27 मंदिरों को तोड़कर बनी कुतुब मीनार और भगवान शिव की मंदिर के ऊपर बने ज्ञानवापी को लेकर देश भर में मंदिर और मस्जिद की डिबेट हो रही है। मुगल आक्रांताओं ने हजारों मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनवाईं। क्या तलवार के बल पर जबरन जिन स्थानों पर मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं? उन्हें मस्जिदें मानी जानी चाहिए? अनेक मस्जिदें ऐसी हैं जिनकी दीवारें आज भी मंदिर के हैं, उनके सिर्फ ऊपरी गुंबदों के आकार को बदलकर मस्जिद का रूप दिया गया है।
क्या ये मस्जिदें हुईं? वैसे भी इस्लाम किसी की इबादतगाह को तोड़कर मस्जिद बनाने की अनुमति नहीं प्रदान करता है। मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदों पर महात्मा गाँधी ने क्या कहा है – साक्ष्य, तथ्य और इतिहास के आईने में इसे समझने की कोशिश करते हैं। 27 जुलाई, 1937 को प्रकाशित एक लेख में महात्मा गाँधी ने लिखा है – “जो मस्जिदें मंदिर तोड़कर बनाई गई हैं, वे गुलामी की निशानी हैं।” इस लेख की तस्वीर आप देख सकते हैं, पढ़ सकते हैं और समझ सकते हैं कि गाँधी जी के विचार क्या हैं।
ध्वस्त किए गए मंदिरों और उसके ऊपर बने मस्जिदों पर महात्मा गाँधी की राय
गाँधी जी का ये लेख ‘सेवा समर्पण’ (दिल्ली की मासिक पत्रिका) में, 27 जुलाई, 1937 को प्रकाशित किया गया था। इस आर्टिकल में महात्मा गाँधी ने श्रीराम गोपाल ‘शरद’ के पत्र का जवाब भेजा है। इसमें गाँधी जी ने खुलकर अपने विचार साझा किए हैं। आइए, बताते हैं कि महात्मा गाँधी ने क्या लिखा है इस लेख में।
इसमें महात्मा गाँधी ने लिखा है, “किसी भी धार्मिक उपासना गृह के ऊपर बलपूर्वक अधिकार करना बड़ा जघन्य अपराध है। मुगल काल में धार्मिक धर्मांधता के कारण मुगल शासकों ने हिंदुओं के बहुत से धार्मिक स्थानों पर कब्जा कर लिया, जो हिंदुओं के पवित्र आराधना स्थल थे। इनमें से कई को लूटा गया और कई को मस्जिदों में तब्दील कर दिया गया। हालाँकि, मंदिर और मस्जिद दोनों ही भगवान की पूजा करने के पवित्र स्थल हैं और दोनों में कोई अंतर नहीं है। मुस्लिमों और हिंदुओं के पूजा करने का तरीका अलग है।”
महात्मा गाँधी ने आगे लिखा था, “इसी तरह हिन्दुओं के जिन धार्मिक स्थलों पर मुस्लिमों का कब्जा है, उन्हें खुशी-खुशी हिन्दुओं को सौंप देना चाहिए। इससे आपसी भेदभाव दूर होगा और हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच एकता बढ़ेगी, जो भारत जैसे देश के लिए वरदान साबित होगी।” 27 जुलाई, 1937 को ‘नवजीवन’ के इस अंक में गाँधी जी बिना किसी लाग-लपेट के साफ-साफ कहते हैं कि हिंदुओं की जिन धार्मिक स्थलों पर मुस्लिमों का कब्जा है उन्हें खुशी-खुशी हिंदुओं को सौंप देना चाहिए।
महात्मा गाँधी ने मंदिर गिरा के बनाए गए मस्जिदों पर और क्या कहा था?
85 वर्ष पहले जिस बात को गाँधी जी ने कहा था अब उस पर अमल करने का समय आ गया है। महात्मा गाँधी ने 1925 में भी मस्जिदों द्वारा मंदिरों की जमीनों पर अवैध कब्जे पर मंदिरों के पुनर्निर्माण की बात कही थी।
यही नहीं, गाँधी जी ‘यंग इंडिया’ के 5 फरवरी, 1925 को एक दूसरे लेख में लिखते हैं- “अगर ‘अ’ (हिन्दू) का कब्जा अपनी जमीन पर है और कोई शख्स उसपर कोई इमारत बनाता है, चाहे वह मस्जिद ही हो, तो ‘अ’ को यह अख्तियार है कि वह उसे गिरा दे। मस्जिद की शक्ल में खड़ी की गई हर एक इमारत मस्जिद नहीं हो सकती। वह मस्जिद तभी कही जाएगी जब उसके मस्जिद होने का धर्म-संस्कार कर लिया जाए। बिना पूछे किसी की जमीन पर इमारत खड़ी करना सरासर डाकेजनी है।”
अब समय आ गया है कि गाँधी के अनुयायी भी इसका समर्थन करें और गाँधी जी की इस सलाह पर अमल करें, जिससे समाज में भाईचारा व्याप्त सके। ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की दुहाई देने वाले इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं? क्या गंगा-जमुनी तहजीब की सारे ठेकदारी हिंदुओं के पास है ? इसमें मुस्लिम पक्ष का कोई रोल नहीं है? इस तहजीब को बनाए रखने के लिए मुस्लिमों को भी आगे आना चाहिए और जिन-जिन स्थानों पर विदेशी लुटेरों और आक्रांताओं ने जबरन मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाई हैं, उन्हें हिंदुओं को सौंपकर उदारता का परिचय देना चाहिए।
सभार : ब्रिजेश द्विवेदी