औरतों का चीरहरण, तोड़फोड़, किडनैपिंग, हत्या: बंगाल हिंसा पर NHRC की रिपोर्ट से निकली एक और भयावह कहानी

पश्चिम बंगाल में चुनावी नतीजों की घोषणा के बाद हुई हिंसा पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने 14 जुलाई को कलकत्ता हाईकोर्ट में अपनी रिपोर्ट दी। आयोग ने इस रिपोर्ट में उन सैंकड़ों घटनाओं का जिक्र किया जो राज्य में 2 मई के बाद घटित हुईं। इसी रिपोर्ट में 30 वर्षीय अरूप दास के साथ हुई बर्बरता का भी जिक्र है, जिनकी बांकुरा जिले के नररा (Narrah) गाँव में कथिततौर पर हत्या की गई। वह 5 मई 2021 को पेड़ से लटके मिले थे।


5 मई को पेड़ से लटका मिला था अरूप दास का शव

रिपोर्ट के मुताबिक, अरूप दास के पिता बताते हैं कि 4 मई 2021 को उनके घर में तृणमूल कॉन्ग्रेस के गुंडे घुसे और सबको बेरहमी से पीटने लगे। इस दौरान उनके भाई के परिवार को भी नहीं छोड़ा गया जो उनके साथ रहते थे। अरूप के पिता कहते हैं कि घटना वाले दिन न केवल उनकी संपत्ति को क्षतिग्रस्त किया गया, बल्कि वहाँ मौजूद महिलाओं को भी प्रताड़ित किया गया। गुडों ने महिलाओं के ब्लाउज फाड़े और साड़ी खोल कर उसी से उनका गला घोंटा और फिर अरूप को किडनैप करके चले गए। घटना के अगले दिन अरूप का शव पेड़ के फंदे से लटका मिला।

पुलिस की लापरवाही

अरूप दास के पिता ने अपने बयान में आयोग को बताया कि उन्होंने इस संबंध में पुलिस शिकायत की थी। लेकिन पुलिस ने जाँच में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और एफआईआर भी तब जाकर हुई जब कलकत्ता हाईकोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई। NHRC ने कागजात के अवलोकन के बाद, इस मामले में पाया कि अरूप दास के पिता ने 5 मई को पुलिस स्टेशन खंडघोष में शिकायत दर्ज करवाई थी। लेकिन पुलिस ने एक माह के बाद 10 जून को इस मामले में एफआईआर दर्ज की। NHRC का यह भी कहना है कि कोर्ट द्वारा कार्रवाई के निर्देश जारी करने के बाद ही मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। NHRC ने बताया कि इस मामले में 21 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है, हालाँकि अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।

NHRC का अवलोकन

इस केस की डिटेलिंग में NHRC ने पाया कि 5 मई को अपनी शिकायत में अरूप दास के पिता ने कहा था कि उनके बेटे ने रोजगार न मिलने के कारण सुसाइड की। हालाँकि, NHRC से बात करते हुए उन्होंने इसका जिक्र नहीं किया। इसलिए टीम को शक है कि अरूप के पिता ये तक नहीं जानते कि उनकी शिकायत में क्या बात लिखी गई है।

इस बिंदु पर कई कयास लगाए जा रहे हैं। हो सकता है कि अरूप दास के पिता को गुमराह किया गया हो। इसके अलावा ये भी हो सकता है कि उन्हें डर से घबराकर अपना बयान दिया हो, क्योंकि अभी हाल में ऑपइंडिया ने एक महिला से बात की थी जिसने पहले शिकायत दी कि उसका गैंगरेप हुआ है। हालाँकि बाद में उसे ये कहने को राजी कर लिया गया कि उसके साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसने अपनी ही जैसी तमाम महिलाओं का जिक्र किया था जिनका गैंगरेप हुआ, लेकिन वह चाहकर भी नहीं कह पाईं। या संभव है कि अरूप दास के केस में NHRC टीम के सामने जो खुलकर कहा गया वही सच है। जैसे कि महिला ने ये सब कहा था सिर्फ आयोग के सामने और पुलिस के सामने वह चुप रही थी।

आयोग की टीम ने इस विषय पर गाँव के कई अन्य लोगों से भी बात की। सबने वही दोहराया जोकि अरूप के पिता कह रहे थे। हालाँकि जब बयान दर्ज कराने की बात सामने आई तो उन्होंने सामने आने से मना कर दिया। उनको भी डर है कि टीएमसी के गुंडे वही करेंगे जो अरूप दास के साथ हुआ। शुरुआत में मामले की जाँच “अप्राकृतिक मौत” के मामले के रूप में की गई थी और अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इस मामले में अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।

NHRC की रिपोर्ट

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों NHRC की 7 सदस्यीय टीम ने 20 दिन में 311 से अधिक जगहों का मुआयना करने के बाद राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में हिंसा की जाँच सीबीआई से कराने की सिफारिश की गई थी। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि मामलों की सुनवाई राज्य के बाहर फास्ट ट्रैक अदालत गठित कर हो। रिपोर्ट में पीड़ितों की आर्थिक सहायता के साथ पुनर्वास, सुरक्षा और आजीविका की व्यवस्था करने को कहा गया था।

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राज्य में ‘कानून का शासन’ नहीं बल्कि ‘शासक का कानून’ है। करीब 50 पेज की NHRC की इस रिपोर्ट में राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना की गई थी और कहा गया था कि राज्य प्रशासन ने जनता में अपना विश्वास खो दिया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, जाँच के दौरान टीम को राज्य के 23 जिलों से 1979 शिकायतें मिलीं। इनमें ढेर सारे मामले गंभीर अपराध से संबंधित थे। इनमें से अधिकांश शिकायतें कूच बिहार, बीरभूम, बर्धमान, उत्तरी 24 परगना और कलकत्ता से मिलीं, जिनमें ज्यादातर मामले दुष्कर्म, छेड़खानी व आगजनी के हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि उसे महिलाओं पर हुए अत्याचार की 57 शिकायतें राष्ट्रीय महिला आयोग से भी मिलीं।