आसाम और मिजोरम के बीच चल रहे सीमा-विवाद के दौरान सोमवार (26 जुलाई, 2021) को अचानक से हिंसा भड़क गई, जिसमें असम के 6 पुलिसकर्मी बलिदान हो गए। अब इस मुद्दे को लेकर वामपंथियों ने भी भ्रामक दावे करने शुरू कर दिए हैं। इतिहासकार व ‘बुद्धिजीवी’ इरफ़ान हबीब ने भी सोशल मीडिया पर कुछ इसी तरह का दावा किया, जिसके बाद लोगों ने उन्हें सही इतिहास की याद दिलाई।
इरफ़ान हबीब ने ट्विटर पर लिखा कि आज तक उन्होंने ऐसा कभी नहीं सुना कि दो राज्यों के सशस्त्र बल आपस में लड़ रहे हों और खूनी संघर्ष में एक-दूसरे की हत्या कर रहे हों। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि यही हमारा ‘नया भारत’ है। हालाँकि, ‘Earshot’ नामक पोर्टल के संस्थापक एवं मुख्य संपादक अभिजीत मजूमदार ने उन्हें आईना दिखाने में ज्यादा देर नहीं लगाई। इसके बाद इरफ़ान हबीब की किरकिरी हुई।
अभिजीत मजूमदार ने इरफ़ान हबीब के इतिहास का ज्ञान बढ़ाते हुए बताया कि 1985 असम और नागालैंड के बीच संघर्ष हुआ था। उन्होंने बताया कि उस घटना में 41 लोग मारे गए थे, जिनमें से 28 पुलिस के जवान थे। साथ ही इस हिंसा के कारण 27,000 लोग बेघर हो गए थे। उस समय राजीव गाँधी भारत के प्रधानमंत्री थे और असम में कॉन्ग्रेस की सरकार थी। मणिपुर में भी पहले UDF-P और फिर कॉन्ग्रेस की सरकार थी।
उन्होंने तथाकथित इतिहासकार पर तंज कसते हुए कहा कि ये सब कुछ भारत के ‘गोल्डन एज’ में हुआ। बता दें कि ऐसे इतिहासकारों और वामपंथी ‘बुद्धिजीवियों’ के लिए नेहरू-गाँधी परिवार ने जब तक देश पर राज तक, वही अवधि भारत का ‘स्वर्ण युग’ है। बता दें कि जून 1985 में ये हिंसा मेरपानी और गोलाघाट में दोनों राज्यों के बीच हिंसा भड़की थी। असम ने तब दावा किया था कि हमलावर नागालैंड के थे।
1985. Naga-Assam clashes. At least 41 killed, 28 of them police personnel. 27,000 made homeless.
Prime Minister: Rajiv Gandhi.
Assam CM: Hiteswar Saikia (Congress).
Nagaland CM: SC Jamir (UDF-P and then Congress).
For some of us, India’s ‘Golden Age’. https://t.co/LdPNstsTrs— Abhijit Majumder (@abhijitmajumder) July 27, 2021
नागालैंड में तो 1963 से ही हिंसा शुरू हो गई थी, जब इसे अलग राज्य का दर्ज मिल था। उससे पहले 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार और ‘नागा पीपल्स कन्वेन्शन’ के बीच 1960 में एक 16 बिंदुओं वाले समझौते पर सहमति बनी थी। अपर असम के सिवसागर, जोरहाट और गोलाघाट में नागा लोग घुस गए थे और जमीन कब्जा लिए थे। आरोप था कि असम की 60,000 हेक्टेयर भूमि में बसे जंगल को नागालैंड ने कब्जा लिया था। तभी से ये विवाद चल रहा है।
वहीं ताज़ा हिंसा की बात करें तो मिजोरम की सिविल सोसाइटी के लोग इस विवाद के लिए बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है कि ये घुसपैठिए उनके क्षेत्र में घुस कर उनकी झोंपड़ियों को तोड़ डालते हैं, खेती बर्बाद कर देते हैं और उन्होंने ही पुलिसकर्मियों पर पत्थरबाजी की थी। इस विवाद की जड़ें अंग्रेजों के काल में हैं। 1875 में एक अधिसूचना जारी कर के लुशाई की पहाड़ियों को कछार के मैदानों से अलग हिस्सा घोषित किया गया था।