गिरफ्तार कर लिया है. वारदात को अंजाम देने वाले हमलावर की पहचान जौनपुर के केराकत निवासी विजय यादव के रूप में हुई है.
मुख्तार का शूटर रहा है जीवा
संजीव जीवा पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर का रहने वाला था. उसका कनेक्शन मुख्तार अंसारी के साथ है. वह मुख्तार का शूटर रहा है. इसका नाम चर्चित कृष्णानंद राय हत्याकांड में भी सामने आया था. संजीव इस वक्त यूपी की लखनऊ जेल में बंद था.
90 के दशक में जुर्म से जुड़ा जीवा
संजीव फिलहाल लखनऊ की जेल में बंद था. अपराध की दुनिया में संजीव के कदम रखने की बात की जाए तो उसने सबसे पहले 90 के दशक में अपना वर्चस्व बनाना शुरू किया था. इसके बाद उसने आम लोगों के साथ-साथ पुलिस और प्रशासन में भी अपनी आतंक फैलाना शुरू कर दिया.
फिरौती में मांगे 2 करोड़ रुपए
संजीव अपने जीवन के शुरुआती जीवन में कंपाउंडर था. नौकरी करते वक्त ही उसके मन में अपराध ने जन्म ले लिया और संजीव ने दवाखाना संचालक का ही अपहरण कर लिया. इसके बाद उसके हौसले बुलंद होते गए और 90 के दशक में जीवा ने कोलकाता के एक कारोबारी के बेटे को किडनैप कर लिया. इस वारदात को अंजाम देने के बाद उसने फिरौती के एवज में दो करोड़ रुपए की मांग की. दो करोड़ मांगना उस समय सबसे बड़ी बात हुआ करती थी.
कई गैंग में रहा, फिर बनाई अपनी गैंग
संजीव जीवा ने इसके बाद हरिद्वार के नाजिम गैंग में घुसपैठ की. इसके बाद वह सतेंद्र बरनाला गैंग में शामिल हो गया. हालांकि, अलग-अलग गैंग के लिए काम करने के बाद भी संजीव को सुकून नहीं मिला और उसने अपनी गैंग बनाने का फैसला कर लिया.
कैसे आया मुख्तार अंसारी के संपर्क में?
संजीव जीवा का नाम 10 फरवरी 1997 को हुई बीजेपी नेता ब्रम्ह दत्त द्विवेदी की हत्या में भी सामने आया था. इस हत्याकांड में जीवा को उम्रकैद की सजा हुई थी. इस बड़ी वारदात के बाद वह मुन्ना बजरंगी गैंग में शामिल हो गया था. इस दौरान उसका संपर्क मुख्तार अंसारी से हुआ.
बड़ी-बड़ी वारदातों से जुड़ा संजीव का नाम
बताया जाता है कि मुख्तार अंसारी को नए-नए हथियारों का शौक था. संजीव जीवा अपने तिकड़म से इन हथियारों को जुगाड़ने में माहिर था. उसकी इस खासियत के कारण ही संजीव को मुख्तार का संरक्षण मिल गया. इसके बाद जीवा का नाम कृष्णानंद राय हत्याकांड में भी सामने आया था.