लखनऊ। भाजपा ने उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों आजमगढ़ और रामपुर के लिए हुए उपचुनाव में शानदार जीत हासिल कर ली है। एक तरफ उसने समाजवादी पार्टी के गढ़ रहे आजमगढ़ में दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को जीता लिया है तो वहीं दूसरी तरफ आजम के गढ़ कहे जाने वाले रामपुर में भी ऐतिहासिक जीत हासिल की है। रामपुर लोकसभा सीट पर यह चौथा मौका है, जब भाजपा ने जीत हासिल की है। आजम खान के समर्थक सपा प्रत्याशी मोहम्मद आसिम रजा को 3 लाख 25 हजार के करीब वोट ही मिले, जबकि भाजपा कैंडिडेट घनश्याम लोधी को 3 लाख 67 हजार वोट मिले हैं और उन्होंने करीब 42 हजार वोटों से जीत हासिल कर ली। घनश्याम लोधी कभी आजम खान के ही करीबी थे।
इन तीन फैक्टर्स के चलते भाजपा को मिली जीत
माना जा रहा है कि सपा और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले में भगवा दल की जीत के पीछे तीन वजहें हैं। एक तो भाजपा ने ओबीसी उम्मीदवार उतारा था, दूसरा बसपा के दलित वोटों का ट्रांसफर भाजपा के पक्ष में हुआ। तीसरा कांग्रेस नेता नवाब काजिम अली खान की ओर से भाजपा को समर्थन का ऐलान किया जाना। यदि हम 2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों की बात करें तो इसमें सच्चाई भी जान पड़ती है। 2014 में नेपाल सिंह को 3 लाख 58 हजार मत मिले थे, जबकि सपा के नसीर अहमद को 3 लाख 35 हजार के करीब वोट हासिल हुए थे। वहीं कांग्रेस के नवाब काजिम अली खान डेढ़ लाख से ज्यादा वोट ले गए थे और बसपा के अकबर हुसैन भी 81,000 वोट हासिल करने में सफल हुए थे।
भाजपा की तरफ ली बसपा के हाथी ने करवट
ऐसे में इस बार कांग्रेस और बसपा के गैर-हाजिर रहने से इन वोटों का बंटवारा सपा और भाजपा के बीच ही होना था। साफ है कि नवाब के भाजपा को समर्थन करने से कांग्रेस के वोटों का एक हिस्सा घनश्याम लोधी को मिल गया। इसके अलावा बीएसपी के दलित वोटर्स ने भी भाजपा को ही पसंद किया है। इस तरह बसपा का हाथी शायद भाजपा की करवट बैठ गया है और नवाब का साथ तो खुले तौर पर भाजपा के साथ ही था। ऐसे में इस चुनाव में एक तरफ सपा के ओवरकॉन्फिडेंस को उजागर कर दिया है तो वहीं आजम खान को भी झटका दिया है, जो खुद प्रचार में उतरे थे।
भाजपा के लिहाज से बात करें तो रामपुर में आजम खान की मौजूदगी में जीत हासिल करना उसके लिए बड़ी सफलता है। जिस रामपुर की दो विधानसभा सीटों पर आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम जेल में रहकर भी जीत गए थे, उस पर उनकी मौजूदगी में हार होना सपा के लिए बड़ी किरकिरी है। इस उपचुनाव के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव की रणनीति पर भी सवाल उठ सकते हैं, जो आजमगढ़ और रामपुर में से किसी भी सीट पर प्रचार के लिए नहीं गए। ऐसे में आने वाले दिनों में वह एक बार फिर से पार्टी के अंदर और बाहर निशाने पर आ सकते हैं।