अलीगढ़/लखनऊ। अलीगढ़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर एक विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया है । इस नाम से बहुत कम लोग परिचित हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि राजा जी की ख्याति कम है । क्या आप जानते हैं महेन्द्र प्रताप ने ही काबुल में रहते हुए भारत की पहली अंतरिम सरकार का गठन किया था, उस सरकार के मुखिया खुद राजा जी थे । आज जहां उत्तर प्रदेश का हाथरस जिला पड़ता है, वहीं राजा महेंद्र प्रताप सिंह की रियासत हुआ करती थी। इतना ही नहीं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जिस जमीन पर बना है, वह राजा साहब के खानदान की ही दी हुई है। राजा जी के नाम पर विश्वविद्यालय स्थापित करने की मांग पिछले लंबे समय से हो रही थी, अब जाकर ये मांग साकार हुई ।
महेन्द्र प्रताप सिंह का जन्म 1886 में अलीगढ़ की मुरसान रियासत के वारिस के रूप में हुआ था । महज 3 साल की उम्र में उन्हें हाथरस के राजा हरनारायण ने गोद ले लिया । शुरुआती शिक्षा एक सरकारी स्कूल में हुई, लेकिन बाद में उन्हें मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेजिएट स्कूल में दाखिल कराया गया । यही कॉलेज बाद में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बना । यहां दाखिले के 10 साल बाद ही उन्होने 1905 में कॉलेज छोड़ दिया । छात्र जीवन से ही राजा जी की राजनीति में गहरी दिलचस्पी थी। 1906 में महेंद्र प्रताप ने कोलकाता जाकर कांग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लिया। उस दौरान स्वदेशी आंदोलन में शामिल कई नेताओं से मुलाकात करने वाले महेंद्र प्रताप के दिल में भी देशभक्ति की आग धधक रही थी ।
पहला विश्व युद्ध के दौरान, दिसंबर 1914 में राजा जी तीसरी बार देश से बाहर गए। इस उम्मीद में कि विदेशी ताकतों की मदद से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराएंगे। यूरोप के कई देशों में घूमने और संपर्क साधने के बाद महेंद्र प्रताप ने काबुल का रुख किया। 1 दिसंबर, 1915 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने 28वें जन्मदिन पर काबुल में भारत की अंतरिम सरकार का गठन किया । इस सरकार के राष्ट्रपति वो खुद बने और मौलवी बरकतुल्लाह को प्रधानमंत्री बनाया । इसके बाद अगले कुछ साल यूं ही संघर्ष में गुजरे।
जाना पड़ा जापान
दिमीर लेनिन के साथ महेंद्र प्रताप के दोस्ताना ससंबंध थे । अंग्रेजों के लिए खतरा बनते जा रहे राजा जी को तब लेनिन ने रूस बुलाया था लेकिन जब अंग्रेजी हुकूमत ने उनक सिर पर इनाम रख दिया, उनकी सारी संपत्ति जब्त कर ली और भगोड़ा घोषित कर दिया तब राजा साहब को 1925 में जापान भागना पड़ा।
1957 में वाजपेयी को हरा पहुंचे संसद
जापान में भी राजा साहब की यही कोशिश रही कि कैसे विश्व युद्ध से उपजे हालातों का फायदा उठाकर भारत को आजाद कराया जाए । राजा महेन्द्र प्रताप को 1932 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था । राजा जी, 32 साल बाद, 1946 में भारत लौटे थे और सीधे महात्मा गांधी से मिलने वर्धा गए थे । हालांकि जवाहर लाल नेहरू सरकार की ओर से उन्हें सम्मान नहीं दिया गया, कांग्रेस में जगह मिलती ना देख 1957 में महेंद्र प्रताप ने मथुरा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की, इस सीट से उस साल जनसंघ ने अटल बिहारी वाजपेयी को खड़ा किया था। राजा महेंद्र प्रताप सिंह 1979 मे चल बसे ।