के. विक्रम राव
न्यायिक निर्णय (हाईकोर्ट : 1 जून 2021) के बाद राजधानी के ”सेन्ट्रल विस्ता” योजना का निर्माण कार्य निर्बाधरुप से चलेगा। किन्तु दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और ओखला क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के विधायक मियां मोहम्मद अमानतुल्ला खान ने (4 जून 2021) प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर आग्रह किया कि इस नयी राजधानी निर्माण क्षेत्र में आनेवाली मस्जिदों को बनी रहने दिया जाये। उन्होंने लिखा कि इंडिया गेट के पास के जलाशय के समीपवाली जाब्तागंज मस्जिद न तोड़ी जाये। इसी प्रकार कृषि भवन तथा राष्ट्रपति भवन की मस्जिद भी सुरक्षित रहें। उनकी लिस्ट में सुनहरी बाग रोड, रेड क्रास रोड की (संसद मार्ग), जामा मस्जिद (शाहजहांवाला नहीं) आदि भी शामिल हैं। ध्यान रहें कि ये सब वक्फ की संपत्ति नहीं हैं। एक दफा हरियाणा के चन्द जाट किसानों ने रायसीना हिल्स पर अपना दावा ठोका था। वे राष्ट्रपति को बेदखल कर खुद रहना चाहते थे (20 फरवरी 2017, दि हिन्दू )। इस जाट किसान महाबीर का कहना था कि उसके परदादा के पिता कल्लू जाट रायसीना भूभाग पर हल चलाते थे। उनके पुत्र नत्थू भी यहीं जोताई करता था। मगर 1911 में नयी राजधानी निर्माण पर ब्रिटिश राज ने उन्हें बेदखल कर दिया था।
विधायक खान ने दस दिन की नोटिस भारत सरकार को दिया है। वे नहीं चाहते कि अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़े। इसकी पूरी रपट चैन्नई के वामपंथी अंग्रेजी दैनिक ”दि हिन्दू” में (5 जून 2021, पृष्ठ—3, कालम : 4—6 में) छपी है। यूं तो नयी दिल्ली के कई चौराहों पर के उद्यानों में मस्जिदों को असलियत में बिना नक्शे को पारित कराये बनी इमारतें ही कहा जायेगा।
यहां अमीनाबाद (लखनऊ) में बने हनुमान मंदिर के निर्माण का किस्सा भी बयान हो। बात पुरानी है किंतु नागरिक विकास की दृष्टि से अहम है। प्रयागराज की जगह लखनऊ तब नई नवेली राजधानी बनने वाला था। संयुक्त प्रांत की सरकार तब प्रयाग से अवध केंद्र में आ रही थी। उस दौर की यह बात है। अमीनाबाद पार्क, (जो तब सार्वजनिक उद्यान था) में पवनसुत हनुमान का मंदिर प्रस्तावित हुआ। मंदिर समर्थक लोग कानून के अनुसार चले। नगर म्यूनिसिपालिटी ने 18 मई 1910 को प्रस्ताव संख्या 30 द्वारा निर्णय किया कि अमीनाबाद पार्क के घासयुक्त (लाॅन) भूभाग से दक्षिण पूर्वी कोने को अलग किया जाता है ताकि मंदिर तथा पुजारी का आवास हो सके। तब म्यूनिसिपल चेयरमैन थे आई.सी.एस. अंग्रेज अधिकारी, उपायुक्त मिस्टर टी.ए. एच. वेये, जिन्होंने सभा की अध्यक्षता की थी। मंदिर के प्रस्ताव के समर्थकों में थे खान साहब नवाब गुलाम हुसैन खां। एक सदी पूर्व अवध का इतिहास इसका साक्षी रहा।
खैर यहां मियां अमानतुल्ला खान को इन ऐतिहासिक तथ्यों से अवगत करा दूं कि मक्का में डेढ़ सौ से अधिक पुरानी मस्जिदों को गत वर्षों में साउदी बादशाह के हुक्म से तोड़ा गया था ताकि हज के लिये आनेवाले जायरीनों के आवास, भोजन और दर्शन हेतु पर्याप्त व्यवस्था हो सके। मक्का—मदीना इस्लाम का पवित्रतम तीर्थस्थल है। ”साउदी गजट” समाचार—पत्र के अनुसार 126 मस्जिदें तथा 96 मजहबी इमारतें जमीनदोज कर दी गयीं थीं, ताकि विशाल पुनर्निर्माण कार्य हो सके। इस पर बीस अरब डालर (चौदह खरब रुपये) खर्च किये गये। उमराह तथा हज एक ही समय संभव हो, इस निमित्त से यह ध्वंस तथा पुनर्निर्माण कार्य हुआ। ओटोमन तुर्को द्वारा निर्मित संगमरमर के भवनों को पवित्र काबा के समीप से हटाया गया ताकि विशाल मस्जिद चौड़ी की जा सके। बीस लाख यात्रियों को इससे सहूलियत मिली। राजधानी की 98 प्रतिशत ऐतिहासिक इमारतें तोड़ी गयीं ताकि साउदी अरब की राजधानी (ठीक नयी दिल्ली की भांति) समुचित रुप से निर्मित हो सके। यह 1985 की बात है।
कुछ वक्त पूर्व पैगम्बरे इस्लाम के रिश्तेदार के ”हमजा हाउस” को सपाट कर दिया गया ताकि बहुसितारा मक्का होटल बन सके। लंदन—स्थित इस्लामिक हेरिटेज रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक इर्फान अल अलावी ने इसकी सूचना प्रसारित की। अलावी साहब का आरोप था कि मदीना मस्जिद से पैंगम्बर की मजार को दूर करने के लिये तोड़फोड़ की गयी।
इस्लाम के प्रथम खलीफा अबू बक्र के आवास को तोड़कर पांच सितारा हिलटन होटल बन गया है। विश्व की सबसे ऊंची इमारत मक्का रायल क्लाक टावर को आतंकी ओसामा बिन लादेन की कम्पनी ने बनाया है। समीप ही कई माल और होटल बने है। पवित्र काबा पर इसकी छाया अब पड़ने लगी है। पहले सूरज की समूची रोशनी पड़ती थी। साउदी अरब में बहावी धर्म का प्रचलन है। बहावी के अनुसार दरगाह, मजार, कब्र, इबातकेन्द्र आदि को आराधना स्थल मानना गैरइस्लामी है। सिवाय अल्लाह के किसी अन्य की पूजा नहीं की जा सकती।
आश्चर्य की बात यह है कि इतना सब विध्वंस होने के बाद भी इस्लामी राष्ट्रों ने ऐसी इस्लाम—विरोधी हरकतों की तीव्र भर्त्सना नहीं की। डर था कि उनके हज यात्रियों की संख्या कहीं साउदी सरकार घटा न दे। ”मक्का दि सेक्रेड सिटी” के लेखक जनाब जियाउद्दीन सरदार ने लिखा है कि सउदी सरकार को आर्थिक संकट हो सकता है, क्योंकि तेल के कुएं सूखते जा रहे हैं। अत: हज तीर्थयात्रियों द्वारा भरपाई की जा सकती है। इसीलिये यह नवनिर्माण कार्य किया जा रहा है।
इन उपरोक्त तथ्यों पर गौर करने से इतना तो स्पष्ट है कि विकास कार्य के लिये परिवर्तन तो होता ही है। इसी से नवीन भवनों के अवतरण भी संभव है। मियां अमानतुल्ला खान को यही समझना होगा कि जब पवित्र स्थल मक्का में मस्जिद और धार्मिक इमारतें तोड़कर नये उपयोगी भवन निर्माण हो सकते हैं तो नयी दिल्ली में तो जनता के पार्कों में कब्जा जमाना कहां तक उचित और तर्कसम्मत ठहराया जा सकता है? बदलाव तो होना ही है। प्राचीन को अर्वाचीन हेतु जगह देनी पड़ेगी। अपनी पहली मास्को यात्रा पर मैंने देखा था कि एक पुराने चर्च को समूचा खोदकर, उठाकर किनारे कर दिया गया था, ताकि सड़क चौड़ी हो सके। ईसाईयों ने इसकी सहमति भी दी थी। नयी दिल्ली फिर क्यों दकियानूसी बना रहे। इन्द्रप्रस्थ था, शाहजहानाबाद बना, लुटियंस का नयी दिल्ली बना, अब सेक्युलर भारत की सेक्युलर राजधानी बनेगी।