के. विक्रम राव
पश्चिमी हिमालय में हिन्दकुश पवर्त शृंखला पर बसा अफगानिस्तान आज भारत के लिए दहशत फैला रहा है। लुटेरे अहमदशाह दुर्रानी ने 1757 के दौर में हिन्दुस्तान के लिए आतंक पैदा किया था। आज तालिबानी अफगानिस्तान से फिर पश्चिमी सीमावर्ती भारत के सामने खतरा नजर आ रह है। आखिर ऐसा क्यों हुआ और अब क्या मुमकिन है? ये प्रश्न आज भारत को परेशान कर रहे हैं। अगर अफगानिस्तान पर फिर से तालिबान का नियंत्रण हो जाता है, जिसकी आशंका अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद व्यक्त की जा रही है तो भारत के लिए यह स्थिति कितनी विषम होगी, इसकी फिलहाल कल्पना भी नहीं की जा सकती।
किसके लिए क्या खतरा?
भारत के लिए…
भारत ने इस इस्लामी क्षेत्र में ग्यारह हजार करोड़ डालर का निवेश कर रखा है। उसे अब ये तालिबानी हथिया लेंगे। इनमें हजार करोड़ डालर की लागत से निर्मित भव्य संसद भवन भी है। इसका लोकार्पण नरेन्द्र मोदी ने अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर 25 दिसंबर 2015 को किया था। इसके अध्यक्ष जनाब मीर रहमान रहमानी का निर्वाचन क्षेत्र बाग्रामी अभी मुक्त है। यहीं वायुसेना स्थल पर अभी भी अमेरिकी सैनिक टिके हैं। यहीं से भारतीय नागरिक भी अफगानिस्तान से बाहर निकल रहे है। मगर यह सब एक पखवाड़े तक ही होगा। अमेरिकी सेना क्रमश: अफगानिस्तान से निकल रही है। तब यह स्थल फिर तालिबानी हाथों में चला जाएगा। ऐसे में भारत के सामने वैसे ही खतरे पैदा हो गए हैं, जैसे कि पहले के तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान के दौरान थे।
पाकिस्तान के लिए…
एशिया पर तालिबानी अफगानिस्तान एक त्रासदपूर्ण आपदा ही रहेगी। इससे पाकिस्तान भी प्रभावित हुए बगैर नहीं रहेगा। पाकिस्तान के पेशावर नगर और निकटस्थ सिंध को तात्कालिक तौर पर खतरा है। कराची एशिया का सबसे बड़ा आतंकवादी केन्द्र पहले ही बन चुका है। अब तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद कराची पर आतंकवादियों का साया पहले से भी और बढ़ जाएगा।
चीन अमेरिका के पलायन से हर्षित है और रिक्त स्थान को हथियाना चाहेगा। मगर वह भी इन कट्टर इस्लामिस्टों से आक्रान्त है। उसने अपने तुर्की मुसलमानों के इलाके उइगर (शिनजियांग प्रांत) में डेढ़ लाख सुन्नियों को कैद में रखा है। पुनर्शिक्षा के नाम पर उन्हें कम्युनिस्ट बना रहा है। चीन को डर है कि तालिबान के लौटने पर उइगर इलाके के मुस्लिम कहीं उसके खिलाफ बगावत का झंडा न थाम ले। हालांकि पाकिस्तान के आग्रह पर इन अफगान तालिबानों ने कम्युनिस्ट चीन के शासकों को आश्वस्त किया है कि वे इन उइगर मुसलमानों की मदद कतई नहीं करेंगे। फिर भी चीन थोड़ा सतर्क है।
भारत के 3 एजेंडे, मगर स्पष्ट रणनीति का अभाव :
इस मामले में भारत की क्या रणनीति हो सकती है, यह तो अभी स्पष्ट नहीं है। भारत अब भी कन्फ्यूज है। हालांकि भारत ने कहा है कि अफगानिस्तान का भविष्य पहले की तरह नहीं हो सकता। अफगानिस्तान में तालिबान की तरफ से बढ़ते हमलों के बीच भारत ने वहां शांति स्थापित करने के लिए तीन सूत्रीय एजेंडा पेश किया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में अफगानिस्तान के मुद्दे पर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में यह एजेंडा पेश किया। जिस बैठक में भारत ने यह एजेंडा पेश किया है उसमें पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरैशी, चीन के विदेश मंत्री वांग ई और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भी उपस्थित थे। उनके एजेंडे के प्रमुख बिंदु इस तरह हैं :
1. अफगान की जनता, इस क्षेत्र के लोग और पूरी दुनिया को एक ऐसा अफगानिस्तान चाहिए जो पूरी तरह से स्वतंत्र, निष्पक्ष, शांतिप्रिय और समृद्ध हो।
2. सभी तरह की हिंसा का खात्मा करना और सरकार व नागरिकों पर आतंकी हमलों को रोकना व इसके लिए राजनीतिक समूहों व समुदायों में बातचीत की शुरुआत करना।
3. अफगानिस्तान के पड़ोसियों को आतंकवाद व उग्रवाद से बचाना। इन रोडमैप को हासिल करने के लिए भारतीय विदेश मंत्री ने समग्र तौर पर सीजफायर लागू करने की बात कही है।
चीन की क्यों है नजर?
अमेरिकी सेना की वापसी के बाद चीन अफगानिस्तान पर करीब से नजर रखे हुए हैं। अमेरिका का स्थान राष्ट्रपति शी जिनपिंग लेना चाहेंगे क्योंकि पवर्तीय अफगानिस्तान में खनिज पदार्थ, खासकर तेल तथा हीरे आदि का विशाल भंडार है। तो यह रणनीतिक के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी चीन के एजेंडा में मुख्य रूप से शामिल है।
पिछले 40 साल से अफगानिस्तान में ऐसा रहा उथल-पुथल का दौर…
1979 : सोवियत संघ की लाल सेना ने अफगानिस्तान में प्रवेश किया। रूसी सेना ने बारबरक कर्माल के नेतृत्व में कम्युनिस्ट सरकार बनवाई। 80 लाख से ज्यादा अफगानिस्तानियों ने पाकिस्तान व ईरान में शरण ली।
1980 : अमेरिका की सीआईए ने सोवियत सेनाओं के खिलाफ जंग छेड़ने के लिए अफगानी मुजाहिदिन को ऑपरेशन साइक्लोन के लिए पैसा और हथियारों की आपूर्ति शुरू की। पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक जिया उल हक जरिया बने।
सित. 1986 : अमेरिका ने मुजाहिदिनों को शोल्डर हेल्ड एंटी एयरक्राफ्ट स्ट्रिंजर मिसाइल दी। इससे युद्ध का रुख बदल गया। सोवियत संघ ने वापसी पर बातचीत शुरू कर दी।
15 फरवरी 1989 : आखिरी सोवियत सैनिक ने अफगानिस्तान छोड़ा। रूस का 10 साल का कब्जे समाप्त।
अप्रैल 1992 : मुजाहिदीन समूहों ने काबुल में प्रवेश किया। भाग रहे नजीबुल्लाह को हवाई अड्डे पर रोक दिया गया। नजरबंद किया।
1994 – दक्षिणी कंधार में तालिबान का उदय हुआ। इस प्रांत पर कब्जा कर लिया। इसके बाद तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत बनानी शुरू की।
सितंबर 1996 : तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया। तालिबान ने नजीबुल्लाह और उसके भाई को फांसी पर लटका दिया।
सितंबर 2001 : 9/11 के हमले के बाद वाशिंगटन ने मुल्ला उमर को अल्टीमेटम देकर ओसामा बिन लादेन को सौंपने को कहा। तालिबान नेता ने मना कर दिया।
7 अक्टूबर, 2001 : अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अफगानिस्तान पर आक्रमण शुरू किया।
7 दिसंबर 2001 : मुल्ला उमर ने कंधार छोड़ दिया और तालिबान शासन आधिकारिक रूप से ध्वस्त हो गया।
2004 और 2009 : दो आम चुनावों में करजई लगातार दो बार राष्ट्रपति चुने गए।
8 दिसंबर, 2014 : अमेरिकी और नाटो सैनिकों ने औपचारिक रूप से अपने लड़ाकू मिशन को समाप्त कर दिया। अब अमेरिका की भूमिका समर्थन और प्रशिक्षक के रूप में सीमित रह गई।
29 फरवरी, 2020 : अमेरिका और तालिबान ने दोहा, कतर में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। अफगानिस्तान से 13 हजार अमेरिकी सैनिकों की समयबद्ध वापसी तय हुई।
14 अप्रैल, 2021 : राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि अफगानिस्तान में शेष 2,500-3,500 अमेरिकी सितंबर तक वापस लौट जाएंगे।
2 जुलाई 2021 : अमेरिका ने बाग्रामी एयरफील्ड को अफगान सेना को सौंप दिया। अमेरिका सेना की अफगानिस्तान में उपस्थिति के दौरान बाग्रामी एयरफील्ड अमेरिका का मुख्य वार रूम बना रहा।
एक नज़र में अफगानिस्तान…
पूरा नाम : इस्लामिक रिपब्लिक आफ अफगानिस्तान
आबादी : 3.22 करोड़
क्षेत्रफल : 6,52,230 वर्ग किमी (राजस्थान से लगभग दोगुना)
सरकार प्रमुख : अशरफ घानी (राष्ट्रपति)
प्रमुख कबीले : पश्तुन (42%), ताजिक (27%)