अक्सर हिंदूफोबिक कंटेंट देकर विवादों में आने वाला द न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) अब जॉब रिक्रूटमेंट के दौरान भी खुलकर हिंदू घृणा दिखाने से परहेज नहीं कर रहा। 1 जुलाई 2021 को इस अखबार नें लिंक्डइन पर जॉब रिक्रूटमेंट पोस्ट की है। ये जॉब दिल्ली में साउथ एशिया बिजनेस संवाददाता के लिए है। इसमें हायरिंग की शर्तें देख कर ऐसा लगता है जैसे बिना हिंदू विरोधी हुए या फिर एंटी मोदी हुए वहाँ जॉब पाना बेहद मुश्किल है।
अपने विज्ञापन के जरिए इन्होंने साफ बताया है कि अभ्यार्थी ऐसा हो जो भारत सरकार के विरुद्ध लिख सके और सत्ता बदली की उनकी कोशिशों में अपना योगदान दे सके। इस जॉब पोस्टिंग में अखबार ने ये तक लिखा है कि वैसे तो भारत जनसंख्या के मामले में चीन को टक्कर दे रहा है लेकिन फिर भी विश्व मंच पर बड़ी आवाज बनने की महत्वाकांक्षा रखे हुए है।
इसमें आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चीन के ख़िलाफ़ कार्रवाई को भारत का एक ड्रामा कहा गया है जो उनके मुताबिक सीमा और राष्ट्रीय राजधानियों के भीतर चल रहा है। जॉब पोस्ट देख कर और उसमें भारत व भारत सरकार के लिए इस्तेमाल किए गए शब्दों को देखकर लगता है जैसे अखबार को भारत से कोई समस्या हो। ये सारे शब्द बताते हैं कि न्यूयॉर्क टाइम्स का मकसद क्या है।
यहाँ इस जॉब पोस्टिंग के साथ भारत के लिए इस्तेमाल की गई भाषा को देखते हुए ये जानना जरूरी है कि चीनी सरकार का इस पर ऐसा क्या प्रभाव है। तो बता दें कि चीन सरकार का मुखपत्र अमेरिकी अखबारों को कथिततौर पर 19 मिलियन डॉलर (लगभग ₹142 करोड़) का भुगतान सिर्फ एड आदि के लिए किया है वो भी 4 वर्षों में।
एक चाइना अखबार द्वारा न्याय विभाग में दायर दस्तावेजों के अनुसार, कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ने वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) को $6 मिलियन (₹447,367,458), वाशिंगटन पोस्ट को $4.6 मिलियन (₹342,981,717.80), फॉरेन पॉलिसी को $2,40,000 (₹17,894,698), न्यूयॉर्क टाइम्स को $50,000 (₹3,728,062) से अधिक का भुगतान किया। वहीं डेस मोइनेस रजिस्टर को $34,600 (₹2,579,819) और CQ-रोल कॉल को $76,000 (₹5,666,654) दिया गया। इसके अलावा, कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ने भी ट्विटर पर विज्ञापन पर 2,65,822 डॉलर (₹19,820,018) खर्च किए थे।
बता दें कि इसी क्रम में साल 2018 में न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट दोनों ने एक प्रायोजित समाचार चलाया। जिसका शीर्षक “बेल्ट एंड रोड अलाइन विद अफ्रीकन नेशंस” था। इसी समाचार के साथ एक अन्य रिपोर्ट भी छपी थी, जिसमें ट्रंप प्रशासन की आलोचना की गई थी। चीन ने ऐसे समाचारों के लिए विदेशी मीडिया को अपने हित के लिए एक टूल की तरह उपयोग किया और दिखाया कि चीन पर यूएस टैरिफ बढ़ने से कैसे यूएस में घर बनाना महँगा हो जाएगा।
अब न्यूयॉर्क टाइम्स की भारत और यहाँ लोकतांत्रिक ढंग से दूसरी बार प्रधानमंत्री चुने गए नरेंद्र मोदी के प्रति घृणा कोई नई बात नहीं है। इससे पहले कई बार ऐसे प्रयास हो चुके हैं। जॉब पोस्ट में भारत की चीन के साथ तुलना और उसमें भी भारत को नीचा दिखाना पूरे प्रोपगेंडे की पोल खोलता है और बताता है कि ये विदेशी अखबार शिद्दत से घृणा फैलाना चाहता है।
विवादित जॉब पोस्ट में ये भी कहा गया है कि भारत के पीएम मोदी देश के हिंदू बहुमत पर केंद्रित होकर आत्मनिर्भर भारत और मस्कुलर राष्ट्रवाद की वकालत करते हैं। अब देखिए ये वाक्य भी कितना अटपटा है क्या न्यूयॉर्क टाइम्स को ये दिक्कत है कि भारत आत्मनिर्भर हो रहा है या ये समस्या है कि पीएम भारत को आत्मनिर्भर बनाने में प्रयासरत हैं और वो चीन से घटते व्यापार से तिलमिलाया हुआ है।
मालूम हो कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की उपलब्धि को न्यूयॉर्क टाइम्स हमेशा खारिज करता रहा है। भारत के महत्वाकांक्षी स्पेस कार्यक्रम के बाद NYT ने एक नस्लवादी कार्टून छाप दिया था और बाद में इसके लिए माफी भी माँगी थी।
अब रही बात न्यूयॉर्क टाइम्स के चीन वाले चश्मे की तो, भारत ने उन पर क्या कार्रवाई की इसका पता कुछ आँकड़ों से चलता है। साल 2020 में भारत-चीन व्यापार पर केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के हालिया आँकड़ों के अनुसार, 2020 में भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार में 5.64% की कमी आई और व्यापार 2019 में 92.89 बिलियन डॉलर की तुलना में 2020 में 87.65 बिलियन डॉलर हो गया। वहीं चीन से भारतीय आयात में भी 10.87% की गिरावट आई और 2019 में 74.92 बिलियन डॉलर की तुलना में ये 2020 में 66.78 बिलियन डॉलर हो गया।
इसलिए ये तो स्पष्ट है कि इन सबमें नुकसान भारत का नहीं बल्कि चीन का हुआ और ये भी स्पष्ट है कि इससे NYT नाराज है। विदेशी अखबार के ऐसे कारनामों से उसकी अपनी हालत का जरूर पता चलता है, जो सीसीपी से पैसे लेने को मजबूर हैं। NYT कहता है कि पीएम मोदी देश के हिंदुओं को सशक्त बना रहे हैं जो कि यहाँ के बहुसंस्कृतिवाद के सिद्धांतों के ख़िलाफ हैं। विदेशी अखबार का ये भी कहना है कि NYT भारत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करने में लगा है जबकि इस बात के सबूत क्या हैं, वो इसे नहीं बताता। अपनी हालिया जॉब पोस्ट के विवरण में ऐसी बातों को शामिल करना स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि NYT एक स्पष्ट वैचारिक झुकाव वाले पत्रकारों की तलाश कर रहा है और जो अपने कवरेज में हिंदू विरोध दिखाने के लिए आजाद होंगे।