ओम-अल्लाह एक… अरशद मदनी हैं तो बवाल है

नई दिल्ली। देश में सामाजिक सौहार्द को स्थापित करने के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अधिवेशन में अंतिम दिन रविवार को मौलाना अरशद मदनी के द्वारा ओम और अल्लाह को एक ही बताने के साथ ही पैगंबर आदम को हिंदू-मुस्लिम दोनों का पूर्वज बता दिया. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि धरती पर जब कोई नहीं था तब मनु किसे पूजते थे. मौलाना के इस बयान का दूसरे कई धर्मगुरुओं ने विरोध किया. मौलाना अरशद मदनी पहली बार चर्चा में नहीं आए हैं बल्कि रात के अंधेरे में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से उनकी मुलाकात रही हो या फिर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग. इनके चलते मदनी सुर्खियों में किसी न किसी तरह बने रहते हैं?

मदनी ने बताया अल्लाह-ओम एक

मौलाना अरशद मदनी ने महमूद मदनी के कार्यक्रम में कहा ‘मैंने बड़े बड़े धर्मगुरुओं से पूछा कि जब कोई नहीं था, न श्री राम थे, न ब्रह्मा थे, न शिव थे, जब कोई नहीं था, तब सवाल पैदा होता है कि मनु पूजते किसे थे.’ उन्होंने कहा कि कोई कहता है कि शिव को पूजते थे, लेकिन उनके पास इल्म नहीं है, बहुत कम लोग ये बताते हैं कि जब कुछ नहीं था दुनिया में तो मनु ओम को पूजते थे. मदनी कहते हैं, ‘तब मैंने पूछा कि ओम कौन है? बहुत से लोगों ने कहा कि ये हवा है, जिसका कोई रूप नहीं है, कोई रंग नहीं है. वो दुनिया में हर जगह है, हवा हर जगह है उन्होंने आसमान बनाया, उन्होंने जमीन बनाई.

मदनी ने कहा, ‘मैंने कहा कि अरे बाबा, इन्हीं को तो हम ‘अल्लाह’ कहते हैं. इन्हीं को तो तुम ‘ईश्वर’ कहते हो. फारसी बोलने वाले ‘खुदा’ और अंग्रेजी बोलने वाले ‘गॉड’ कहते हैं. इसका मतलब ये है कि मनु यानी आदम, ओम यानी अल्लाह को पूजते थे. ये हमारे मुल्क की ताकत है.’ मौलाना ने दावा किया कि इसलिए इस्लाम भारत के लिए नया मजहब नहीं है और ‘अल्लाह’ यानी ‘ओम’ ने मनु यानी आदम को यहीं उतारा और उन्होंने एक ‘अल्लाह’ यानी एक ‘ओम’ की इबादत करने को कहा और इसके बाद के आए पैगंबरों ने भी यही संदेश दिया.

मौलाना के बयान पर जैन मुनि का एतराज

मौलाना अरशद मदनी के बयान को लेकर जैन मुनी लोकेश मुनि खफा हो गए. उन्होंने मंच से ही अपनी आपत्ति जताई और कहा, ‘आपने जो बात कही है, मैं उससे सहमत नहीं हूं. मेरे साथ सर्वधर्म के संत भी सहमत नहीं हैं. हम केवल सहमत हैं कि हम मिलजुलकर रहें, प्यार से रहें, मोहब्बत से रहें.’

इसके बाद वे कुछ अन्य धर्मगुरुओं के साथ कार्यक्रम से चले गए, लेकिन उसे पहले यह भी कहा कि “जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर हुए, उससे पहले 23वें भगवान पार्श्वनाथ थे. नेमिनाथ योगीराज कृष्ण के चचेरे भाई थे, किंतु याद रखिए इससे पहले भगवान ऋषभदेव पहले तीर्थंकर थे, जिनके पुत्र भरत के नाम पर इस भारत देश का नाम पड़ा है. आप ऐसे नहीं मिटा सकते. ये जो कहानी अल्लाह.. मनु और उसकी औलाद ये सब बेकार की बातें हैं.’

गाय को राष्ट्रीय पशु की मांग उठा चुके मौलाना 

केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद गाय एक बड़ा सियासी मुद्दा बना था. देश में गाय पर जारी राजनीति और हिंसा पर लगाम लगाने के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने दिल्ली में बकायदा प्रेस कॉफ्रेंस करके गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि गाय से देश के एक बड़े तबके की भावना जुड़ी हुई है. गोहत्या को लेकर आए दिन माहौल बिगड़ने की स्थिति पैदा हो जाती है. गोहत्या के चलते देश में कई हत्याएं हो चुकी हैं. इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए. इससे गाय और इंसान दोनों की रक्षा होगी. इसके साथ ही उन्होंने सरकार से मांग की थी कि गाय को सुरक्षित करने के लिए एक कानून बनाया जाए और वह कानून यह है कि आपने जिस तरह से मोर को और कुछ दूसरे जानवरों को नेशनल जानवर माना है. उसी तरह से गाय को भी राष्ट्रीय जानवर मानिए. गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग को लगातार उठाते रहे हैं.

भागवत से मौलाना मदनी की मुलाकात

तबलीगी जमात के समर्थन में उतरे थे मौलाना 

कोरोना महामारी के दौरान तबलीगी जमात के खिलाफ सरकार ने एक्शन लिया था. जमात के मरकज को सील कर दिया गया था और जमातियों को हिरासत में लिया गया था तो मौलाना अरशद मदनी इसे विरोध में उतर गए थे. उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद निजामुद्दीन में लॉकडाउन का पूरा पालन किया गया था. इसमें मरकज की कोई गलती नहीं है. मरकज ने प्रतिनिधियों को वापस भेजवाने के लिए सरकार से अपील की थी. मौलाना मदनी ने यह भी दावा किया कि कोई भी जमात इटली और चीन में नहीं था. इतना ही नहीं उन्होंने मौलाना साद का भी खुलकर समर्थन किया था.

बता दें कि मौलाना असद मदनी के निधन के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद दो गुटों में बट गया है. इसमें एक गुट की कमान मौलाना अरशद मदनी के हाथों में तो दूसरे की कमान उनके भतीजे महमूद मदनी के हाथों में है. यह मुसलमानों का सबसे बड़े संगठनों में से एक है और तमाम मुसलमानों से जुड़े हुए मामलों पर काम करता है. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद मौलाना की सरकार पर पकड़ कमजोर हुई है, जिसके चलते इनकी बेचैनी भी साफ दिख रही है. ऐसे में अरशद मदनी वक्त बेवक्त इस तरह से बयान देकर चर्चा के केंद्र में खुद को बनाए रखना चाहते हैं, जिसके लिए बयान भी ऐसे देते हैं कि खबरों में बने रहें, लेकिन सीएए-एनआरसी के खिलाफ आंदोलन चल रहा था तब नजर नहीं आए. इतना ही नहीं मुस्लिमों के बीच सामाजिक सुधार के लिए भी कोई आंदोलन भी उन्होंने नहीं चलाया.