नई दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को मंकीपाक्स रोग के प्रबंधन पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नया दिशा-निर्देश जारी किया है। दिशानिर्देशों के अनुसार, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि संक्रामक अवधि के दौरान किसी रोगी या उनकी दूषित सामग्री के साथ अंतिम संपर्क से 21 दिनों की अवधि में संकेतों / लक्षणों की शुरुआत के लिए संपर्कों की कम से कम दैनिक निगरानी की जानी चाहिए।
भारत में मंकीपाक्स का अभी एक भी संदिग्ध मरीज नहीं पाया गया है, लेकिन फिर भी इसे नजरअंदाज करना जानलेवा साबित हो सकता है। मंकीपाक्स की रोकथाम और नियंत्रण के लिए टीकाकरण का आकलन करने के लिए अब स्टडी चल रही है।
वास्तव में मंकीपाक्स चेचक की तरह होने वाला एक दुर्लभ वायरल संक्रमण है। यह पहली बार 1958 में अनुसंधान के लिए रखे गए बंदरों में खोजा गया था। चूंकि एक बार बंदर के बीच यह बीमारी फैली थी, इसलिए इसका नाम मंकीपाक्स रखा गया। मानव में मंकीपाक्स का पहला मामला 1970 में सामने आया था। यह रोग मुख्य रूप से मध्य और पश्चिम अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय वर्षावन क्षेत्रों में होता है। यह वायरस पाक्सविरिडे परिवार से संबंधित है, जिसमें चेचक रोग पैदा करने वाले वायरस भी शामिल हैं।
मंकीपाक्स के मरीजों में अधिकतर बुखार और चकते जैसे लक्षण पाए जाते हैं। मंकीपाक्स चेचक की तुलना में कम संक्रामक भी है। इससे होने वाली दिक्कतें भी चेचक की अपेक्षा कम घातक हैं। इसके लक्षण दो से चार सप्ताह तक दिखाई देते हैं। हालांकि, कुछ रोगी गंभीर भी हो सकते हैं। संक्रमित व्यक्ति चकते दिखने से लेकर सभी चकतों की पपड़ी गिरने तक संक्रमण का शिकार हो सकता है। इसमें मृत्यु दर एक से 10 प्रतिशत तक हो सकती है।