नई दिल्ली। कांग्रेस के पूर्व सांसद राहुल गांधी की शुक्रवार को संसद की सदस्यता रद्द कर दी गई। मोदी सरनेम मानहानि मामले में सूरत की कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई थी, जिसके बाद लोकसभा सचिवालय ने नोटिफिकेशन जारी करते हुए राहुल की सदस्यता समाप्त करने पर मुहर लगा दी। राहुल गांधी की सांसदी जाने के बाद कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष बीजेपी सरकार पर हमलावर हो गया है। कांग्रेस नेताओं के अलावा, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी समेत विभिन्न विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधा है। हालांकि, राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि भले ही राहुल गांधी की सजा से कांग्रेस को झटका लगा हो, लेकिन यह उनके लिए आगामी लोकसभा चुनाव से पहले एक मौके की तरह भी है। यदि कांग्रेस इस अवसर पर फ्रंटफुट पर बैटिंग करते हुए जनता को अपने पक्ष में करने में कामयाब हो जाती है, तो आम चुनाव काफी दिलचस्प हो सकता है।
भारतीय राजनीति के सबसे बड़े और अहम परिवार गांधी फैमिली ने अतीत में ऐसे अवसरों का सामना किया है। उस दौरान कांग्रेस पार्टी ने सहानुभूति का पूरा फायदा उठाते हुए लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बनाए गए। जनता पार्टी की सरकार ने एक प्रस्ताव पेश करके इंदिरा गांधी की सदस्यता को छीन लिया था। हालांकि, जब उन्हें जनता से काफी समर्थन मिलने लगा तो सरकार ने उनकी सदस्यता को बहाल करने का फैसला किया था। जीप घोटाले में आरोप लगाया गया कि इंदिरा गांधी ने 100 जीपें खरीदवाईं और उसका पेमेंट कांग्रेस ने नहीं, बल्कि उद्योग जगत के लोगों ने किया। इसके बाद इंदिरा गांधी को गिरफ्तार तक किया गया। इंदिरा को इस गिरफ्तारी से काफी सहानुभूति मिली। बाद में जनता पार्टी कमजोर होने लगी और मध्यावधि चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को प्रचंड जीत मिली और फिर से इंदिरा गांधी ने जोरदार वापसी करते हुए प्रधानमंत्री बनीं। वहीं, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का साल 2006 में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का एक मामला सामने आया था, जिसके बाद उन्हें अपनी लोकसभा सदस्यता गंवानी पड़ी थी। हालांकि, फिर से हुए उपचुनाव में उन्हें रायबरेली से जीत मिली थी।
अतीत के चुनावों में गांधी परिवार और कांग्रेस को इस तरह के मामलों में लोगों की सहानुभूति जमकर मिलती रही हो, लेकिन इस बार मामला आसान नहीं होने वाला है। दरअसल, कांग्रेस 2014 से सत्ता से बाहर है और धीरे-धीरे राज्यों से भी उसकी पकड़ कम होती जा रही है। अभी हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार है, जबकि झारखंड, बिहार जैसे राज्यों में वह गठबंधन का हिस्सा है। कांग्रेस और गांधी परिवार की अब स्थिति पहले जैसी नहीं रही। इस वजह से पार्टी को राहुल गांधी की सदस्यता रद्द मामले में सहानुभूति पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। हाल ही में राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा के जरिए से एक माहौल अपनी ओर करने में कामयाबी हासिल की थी, लेकिन लंदन वाले बयान पर वह बीजेपी से घिर गए। राहुल की सांसदी जाने के बाद अब कांग्रेस नए तरीके से भविष्य की रणनीति बनाने में लग गई है। यदि कांग्रेस जनता की सहानुभूति हासिल करने में कामयाब हो जाती है तो यह मौका उसके लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होगा।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब पूरा विपक्ष बिखरा-बिखरा नजर आ रहा था। दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बीआरएस चीफ केसीआर, ममता बनर्जी समेत कई नेता थर्ड फ्रंट बनाने की जुगत में थे। इसी सिलसिले में पिछले दिनों अखिलेश यादव ने ममता बनर्जी से मुलाकात भी की थी। लेकिन अब राहुल को सजा सुनाए जाने और सदस्यता रद्द किए जाने के बाद पूरा विपक्ष कांग्रेस की छतरी के नीचे आता दिखाई दे रहा है। सजा सुनाए जाने के फौरन बाद अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन समेत कई नेताओं ने राहुल गांधी के समर्थन में बयान दिया, जबकि जब आज राहुल की सदस्यता छिन गई, तब ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे सरीखे नेता भी केंद्र सरकार पर हमलावर हो गए। कांग्रेस लंबे समय से चाह रही थी कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले पूरा विपक्ष एकजुट होकर लड़े। इसके लिए रायपुर अधिवेशन में भी अहम प्रस्ताव पारित किया गया था। राहुल की सांसदी जाने के बाद अब विपक्षी दलों को एकजुट होने का मौका मिला है। जानकार मानते हैं कि यदि यह एकजुटता आम चुनाव तक जारी रहती है और जमीन पर भी दिखाई देती है, तो जरूर कड़ी टक्कर हो सकती है।