दिनभर रहेगा सर्वार्थ सिद्धि योग व रोहिणी नक्षत्र
सूर्य और मंगल के मिलन से होगा आर्थिक लाभ, बढ़ेगी कीर्ति
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने में अब कुछ ही घंटे शेष बचा है। इस बड़े पर्व के आयोजन की तैयारियां भी अंतिम दौर में हैं। जन्माष्टमी तिथि के हिसाब से मनाने की परंपरा है। इसीलिए इस बार 30 अगस्त को ये पर्व मनाया जाएगा। द्वापर युग में श्रीकृष्ण का अवतार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में हुआ था। उस समय चंद्र उच्च राशि वृषभ में था। उस दिन रोहिणी नक्षत्र था। यह संयोग ही है इस बार भी ग्रह-नक्षत्रों के अनूठे योग से श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग के समय बने दुर्लभ संयोगों में होगा। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा-अर्चना मध्य रात्रि में की जाती है।
ज्योतिषियों की मानें तो श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि में हुआ था। इस बार सोमवार को अष्टमी तिथि के साथ सुबह 6ः39 बजे से अगले दिन सुबह 9ः44 बजे तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा। इसके अलावा सर्वार्थसिद्धि योग के साथ ही इस दिन चंद्रमा वृष राशि में रहेगा। साथ ही मध्य रात्रि में सभी नौ ग्रह केंद्र त्रिकोण का योग बनाएंगे। यह संयोग आमजन के साथ ही व्यापारी वर्ग के लिए श्रेष्ठ साबित होगा। चंद्रमा के केंद्र में त्रिकोण में स्थित होने से द्वापर युग जैसा ही दुर्लभ संयोग बनेगा। इसके अलावा इस बार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय चंद्रमा और बुध उच्च राशि में तथा सूर्य और शनि स्वराशि में रहेंगे। इसके अलावा वृषभ राशि में चंद्रमा संचार करेगा। इस दुर्लभ संयोग के कारण जन्माष्टमी का महत्व और बढ़ रहा है।
वैसे भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी में अष्टमी व अर्द्धचंद्र की बहुत महत्ता है। क्योंकि यह दृश्य एवं दृष्टा अर्थात दिखने वाले भौतिक जगत एवं अदृश्य आध्यात्मिक जगत के वास्तविक पहलुओं के बीच उत्तम संतुलन को दर्शाता है। अष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इस बात को दर्शाता है कि उनका आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों जगत में आधिपत्य था। श्री कृष्ण को द्वापर युग का युगपुरुष कहा गया है। सनातन धर्म के अनुसार वे विष्णु के आठवें अवतार है। जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि भी कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान अथवा मंत्र जपने से संसार की मोह माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी व्रत के सुविधि पालन से अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य की प्राप्ति होती है। सर्वविदित है कि भादों माह की षष्ठी को बलराम और अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस माह में भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
ज्योतिष गणनाओं के अनुसार इस साल जन्माष्टमी पर्व सूर्य और मंगल का अद्भुत संयोग बन रहा है। इस दिन सूर्य और मंगल दोनों ही सिंह राशि में एक साथ विराजमान रहेंगे। ऐसे में दो राशि वालों को शुभ फल की प्राप्ति होगी। आर्थिक लाभ के योग बनेंगे। वृश्चिक राशि वालो को किसी नए काम की शुरुआत के लिए सूर्य का गोचर करना लाभकारी रहेगा। प्रमोशन या आर्थिक लाभ के भी योग बनेंगे। नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को शुभ समाचार मिल सकता है। इस राशि के लोगों को विभिन्न कार्यों में सफलता मिलेगी। उनकी नौकरी और व्यापार के लिए भी शुभ समय है। शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों को शुभ परिणाम प्राप्त होंगे। लेन- देन के लिए समय शुभ रहेगा। परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करेंगे। दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा। मान- सम्मान में बढ़ोतरी होगी। मिथुन राशि वालों को परिवार से शुभ समाचार मिल सकता है। धन- लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत बनेगा। व्यवसाय में लाभ के योग बनेंगे। भाग्य का साथ मिलेगा। नौकरी और व्यापार के लिए समय शुभ रहेगा। आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना होगी। जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा। मान- सम्मान और पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। दांपत्य जीवन में सुख का अनुभव करेंगे।
पूजा- विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें.
घर के मंदिर में साफ- सफाई करें.
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें.
सभी देवी- देवताओं का जलाभिषेक करें.
इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप यानी लड्डू गोपाल की पूजा करें.
लड्डू गोपाल को झूला झूलाएं.
रात्रि में भगवान श्री कृष्ण की विशेष पूजा- अर्चना करें.
लड्डू गोपाल को मिश्री, मेवा का भोग भी लगाएं.
लड्डू गोपाल की आरती करें.
इस दिन अधिक से अधिक लड्डू गोपाल का ध्यान रखें.
पूजा सामग्री
खीरा, दही, शहद, दूध, एक चौकी, पीला साफ कपड़ा, पंचामृत, बाल कृष्ण की मूर्ति, सांहासन, गंगाजल, दीपक, घी, बाती, धूपबत्ती, गोकुलाष्ट चंदन, अक्षत, माखन, मिश्री, भोग सामग्री, तुलसी का पत्ता सामग्री लिस्ट में शामिल है.
शुभ मुहूर्त
29 अगस्त की रात 11 बजकर 25 मिनट से अष्टमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी
31 अगस्त की रात 1 बजकर 59 मिनट पर अष्टमी तिथि समाप्त होगी
30 अगस्त की सुबह 06 बजकर 39 मिनट से रोहिणी नक्षत्र लगेगा
31 अगस्त की सुबह 09 बजकर 44 मिनट पर रोहिणी नक्षत्र समाप्त होगी.
पूजा का अभिजीत मुहूर्त
जन्माष्टमी के दिन अभिजीत मुहूर्त 30 अगस्त की सुबह 11 बजकर 56 मिनट से देर रात 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा.
मथुरा-ब्रजभूमि के कण-कण में बसते हैं श्रीकृष्ण
माधव, केशव, कान्हा, कन्हैया जैसे नामों से पुकारे जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण का जन्म दिन “जन्माष्टमी“ के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाने वाले श्रीकृष्ण की ना केवल भारत में बल्कि पूरे जगत में अपार महिमा है। उन्हें मानने वालों की संख्या करोड़ों में है। यही कारण है कि ना केवल देश में बल्कि विदेशों में भी यशोदा के कान्हा के कई मंदिर स्थापित हैं। कहते हैं कि अपने भक्तों के लिए भगवान श्रीकृष्ण सृष्टि के हर कण में बसे हैं। चाहे वह वृंदावन हो या ब्राजील या बेल्जियम यह कृष्ण के प्रति हमारी भक्ति का ही उत्कर्ष है कि विभिन्न सदियों में जगह-जगह उनके मंदिर बनाये गये हैं और आगे भी बनाये जाते रहेंगे
विष्णु जी के आठवें अवतार श्रीकृष्ण 125 वर्ष पृथ्वी पर रहे। इस दौरान उन्होंने कंस जैसे अधर्मियों का वध किया। महाभारत युद्ध में पांडवों को जीत दिलाई। द्वारिका नगरी बसाई थी। इस तरह वे पृथ्वी पर करीब 125 वर्ष रहे और फिर अपने वैकुंठ धाम लौट गए। लेकिन उनकी लीलाएं आज भी धरती पर लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर रची-बसी है। मथुरा ब्रजभूमि के कण-कण में भगवान श्रीकृष्ण समाएं हुए हैं। जहां आज भी गोपाल की लीलाओं को साक्षात देखा जा सकता है। उनकी लीलाओं का अनुभव किया जा सकता है। मान्यताओं के अनुसार तीर्थराज प्रयाग यमुना के घाटों पर श्रीयमुना महारानी की देखरेख में कान्हा की पूजा करते हैं। भगवान के जन्म के बाद उनके पिता वासुदेव यमुना से होकर गोकुल गए थे। तब यमुना ने श्रीकृष्ण के चरण छूए थे।वहीं यमुना के आसपास भगवान ने कई लीलाओं का जिक्र शास्त्रों में है।
कहां जाता है कि यमुना में स्नान करने से जातकों के सभी पाप दूर होते हैं। गोवर्धन की परिक्रमा के दौरान कृष्ण कुंड और राधा कुंड को महसूस किया जा सकता है। कहते है जहां नंदरायजी मंदिर है, वहां गोपाल का घर हुआ करता था। भगवान कृष्ण ने पूरा बचपन यहीं बिताया था। निधिवन के बारे में तो कहा जाता है यही कृष्ण ने रासलीला रचाई थीं। इस वन में एक मंदिर भी है, जिसमें प्रतिदिन कान्हा के लिए सजावट की जाती है। मान्यताओं के अनुसार यहां रोजाना कृष्ण और राधा विश्राम करते हैं। मंदिर का सुबह दरवाजा खुलता है, तो दातुन गिली मिलती है व बिस्तर फैला रहता है। निधिवन में कोई भी व्यक्ति और जानवर रात को नहीं रुकता है। मथुरा से 50 किमी दूर काम्यवन है। यहां की एक पहाड़ी में थाल और कटोरी का चिन्ह बना हुआ है। शास्त्रों के अनुसार यहां कृष्ण ने व्योमासुर असुर का वध किया था। वहीं भगवान परशुराम ने यहां तपस्या भी की थी। पांडवों ने भी यहां कुछ समय बिताया है।
भगवान श्रीकृष्ण हिंदू पौराणिक कथाओं में एक ऐसे भगवान है, जिनके जन्म और मृत्यु के बारे में काफी कुछ लिखा गया है। जब से श्रीकृष्ण ने मानव रूप में धरती पर जन्म लिया, तब से लोगों द्वारा भगवान के पुत्र के रूप में पूजा की जाने लगी। भगवत गीता में एक लोकप्रिय कथन है- “जब भी बुराई का उत्थान और धर्म की हानि होगी, मैं बुराई को खत्म करने और अच्छाई को बचाने के लिए अवतार लूंगा।” जन्माष्टमी का त्यौहार सद्भावना को बढ़ाने और दुर्भावना को दूर करने को प्रोत्साहित करता है। यह दिन एक पवित्र अवसर के रूप में मनाया जाता है जो एकता और विश्वास का पर्व है। उनकी दोस्ती सिर्फ प्रेम को ही नहीं बल्कि एक-दूसरे के प्रति आदर और सम्मान के लिए भी प्रसिद्ध है। किंतु दुःख की बात यह है कि आज के समय में दोस्ती के असली मायने को कोई नहीं जानता। महाभारत में जिस तरह से श्रीकृष्ण ने पांडवों से यह कहा था कि पीछे हटने की बजाए प्रगति पथ पर मार्ग प्रशस्त करें। ठीक उसी तरह आपको भी इसी प्रगति पथ चलना चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि एक कम्पनी से लगाव होने के कारण बढिया अवसरों को छोड़ रहा है, तो यह उसकी सबसे बड़ी मूर्खता है क्योंकि वह अपने अंसमदज को मार देता है। इसलिए हमें अगर कहीं ज्यादा मिलने पर स्थान परिवर्तन में दिखाई देता है तो फिर स्थान परिवर्तन करने में ही आपकी भलाई है। इसलिए श्री कृष्ण के बताये पथ पर और उनकी भक्ति करने वाला व्यक्ति ही अपनी बुद्धि पर विजय प्राप्त कर सकता है।
गीता के अनुसार हवा को वश में करना तो फिर भी संभव है, लेकिन दिमाग को वश में कर पाना असंभव है। लेकिन जो व्यक्ति अपने दिमाग को वश में करना सीख गया वह आसानी से दुनिया की हर जगह सफलता को हासिल कर सकता है। गीता में श्रीकृष्ण ने एक श्लोक के माध्यम से कहा है कि किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए स्मृति और बुद्धि का स्वस्थ होना बहुत जरुरी है। बुद्धि मतलब अच्छी चीजों को परखने की क्षमता, ज्ञान मतलब सभी पहलुओं की बारीकी से जानकारी और स्मृति यानी बुरी चीजों को भुलाने और अच्छी चीजों को याद करने की क्षमता। यदि इन तीनों पर आज हम केंद्रित हो जाएँ तो जीवन की लगभग सभी कठिनाइयों से छुटकारा पाया जा सकता है। कृष्ण संपूर्ण जीवन के समर्थक हैं। वे पल-पल आनन्द से जीने की प्रेरणा देते हैं। दुनिया चाहे तुम्हारे बारे में कुछ भी कहे, लेकिन तुम स्वयं खुद को दोषी मत बनाओ। जिस दिन तुम अपनी नजरों में गिर गए, उस दिन दुनिया में तुम्हें कोई नहीं उठा सकता। श्री कृष्ण बताते हैं कि अगर आप वक्त के साथ तालमेल बैठाकर आगे बढ़ते हैं तो सफलता मिलना निश्चित है। इसके साथ आपके अंदर धैर्य भी जरूरी है। जीवन में चाहे कैसी भी परिस्थितियां आए आपको सिर्फ आगे बढ़ते चले जाना है और बिना चिंता किए अपना कार्य को सक्षम बनाना है। इसी तरह से बेहतर जीवन जीने का सूत्र यही है जिसमे साहस, अनुशासन की बात, धैर्य, क्रोध पर नियंत्रण, विचार, गलतियों से सीख, विनम्र व्यवहार बहुत जरुरी है।
एक समय जो हमको मिलता है कुछ कर गुजरने के लिए और यह मौका जिंदगी बार बार नहीं देती। मौका है जिंदगी को बेहतर बनाने का। इसके लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता है। श्रीकृष्ण को मैनेजमेंट गुरु कहा जाता है। मौकों का लाभ और अवसरों पर बाजी अपने पक्ष में कर लेने की कला दुनिया को उन्होंने ही सिखाई है। आप जहां रहें, जैसे रहें, अगर उसमें खुश रहना सीख गए समझिए आप सफल हैं। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम बिना धैर्य मन से जी रहे हैं और शायद यही कारण है कि हम सफल तो हैं लेकिन भीतर ही भीतर अशांति भरी हुई है। इसलिए मौकों को समझें और प्रत्येक कार्य को धैर्य के साथ कीजिये। यह तो आप जानते हैं कि श्री कृष्ण का जीवन विपरीत परिस्थितियों से काफी गुजरा है। लेकिन मुश्किलों में काम करने का उनका अपना मैनेजमेंट था। मथुरा के कारागृह में जन्म लेते ही गोकुल के लिए भागने से लेकर अंतिम दिनों में यदुकुल के अंतर्कलह तक, श्रीकृष्ण ने तनाव ही झेला, भागमभाग ही की है, लेकिन हम उन्हें पूजते हैं एक मुस्कराती हुई तस्वीर में। श्री कृष्ण के जीवन से यही सीख मिलती है कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों, आप मुस्कुराना ना छोड़ें। चेहरे पर चमकती मुस्कुराहट ही आपको कई समस्याओं के समाधान का रास्ता देती हैं। याद रखिये जीवन हमेशा एक ही लकीर पर नहीं चल सकता। परिस्थितियां तेजी से बदलती हैं, अगर उनमें रहना सीख लिया जाए तो समय का हर पल हमारे साथ चलने को तैयार है। बस हमें यह तय करना होगा कि हमें उस परिस्थिति का सामना कैसे करना है
मातृत्व का संदेश…
श्रीमद् भागवत के 6ठे अध्याय में बताया गया है कि पूतना नामक क्रूर राक्षसी ने बालक श्रीकृष्ण को मारने हेतु अपनी गोद में लेकर उनके मुंह में अपना स्तन दे दिया जिसमें बड़ा भयंकर और किसी प्रकार न पच सकने वाला विष लगा हुआ था। निशाचरी पूतना को स्तनों में इतनी पीड़ा हुई कि वह अपने को छिपा न सकी, राक्षसी रूप में प्रकट हो गई। उसके शरीर से प्राण निकल गए, मुंह फट गया, बाल बिखर गए और हाथ-पांव फैल गए। पूतना के भयंकर शरीर को सबके सब ग्वाल और गोपियों ने देखा कि बालक श्रीकृष्ण उसकी छाती पर निर्भय होकर खेल रहे हैं, तब वे थोड़ी घबराईं और श्रीकृष्ण को उठा लिया। जिस तरह वर्तमान में माताएं अपने बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए टोने-टोटके, प्रार्थना आदि रक्षास्वरूप करती हैं, ठीक उसी तरह प्राचीन समय में भी रक्षास्वरूप उपाय किए जाते थे जिसमें ममत्व की झलक विद्यमान होती थी। यशोदा और रोहिणी के साथ गोपियों ने गाय की पूंछ घुमाना आदि उपायों से बालक श्रीकृष्ण के अंगों की सब प्रकार से रक्षा की। पूतना एक राक्षसी थी जिसके स्तन का दूध भगवान ने बड़े प्रेम से पिया। उन गायों और माताओं की बात ही क्या है, वे भगवान श्रीकृष्ण को अपने पुत्र के रूप देखती थीं, फिर जन्म-मृत्युरूपी संसार के चक्र में कभी नहीं पड़ सकतीं। पूतना को परमगति प्राप्त होना यानी पूतना-मोक्ष भी मातृत्व का संदेश है।
श्रीकृष्ण के 13 चमत्कारी मंत्र
कृं कृष्णाय नमः… यह श्रीकृष्ण का बताया मूलमंत्र है जिसके प्रयोग से व्यक्ति का अटका हुआ धन प्राप्त होता है। इसके अलावा इस मूलमंत्र का जाप करने से घर-परिवार में सुख की वर्षा होती है। यदि आप इस मंत्र का लाभ पाना चाहते हैं तो प्रातःकाल नित्यक्रिया और स्नानादि के पश्चात एक सौ आठ बार इसका जाप करें। ऐसा करने वाले मनुष्य सभी बाधाओं एवं कष्टों से सदैव मुक्त रहते हैं। इस मंत्र से कहीं भी अटका धन तुरंत प्राप्त होता है।
ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा… यह मंत्र श्रीकृष्ण का सप्तदशाक्षर महामंत्र है। इस महामंत्र का पांच लाख जाप करने से ही सिद्धी प्राप्त होती है। जिस व्यक्ति को यह मंत्र सिद्ध हो जाता है उसे करोड़पति होने से कोई नहीं रोक सकता।
गोवल्लभाय स्वाहा… इस सात अक्षरों वाले मंत्र से अपार धन प्राप्ति होती है। उठते-बैठते, चलते-फिरते… हर समय इस मंत्र का उच्चारण सही रूप से करने से लाभ होता है।
गोकुल नाथाय नमः… इस आठ अक्षरों वाले श्रीकृष्णमंत्र से सभी इच्छाएं व अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं।
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलांगाय नमः… आर्थिक स्थिति को सुधारने वाले इस मंत्र का प्रयोग जो भी साधक करता है उसे संपूर्ण सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
ओउम् नमो भगवते श्रीगोविन्दाय…यह ऐसा मंत्र है जो विवाह से जुड़ा है। जो जातक प्रेम विवाह करना चाहते हैं लेकिन किन्हीं कारणों से हो नहीं रहा तो वे प्रातः काल में स्नान के बाद ध्यानपूर्वक इस मंत्र का 108 बार जाप करें। कुछ ही दिनों में उन्हें चमत्कारी फल प्राप्त होगा।
ऐं क्लीं कृष्णाय ह््रीं गोविंदाय श्रीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा र्ह्सो… यह मंत्र उच्चारण में थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन इसका प्रभाव उतना ही तेज है। यह मंत्र वाणी का वरदान देता है।
ओउम् श्रीं ह््रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री… यह 23 अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र है जो जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा को दूर करने में सहायक सिद्ध होता है। धन की बाधा नहीं होती।
ओउम् नमो भगवते नन्दपुत्राय आनन्दवपुषे गोपीजनवल्लभाय स्वाहा…यह श्रीकृष्ण का 28 अक्षरों वाला मंत्र है, जिसका जाप करने से मनोवांछित फल प्राप्ति होते हैं। जो भी साधक इस मंत्र का जाप करता है उसको समस्त अभीष्ट वांछित वस्तुएं प्राप्त होती हैं।
लीलादंड गोपीजनसंसक्तदोर्दण्ड बालरूप मेघश्याम भगवन विष्णो स्वाहा… श्रीकृष्ण के इस मंत्र में उन्तीस (29) अक्षर हैं, जिसका जो भी साधक एक लाख जप के साथ घी, शक्कर तथा शहद में तिल व अक्षत को मिलाकर हवन भी करे तो उसे स्थिर लक्ष्मी अर्थात स्थायी संपत्ति की प्राप्ति होती है।
नन्दपुत्राय श्यामलांगाय बालवपुषे कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा… श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया यह मंत्र 32 अक्षरों वाला है। इस मंत्र के जाप से समस्त आर्थिक मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यदि आप किसी आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं तो सुबह स्नान के बाद कम से कम एक लाख बार इस मंत्र का जाप करें। आपको जल्द ही सुधार देखने को मिलेगा।
ओउम् कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद मे. रमारमण विद्येश विद्यामाशु प्रयच्छ मेंः… 33 अक्षरों वाले इस मंत्र में ऐसी चमत्कारी शक्तियां हैं जिस पर आप विश्वास नहीं कर पाएंगे। इस श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक जाप करता है उसे समस्त प्रकार की विद्याएं निःसंदेह प्राप्त होती हैं। यह मंत्र गोपनीय माना गया है इसे करते समय किसी को पता नहीं चलना चाहिए।
कृष्णःकर्षति आकर्षति सर्वान जीवान् इति कृष्णः। ओम् वेदाः वेतं पुरुषः महंतां देवानुजं प्रतिरंत जीव से।। श्रीकृष्ण के इस मंत्र में तैंतीस (33) अक्षर हैं, जिसके नियमित जाप से धन से संबंधित किसी भी प्रकार का संकट टल जाता है।
सबसे प्रिय रहे अर्जुन
भक्तियोग में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा, जो भक्त आपके प्रेम में डूब रहकर आपके सगुण रूप की पूजा करते हैं वे आपको प्रिय हैं या फिर जो आपके शाश्वत, अविनाशी और निराकार रूप की पूजा करते हैं वे? दोनों में से कौन श्रेष्ठ हैं? श्रीकृष्ण बोले, जो लोग मुझमें अपने मन को एकाग्र करके निरंतर मेरी पूजा और भक्ति करते हैं तथा खुद को मुझे समर्पित कर देते हैं वे मेरे परम भक्त होते हैं। जो मन-बुद्धि से परे सर्वव्यापी, निराकार की आराधना करते हैं वे भी मुझे प्राप्त कर लेते हैं। मगर जो भक्त मेरे निराकार स्वरूप पर आसक्त होते हैं, उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है क्योंकि सशरीर जीव के लिए उस रास्ते पर चलना बहुत कठिन है। मगर हे अर्जुन, जो भक्त पूरे विश्वास के साथ अपने मन को मुझमें लगाते हैं और मेरी भक्ति में लीन रहते हैं उन्हें मैं जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देता हूं।
आकर्षक था श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व
उदाहरण के तौर पर वे यह नहीं जानते कि श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व इतना आकर्षक क्यों था और वे पूज्य श्रेणी में क्यों गिने जाते हैं? एक बार फिर, उन्हें यह भी ज्ञात नहीं है कि श्रीकृष्ण ने उस उत्तम पदवी को किस उत्तम पुरूषार्थ से पाया। अतः जब तक हम उन रहस्यों को पुर्णतः जानेंगे नहीं, तब तक श्रीकृष्ण दर्शन जैसे हमारे लिए अधुरा ही रह जायेगा। अमूमन किसी नगर या देश की जनता जन्मदिन उसी व्यक्ति का मनाती की जिनके जीवन में कुछ महानता रही हो। परंतु आप देखेंगे कि महान व्यक्ति भी दो प्रकार के हुए हैं। एक तो वे जिनका जीवन जन-साधारण से काफी उच्च तो था परंतु फिर भी उनकी मनसा पूर्ण अविकारी नहीं थी, उनके संस्कार पूर्ण पवित्र न थे, वे विकर्माजीत भी नहीं थे और उनकी काया सतोप्रधान तत्वों की बनी हुई नहीं थी। अब दूसरे प्रकार के महान व्यक्ति वे हैं जो पूर्ण निर्विकारी थे। जिनके संस्कार सतोप्रधान थे और जिनका जन्म भी पवित्र एवं धन्य था अर्थात कामवासना के परिणामस्वरूप नहीं अपितु योगबल से हुआ था। श्रीकृष्ण और श्रीराम ऐसे ही पूजन योग्य व्यक्ति थे। यहां ध्यान देने के योग्य बात यह है कि पहली प्रकार के व्यक्तियों के जीवन बाल्यकाल से ही गायन या पूजने के योग्य नहीं होते बल्कि वे बाद में कोई उच्च कार्य करते हैं जिसके कारण देशवासी या नगरवासी उनका जन्मदिन मनाते हैं। परंतु श्रीकृष्ण तथा श्रीराम जैसे आदि देवता तो बाल्यावस्था से ही महात्मा थे। वे कोई संन्यास करने या शिक्षा-दीक्षा लेने के बाद पूजने के योग्य नहीं बने और इसीलिए ही उनके बाल्यावस्था के चित्रों में भी उनको प्रभामण्डल से सुशोभित दिखाया जाता है जबकि अन्यान्य महात्मा लोगों को संन्यास करने के पश्चात अथवा किसी विशेष कर्तव्य के पश्चात ही प्रभामण्डल दिया जाता है। यही वजह हैं की श्रीकृष्ण की किशोरावस्था को भी मातायें बहुत याद करती हैं और ईश्वर से मन ही मन यही प्रार्थना करती हैं कि यदि हमें बच्चा हो तो श्रीकृष्ण जैसा। श्रीकृष्ण में तथा अन्य किशोरों में यही तो अंतर है कि उनकी काया सतोप्रधान तत्वों की बनी हुई थी, वे पूर्ण पवित्र संस्कारों वाले थे और उनका जन्म योगबल द्वारा हुआ था और उनका जन्म काम-वासना के भोग से नहीं हुआ था। मीराबाई ने तो श्रीकृष्ण की भक्ति के कारण आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया और इसके लिए विष का प्याला भी पीना सहर्ष स्वीकार कर लिया। जबकि श्रीकृष्ण की भक्ति के लिए, उनका क्षणिक साक्षात्कार मात्र करने के लिए और उनसे कुछ मिनट रास रचाने के लिए भी काम-विकार का पूर्ण बहिष्कार जरूरी है।
भक्त के बुलाने पर आते हैं श्रीकृष्ण
एक बार एक गरीब किसान था। उसने अपनी बेटी की शादी के लिए सेठ से पांच सौ रुपए उधार लिए। गरीब किसान ने अपनी बेटी की शादी के बाद धीरे-धीरे सब पैसा ब्याज समेत चुकता कर दिया। लेकिन उस सेठ के मन में पाप आ गया। उसने सोचा ये किसान अनपढ़ है। इसे लूटा जाए। गरीब किसान ने कहा की मैंने आपका सारा रुपया-पैसे चुकता कर दिया है। अब सेठ गुस्सा हो गया और कोर्ट के द्वारा उस पर मुकदमा कर दिया। जब कोर्ट में हाजिर हुआ बांके बिहारी का परम भक्त। जज बोले की आप कह रहे हो की आपने एक एक रुपए पैसा चुकता कर दिया। आपके पास कोई गवाह है? लेकिन गांव के किसी भी व्यक्ति ने सेठ के डर से किसी ने भी गवाही नही दी। उसने कहा की मेरे गवाह तो बिहारी लाल हैं। जज ने पूछा की, कहां रहता है बिहारी लाल? किसान ने कहा, वो वृन्दावन में रहता है। कोर्ट से सम्मन लेकर कोर्ट का व्यक्ति वृन्दावन में बिहारी पूरा पहुंचा। और साइकिल पर सबसे पूछता घूम रहा है की यहां कोई बिहारी लाल रहता है। लेकिन कोई नही जानता। फिर वह व्यक्ति बांके बिहारी मंदिर के पीछे पहुंचा। वहां पर एक हाथी की सूंड बनी हुई है जहां से बांके बिहारी के चरणों का चरणा मृत टपकता है। और लोग उसे अपने सर पर धारण करते हैं। वहीं पर एक 75 वर्ष के वृद्ध आए। जिनके हाथ में लाठी थी। और उस कोर्ट के कर्मचारी ने उससे पूछा की यहां कोई बिहारी लाल नाम का व्यक्ति रहता है? उस बूढ़े आदमी ने कहा मेरा नाम ही बिहारी लाल है। कर्मचारी ने कहा की आपके नाम सम्मन है।
उसने सम्मन ले लिया और अपने हस्ताक्षर कर दिए। उस दिन कोर्ट में यही चर्चा थी की ऐसा कौन सा व्यक्ति बिहारी लाल है? जो इसकी ओर से गवाही देगा। गांव के लोग भी इस चीज को देखने के लिए कचहरी में उपस्थित थे। सारा गांव एकत्र हुआ है। वो किसान भी आया। उसके लिए तो बिहारी लाल और कोई नही बांके बिहारी जी ही थे। जब मुकदमा नंबर पर आया तो कोर्ट में नाम बुलाया गया। बिहारी लाल हाजिर हो। बिहारी लाल हाजिर हो। दो बार आवाज लगी तो कोई नही आया। फिर आवाज लगी बिहारी लाल हाजिर हो। तो वही वृद्ध व्यक्ति कोर्ट में लाठी टेकता हुआ हाजिर हो गया। और उसने जज के सामने कहा की हुजूर, इस किसान ने महाजन का पाई पाई चुकता कर दिया है। जज ने कहा की इसका सबूत (प्रमाण) क्या है? उस वृद्ध व्यक्ति ने कहा इसके घर में, फलाने कमरे में, अलमारी में, इतने नंबर की बही (हिसाब किताब वाली फाइल) रखी गई है। ये महाजन झूठ बोल रहा है। कोर्ट का कर्मचारी उसी समय महाजन के घर गया और वो बही लेकर आया।जब जज ने वो फाइल देखी तो सारा का सारा हिसाब-किताब चुकता था। लोग इस बात को देखकर बड़े अचम्भे में पड़े हुए थे। आपस में चर्चा कर रहे थे। लेकिन वो बिहारी लाल कोर्ट से अंतर्ध्यान हो चुके थे।जज ने किसान से पूछा- आपने ये बिहारी लाल नाम बताया। ये कौन हैं ? आपके कोई रिश्तेदार हैं क्या? किसान ने कहा- हुजूर, मैं सच कहता हूँ की मुझे नही मालूम ये कौन थे ? जज ने कहा फिर आपने गवाही में बिहारी लाल नाम किसका लिखवाया? किसान ने कहा की गांव से कोई भी व्यक्ति मेरी और से गवाही देने को तैयार नही हुए। तो मेरा तो एक ही आश्रय थे। वो बांके बिहारी ही मेरे बिहारी लाल थे। और किसी बिहारी लाल को मैं नही जानता हूं। ये सुनते ही उस जज की आँखों में आंसू भर गए और जज ने कोर्ट में रिजाइन ने दिया। जिसकी कोर्ट में मुझे जाना था वो मेरी कोर्ट में आए। उसी समय वो वृन्दावन की यात्रा पर निकल पड़े। और वो जज, जज बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए। वहीँ वृन्दावन में बिहारी जी के मंदिर पर पड़े रहते थे। और बांके बिहारी में उनका अनन्य प्रेम हो गया।
अर्जुन के चहेते तो राधा के दीवाने थे श्रीकृष्ण
भक्तियोग में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा, जो भक्त आपके प्रेम में डूब रहकर आपके सगुण रूप की पूजा करते हैं वे आपको प्रिय हैं या फिर जो आपके शाश्वत, अविनाशी और निराकार रूप की पूजा करते हैं वे? दोनों में से कौन श्रेष्ठ हैं? श्रीकृष्ण बोले, जो लोग मुझमें अपने मन को एकाग्र करके निरंतर मेरी पूजा और भक्ति करते हैं तथा खुद को मुझे समर्पित कर देते हैं वे मेरे परम भक्त होते हैं। जो मन-बुद्धि से परे सर्वव्यापी, निराकार की आराधना करते हैं वे भी मुझे प्राप्त कर लेते हैं। मगर जो भक्त मेरे निराकार स्वरूप पर आसक्त होते हैं, उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है क्योंकि सशरीर जीव के लिए उस रास्ते पर चलना बहुत कठिन है। मगर हे अर्जुन, जो भक्त पूरे विश्वास के साथ अपने मन को मुझमें लगाते हैं और मेरी भक्ति में लीन रहते हैं उन्हें मैं जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देता हूं। एक दिन रुक्मणी ने भोजन के बाद, श्री कृष्ण को दूध पीने को दिया। दूध ज्यादा गरम होने के कारण श्री कृष्ण के हृदय में लगा और उनके श्रीमुख से निकला- ‘हे राधे!‘ सुनते ही रुक्मणी बोलीं- प्रभु! ऐसा क्या है राधा जी में, जो आपकी हर सांस पर उनका ही नाम होता है? मैं भी तो आपसे अपार प्रेम करती हूं… फिर भी, आप हमें नहीं पुकारते!! श्री कृष्ण ने कहा -देवी! आप कभी राधा से मिली हैं? और मंद मंद मुस्काने लगे…अगले दिन रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंचीं। राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा… और, उनके मुख पर तेज होने कारण उसने सोचा कि ये ही राधाजी हैं और उनके चरण छुने लगीं! तभी वो बोली -आप कौन हैं ? तब रुक्मणी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया…तब वो बोली- मैं तो राधा जी की दासी हूं। राधाजी तो सात द्वार के बाद आपको मिलेंगी। रुक्मणी ने सातों द्वार पार किये… और, हर द्वार पर एक से एक सुन्दर और तेजवान दासी को देख सोच रही थी कि अगर उनकी दासियां इतनी रूपवान हैं… तो, राधारानी स्वयं कैसी होंगी? सोचते हुए राधाजी के कक्ष में पहुंचीं… कक्ष में राधा जी को देखा- अत्यंत रूपवान तेजस्वी जिसका मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था। रुक्मणी सहसा ही उनके चरणों में गिर पड़ीं… पर, ये क्या राधा जी के पूरे शरीर पर तो छाले पड़े हुए हैं! रुक्मणी ने पूछा- देवी आपके शरीर पे ये छाले कैसे? तब राधा जी ने कहा- देवी! कल आपने कृष्णजी को जो दूध दिया… वो ज्यादा गरम था! जिससे उनके ह््रदय पर छाले पड गए… और, उनके ह््रदय में तो सदैव मेरा ही वास होता है..!!
योगियों में अग्रगण्य थे श्रीकृष्ण
भगवान कृष्ण योगियों में अग्रगण्य थे, इसीलिए उन्हें योगेश्वर कृष्ण भी कहा जाता है। इसका जिक्र भागवत गीता में भी है। मतलब साफ है वह कर्म योग हो, भक्ति योग हो या ज्ञान योग तीनों में निपुण थे। लेकिन इसमें राजयोग सबसे महत्वपूर्ण है। राजयोग या यूं कहे क्रिया योग को खुद स्वामी योगानंद जी ने भी आत्मसात किया है। गीता के छठे अध्याय में श्रीकृष्ण ने स्वयं राजयोग पर चर्चा की है। वे कहते हैं – हे अर्जुन! तपस्वी से भी श्रेष्ठ, ज्ञानियों से भी बड़ा मैं योगी को मानता हूं। इसलिए तुम योगी बनो। बता दें, छठा अध्याय आत्मसंयम योग है जिसका विषय नाम से ही प्रकट है। जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम-यही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहते हैं। श्री परमहंस योगानंद जी ने भी कहा है इसके लिए पहले हमें अंदर से प्रगति करने की जरुरत है। जैसे कर्म योग को वही व्यक्ति साध सकता है, जो निष्काम कर्म करता है। इसी प्रकार भक्ति योग में सफलता पाने के जन्मजात हृदय की पवित्रता की जरुरत है। ईश्वर के प्रति अनन्य भक्त होनी चाहिए। इसी प्रकार ज्ञान योग को वही ढंग से कर सकता है, जो इसके बलबूते ईश्वर द्वारा रचित संसार की रहस्यमयी शक्तियों को जानता हो। यानी इनमें पारंगत होना सबके बस की बात नहीं। मगर राज योग या क्रिया योग का अभ्यास कोई भी कर सकता है। इसमें ऐसे वैज्ञानिक तकनीक बताएं गए है, जिसके अभ्यास से हर व्यक्ति आत्मिक विकास प्राप्त कर सकता है।
श्रीकृष्ण मंदिरों की विशेषताएं
ब्रज मंडल के कण-कण में कृष्ण बसे हैं। यहां हर जगह किशन कन्हैया के अद्भुत मंदिर मिल जायेंगे और सभी मंदिरों की अपनी-अपनी विशेषताएं है :-
श्री बांके बिहारी मंदिर
इस क्षेत्र का सबसे अलौकिक और प्राचीन श्री बांके बिहारी मंदिर के बारे में मान्यता है कि अगर कोई बांके बिहारी जी के मुखारविंद को लगातार देखता रहे, तो प्रभु उसके प्रेम से मंत्रमुग्ध होकर उसके साथ चल देते हैं। इसीलिए मंदिर में उन्हें परदे में रख कर उनकी क्षणिक झलक ही भक्तों को दिखायी जाती है। यह मंदिर शायद अपनी तरह का पहला मंदिर है। सुबह में घंटे इसलिए नहीं बजाये जाते, ताकि बांके बिहारी की नींद में व्यवधान न पड़ जाये। उन्हें हौले-हौले एक बालक की तरह दुलार कर उठाया जाता है। इसी तरह संध्या आरती के समय भी घंटे नहीं बजाये जाते।
श्री राधारमण मंदिर
वृंदावन में ही स्थित है श्री राधारमण मंदिर। राधारमण का मतलब है, जो राधा रानी को प्यार करते हैं। श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी ने 1542 ईस्वी में इस मंदिर की स्थापना की थी। गोपाल भट्ट गोस्वामी को गंडक नदी में एक शालिग्राम मिला। वे उसे वृंदावन ले आये और केशीघाट के पास मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया। उसी वर्ष वैशाख पूर्णिमा के दिन शालिग्राम से राधारमण की दिव्य प्रतिमा प्रकट हो गयी। वर्तमान मंदिर में इनकी स्थापना सन 1884 में की गयी। सबसे विशेष बात यह है कि जन्माष्टमी को जहां दुनिया के सभी कृष्ण मंदिरों में रात्रि बारह बजे उत्सव पूजा-अर्चना, आरती होती है, वहीं राधारमणजी का जन्म अभिषेक दोपहर बारह बजे होता है। मान्यता है कि ठाकुरजी सुकोमल होते हैं, अतः उन्हें रात्रि में जगाना ठीक नहीं। बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि बरसाना के श्रीजी मंदिर में कान्हा के बेशकीमती हीरे-जवाहरात, सोना-चांदी, कपड़े, मुकुट, कमरबंद, बाजूबंद, बांसुरी और खाने-पीने के बरतन रखे हुए हैं। कमरे का ताला पिछले 150 वर्षों से खोला नहीं गया है। इसलिए खजाने को अभी तक किसी ने देखा नहीं है। मंदिर से जुड़े पुराने लोग बताते हैं कि इस कमरे को खास तरीके से बनाया गया है। दान-पात्र के रूप में यहां एक झीरी बनायी गयी है, जहां से भक्त दान के रूप में सोना-चांदी वगैरह डाल देते हैं। इस मंदिर का निर्माण राजा टोडरमल ने करवाया था।
प्रेम मंदिर
वृंदावन में श्रीकृष्ण का प्रेम मंदिर खासा मशहूर है। यहां की दीवारों पर हर तरफ राधा-कृष्ण की रासलीला नजर आती है। यहां श्रीकृष्ण और राधारानी की भव्य मूर्तियां भी हैं। इसे कृपालुजी महाराज ने बनवाया था। 54 एकड़ में बना यह मंदिर 125 फुट ऊंचा, 122 फुट लंबा और 115 फुट चौड़ा है। यहां सुंदर बगीचे, फव्वारे, श्रीकृष्ण और राधा की मनोहर झांकियां, श्रीगोवर्धन धारणलीला, कालिया नाग दमनलीला प्रस्तुत की गयी हैं। विशेष लाइटिंग से शाम होते ही मंदिर का रंग हर 30 सेकेंड में बदलता है।
रंगजी मंदिर
वृंदावन का ही रंगजी मंदिर उन गिने चुने मंदिरों में से एक है, जो श्रेष्ठ द्रविड वास्तुशिल्प शैली में बना है। इसे 1851 में बनवाया गया था और इसमें मुख्य देवता के रूप में श्री रंगनाथ या रंगजी विराजमान हैं। काफी ऊंची दीवारों वाले इस मंदिर के सामने का हिस्सा बेहद भव्य है। यह मंदिर वृंदावन के बड़े और भगवान विष्णु को समर्पित मंदिरों में से एक है।
केशवदेव मंदिर
मथुरा में स्थित कृष्ण जन्मभूमि का इतिहास भी अनूठा है। जहां आज यह स्थित है, वहां लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व राजा कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान कृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। कंस का वह कारागार, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था, उसे केशवदेव के मंदिर के रूप में बनवाया गया। इसी मंदिर के आसपास आज की मथुरा नगरी विकसित हुई। इतिहासकारों की मानें तो मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के स्थान पर अब तक चार बार मंदिर का निर्माण हो चुका है। माना जाता है कि कभी यहां बहुत विशाल और भव्य मंदिर हुआ करता था, जो औरंगजेब के शासन के दौरान तोड़ डाला गया।
श्री द्वारकाधीश मंदिर
ब्रज मंडल के बाहर स्थित भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों में पहला स्थान है गुजरात के श्री द्वारकाधीश मंदिर का। इसे जगत मंदिर भी कहा जाता है। यहां के प्रवेश द्वार को स्वर्ग द्वार और मोक्ष द्वार भी कहते हैं। गुजरात का द्वारका शहर वह स्थान है, जहां पांच हजार वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका नगरी बसायी थी। जिस स्थान पर उनका निजी महल हरि गृह था, वहां आज प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है। द्वारका नगरी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित देश के चार धामों और पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चांदी के सिंहासन पर भगवान कृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है। यहां इन्हें ’रणछोड़ जी’ भी कहा जाता है। इसके दूसरी ओर, ओडिशा स्थित जगन्नाथपुरी भी हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है और यहां भगवान विष्णु साक्षात विराजमान हैं। कहते हैं कि जिसने सच्चे मन से यहां आकर भगवान के चरणों में अपनी मन्नत मांग ली, वह पूरी होती है। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार, पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था। वह यहां सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गये। सबर जनजाति के देवता होने की वजह से यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है।
जगन्नाथ मंदिर
जगन्नाथ मंदिर की महिमा देश में ही नहीं, विश्व में भी प्रसिद्ध है। अन्य मंदिरों में केरल के गुरुवायुर मंदिर का स्थान खास है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित पांच हजार पुराना यह मंदिर भूलोक, यानी धरती का वैकुंठ है। केरल में सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह भगवान गुरुवायुरप्पन का मंदिर है, जो बाल गोपाल श्रीकृष्ण का बालरूप हैं। मंदिर में स्थापित प्रतिमा मूर्तिकला का एक बेजोड़ नमूना है। कहते हैं कि इस प्रतिमा को भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी को सौंप दिया था। कई धर्मों को मानने वाले लोग भी भगवान गुरुवायुरप्पन के परम भक्त रहे हैं। यहां आने वाले अधिकतर भक्त शारीरिक विकलांगता, विभिन्न रोगों और चोटों से उपचार के लिए श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हैं और ऐसा विश्वास है कि कृष्ण उनकी पुकार सुनते हैं।
वंशीधर मंदिर
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 230 किमी की दूरी पर स्थित नगर उंटारी प्रखंड का वंशीधर मंदिर। इस मंदिर में सोने की छतरी के नीचे वंशीधर राधा रानी के साथ बांसुरी बजाते हुए विराजमान हैं। उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार की सीमा के बहुत नजदीक होने के कारण इस मंदिर में फाल्गुन माह में हर वर्ष लगने वाले मेले में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की 40 मन वजनी प्रतिमा स्थापित है। कहते हैं यह पूरी प्रतिमा सोने से बनी हुई है और बिना किसी पॉलिश के प्रयोग के इस प्रतिमा की चमक अद्वितीय है। सन 1884 में नगर उंटारी के महारानी शिवमनी कुंवर ने शिवपहरी पहाड़ी में दबी इस प्रतिमा के बारे में सपने में देखा था। अगले दिन उन्होंने खुदाई कर श्रीकृष्ण की प्रतिमा निकाली गयी। प्रतिमा केवल श्रीकृष्ण की ही थी, इसलिए वाराणसी से राधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा बनवाकर मंदिर में एक साथ स्थापित करायी गयी।
उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर
श्रीकृष्ण के मंदिरों में अगला नाम है उडुपी श्रीकृष्ण मंदिर का। कर्नाटक राज्य के उडुपी शहर में स्थित भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित यह मंदिर रहने के लिए बने एक आश्रम जैसा है। यह रहने और भक्ति के लिए एक पवित्र स्थान है। श्री कृष्ण मठ के आसपास कई मंदिर हैं, सबसे अधिक प्राचीन मंदिर 1500 वर्षों के मूल की बुनियादी लकड़ी और पत्थर से बना है। कृष्ण मठ को 13वीं सदी में वैष्णव संत श्री माधवाचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। किंवदंती है कि एक बार भगवान कृष्ण के समर्पित भक्त कनकदास को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली। बजाय परेशान होने के, उन्होंने और अधिक तन्मयता के साथ प्रार्थना की। भगवान कृष्ण उनसे इतने प्रसन्न हुए कि अपने भक्त को अपना स्वर्गीय रूप दिखाने के लिए मठ (मंदिर) के पीछे एक छोटी सी खिड़की बना दी। आज तक, भक्त उसी खिड़की के माध्यम से भगवान कृष्ण की अर्चना करते हैं, जिसके द्वारा कनकदास को एक छवि देखने का वरदान मिला था।
मदन मोहनजी मंदिर
राजस्थान के करौली किले में कान्हा जी यानी मदन मोहनजी का मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा गोपाल सिंह ने सन 1725 में कराया था। इस मंदिर में भगवान कृष्ण और देवी राधा की प्रतिमाएं हैं। मदन मोहन की प्रतिमा को जयपुर के आमेर से करौली ले जाकर स्थापित किया गया है। मदन मोहन मंदिर में स्थापित कृष्ण जी की ऊंचाई तीन फुट है, जबकि राधा जी की प्रतिमा दो फुट ऊंची है। दोनों मूर्तियां अष्टधातु की बनी हैं और इनकी सुंदरता अद्भुत है। मंदिर में भगवान मदन मोहन को दिन में सात बार भोग लगाया जाता है। उन्हें मिष्ठान काफी प्रिय है। खास मौकों पर मदन मोहन जी को 56 भोग लगाये जाते हैं।
सत्यभामा मंदिर
आंध्र प्रदेश में पुट्टपर्थी में स्थित देवी सत्यभामा के मंदिर की कहानी रोचक है। सत्यभामा भगवान कृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थीं। पुराणों में दिये गये वर्णन के अनुसार, देवी सत्यभामा को इच्छाशक्ति की देवी माना जाता है। अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए और भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए हर साल यहां कई भक्त आते हैं। मंदिर में देवी सत्यभामा की लगभग तीन फीट ऊंची एक मूर्ति है। इसके अलावा मंदिर के गर्भगृह में देवी सत्यभामा की मूर्ति के आस-पास भगवान कृष्ण की कई तसवीरें लगी हुई हैं।
चंद्रोदय मंदिर
भगवान कृष्ण के भक्तों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि कान्हा की नगरी वृंदावन में दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर बनने जा रहा है। यह दुनिया की सबसे ऊंची इमारत होगी। इस मंदिर का नाम चंद्रोदय है। इस्कॉन द्वारा वृंदावन में बनाये जा रहे इस 70 मंजिला मंदिर की ऊंचाई 210 मीटर होगी और यह एक पिरामिड के आकार में बनाया जायेगा। इसे बनाने की तैयारियां वर्ष 2006 से चालू हैं और 2022 तक इसके पूरे हो जाने का अनुमान है। प्राकृतिक आपदा के लिहाज से भी इसे काफी मजबूत बनाया जा रहा है और आठ रिक्टर स्केल से अधिक तीव्रता का भूकंप भी इसे क्षति नहीं पहुंचा सकेगा। कुल 511 पिलर्स वाला यह मंदिर नौ लाख टन भार सहने की क्षमता वाला होगा और 170 किमी की तीव्रता के तूफान को भी झेलने में सक्षम होगा। परंपरागत द्रविड़ और नगर शैली में बनाया जा रहा यह मंदिर, 200 वर्षों में अब तक का सबसे आधुनिक मंदिर होगा, जिसमें 4डी तकनीक द्वारा देवलोक और देवलीलाओं के दर्शन भी किये जा सकेंगे।