कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव बाद भड़की हिंसा के मामलों पुलिस को एफआईआर दर्ज करने और राज्य सरकार को पीड़ितों का इलाज कराने का आदेश दिया है। इसके अलावा हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पीठ ने हिंसाग्रस्त जिलों के DM और SP को भी नोटिस जारी कर जवाब माँगा है। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी कहा है कि वह पीड़ितों के राशन आदि की व्यवस्था करे और भाजपा कार्यकर्ता अविजीत सरकार की दोबारा ऑटोप्सी कराई जाए।
शुक्रवार (02 जुलाई) को अपने अंतरिम आदेश में कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में भाजपा समेत अन्य विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं के खिलाफ जारी हिंसा के संबंध में राज्य की ममता बनर्जी सरकार की भूमिका को भी संदिग्ध माना है और कहा है कि भले ही प्रशासन इसे स्वीकार नहीं कर रहा, लेकिन चुनाव बाद शुरू हुई हिंसा की खबरें एकदम सत्य है।
NHRC की रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि राज्य में चुनाव बाद शुरू हुई हिंसा के मामलों में राज्य की भूमिका संतोषजनक नहीं रही। कोर्ट का कहना है, “हिंसा में कई लोग मारे गए, गंभीर रूप से घायल हुए। कई पीड़ितों को यौन उत्पीड़न भी झेलना पड़ा, यहाँ तक कि नाबालिग लड़कियों को भी नहीं बख्शा गया। लोगों की संपत्ति को नष्ट किया गया और कई लोगों को अपना घर छोड़कर पड़ोसी राज्यों में शरण लेने के लिए मजबूर कर दिया गया। इसके बाद भी राज्य ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।“ कोर्ट ने यहाँ तक कहा कि कई पीड़ितों की शिकायतों को दर्ज ही नहीं किया गया, बल्कि उल्टा उन्हीं के ऊपर केस दर्ज कर लिया गया।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि पुलिस ने कई मामलों में शिकायत भी नहीं दर्ज की। जहाँ शिकायत दर्ज की गई वहाँ अधिकांश आरोपितों को जमानत दे दी गई। कोर्ट ने माना है कि जब उसके द्वारा इस मामले में संज्ञान लिया गया तब जाकर पुलिस ने कुछ गंभीर अपराधों में मामला दर्ज किया।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने NHRC की रिपोर्ट के आधार पर कहा कि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि राज्य प्रशासन यह कहता रहा कि हिंसा की शिकायतें प्रशासन के पास आई ही नहीं। लेकिन जब NHRC और स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी लोगों के पास गई तो उनके पास शिकायतों की बाढ़ सी आ गई। कोर्ट ने कहा कि लोग इतना डरे हुए हैं कि अपना नाम तक नहीं बताना चाहते हैं।
कोर्ट ने NHRC की कमेटी के द्वारा दर्ज किए गए प्रेक्षणों को बताते हुए अपने आदेश में कहा है कि कमेटी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में बताया है कि राज्य के विभिन्न अधिकरण कमेटी के द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देने में पूरी तरह से असमर्थ रहे। इससे यह पता चलता है कि हिंसा के मामले में प्रकट करने से अधिक छुपाने के लिए बहुत कुछ है।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी बताया है कि जाँच के लिए गई NHRC की टीम को भी पुलिस द्वारा सुरक्षा नहीं दी जा सकी। कोर्ट ने कहा कि 29 जून को जाधवपुर इलाके में जाँच के लिए गई टीम के सदस्य आतिफ रशीद और उनकी टीम को न केवल उनका काम करने से रोका गया बल्कि उन पर कुछ गुंडों द्वारा हमला भी किया गया। कोर्ट ने माना है कि यह घटना तब हुई है जब NHRC की टीम की सुरक्षा को लेकर स्थानीय प्रशासन और पुलिस को एडवांस में नोटिस दे दिया गया था। इस मामले में कोर्ट द्वारा साउथ कोलकाता के डेप्युटी कमिश्नर ऑफ पुलिस राशिद मुनीर खान के खिलाफ कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट के आधार पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने फिलहाल NHRC की जाँच रिपोर्ट को यह कहते हुए सार्वजनिक करने से मना कर दिया कि यह अंतिम रिपोर्ट नहीं है। हिंसा की जाँच जारी है और NHRC की कमेटी के द्वारा पेश की गई अंतरिम रिपोर्ट अभी कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पास सुरक्षित रहेगी। सुनवाई हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अगुवाई वाली 5 सदस्यीय पीठ ने की। पीठ में जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस सुब्रत तालुकदार शामिल थे।