नई दिल्ली। पहले कर्नाटक, फिर मध्य प्रदेश और अब महाराष्ट्र. विधायकों की बगावत का खेल अब महाराष्ट्र में भी शुरू हो गया है. शिवसेना विधायक और उद्धव सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है. इससे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार संकट में आ गई है. अगर कर्नाटक और मध्य प्रदेश में जो हुआ, वही महाराष्ट्र में होता है तो उद्धव की सरकार भी गिर जाएगी.
दरअसल बागी विधायकों की पहली पसंद बीजेपी ही रहती है. आंकड़े बताते हैं कि 5 सालों में 405 विधायकों ने अपनी पार्टी छोड़ी. इनमें से करीब 45 फीसदी विधायक बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. ये आंकड़े एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के हैं. इसमें 2016 से 2020 के 5 साल में पार्टी छोड़ने वाले और दूसरी पार्टी में शामिल होने वाले विधायकों का एनालिसिस किया गया था. एडीआर की ये रिपोर्ट पिछले साल मार्च में आई थी.
बगावत से सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को
– मार्च 2021 की एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि 2016 से 2020 के बीच देश भर की विधानसभाओं के 405 विधायकों ने पार्टी छोड़ी थी. इनमें से 182 यानी 45% विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे.
– रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी छोड़ने वाले 38 यानी 9.4% विधायक कांग्रेस में जुड़े थे. जबकि, 25 विधायक तेलंगाना राष्ट्र समिति और 16 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे. 16 विधायक नेशनल पीपुल्स पार्टी में, 14 जेडीयू में, 11-11 विधायक बीएसपी और टीडीपी में शामिल हुए थे.
– बगावत का सबसे ज्यादा झटका कांग्रेस को पड़ा है. कांग्रेस के 170 विधायकों ने पांच साल में पार्टी छोड़ दी, जबकि बीजेपी के ऐसे 18 विधायक थे. बीएसपी और टीडीपी के 17-17 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी. वहीं, 5 साल में शिवसेना का एक भी ऐसा विधायक नहीं था, जिसने अपनी पार्टी को अलविदा कहा हो.
पार्टी तो छोड़ी, लेकिन सक्सेस रेट कितना?
– विधायकों के पार्टी छोड़ने का सिलसिला आमतौर पर चुनावी साल या चुनाव से पहले होता है, लेकिन कई बार विधायक बीच में भी बागी हो जाते हैं. कर्नाटक और मध्य प्रदेश में ऐसा हो चुका है. बीच में विधायक इस्तीफा देते हैं और फिर दूसरी पार्टी में जुड़कर उसकी टिकट पर उपचुनाव लड़ते हैं.
– लेकिन अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने वाले विधायकों का सक्सेस रेट कितना है? यानी, उनमें से जीतते कितने हैं?
– एडीआर के मुताबिक, 2016 से 2020 के बीच 357 विधायक ऐसे थे जिन्होंने उसी समय दूसरी पार्टी से जुड़कर विधानसभा चुनाव लड़ा था. इनमें से 170 यानी 48% ही जीत पाए थे. जबकि, 48 विधायक ऐसे थे, जिन्होंने दूसरी पार्टी के टिकट पर उपचुनाव लड़ा और इसमें 39 यानी 81% जीत गए.
विधायकों की बात हुई, सांसदों का क्या?
– पार्टी छोड़ने वाले विधायकों की तो बात हो गई, अब सांसदों की बात भी कर लेते हैं. 5 साल में लोकसभा के 12 और राज्यसभा के 16 सांसदों ने पार्टी छोड़ दी थी. बीजेपी के 5 लोकसभा सांसदों ने पार्टी छोड़ी थी, तो कांग्रेस के 7 राज्यसभा सांसदों ने पार्टी छोड़ दी थी.
– लोकसभा और राज्यसभा सांसदों की बगावत का फायदा बीजेपी और कांग्रेस, दोनों को हुआ. पार्टी छोड़ने वाले 5 लोकसभा सांसद कांग्रेस में शामिल हो गए थे. जबकि, 10 राज्यसभा सांसदों ने बीजेपी को ज्वॉइन कर लिया था.