लखनऊ। देश में बहादुर आईपीएस अफसरों की फेहरिस्त काफी लंबी है। आज बात मशहूर आईपीएस अधिकारी राजेश कुमार पांडेय की। यह वहीं आईपीएस अधिकारी हैं जिन्होंने कभी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर किया था। IPS अफसर राजेश कुमार पांडेय का जन्म यूपी के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ। राजेश कुमार पांडेय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1982 में वनस्पति विज्ञान से एमएससी किया। यू.जी.सी की परिक्षा पास करने के बाद राजेश कुमार पांडेय ने IARI (Pusa Institute) में रिसर्च एसोशिएट के तौर पर नौकरी की।
साल 1986 में राजेश कुमार पांडे पुलिस उपाधीक्षक बनाए गए। उन्होंने सोनभद्र, जौनपुर, आजमगढ़ और लखनऊ में सर्किल ऑफिसर के तौर पर भी सेवा दी। एसपी सिटी के तौर पर वो लखनऊ, गाजियाबाद और मेरठ में तैनात रहे जबकि एडिशनल एसपी के तौर पर उन्होंने बाराबंकी में भी सेवा दी।
आतंकी हमलों की जांच की
इंडियन पुलिस सर्विस में आने के बाद वो रायबरेली और गोंडा में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात रहे। निडर आईपीएस राजेश कुमार पांडेय ने कई गंभीर आतंकी घटनाओं की जांच-पड़ताल की। इसमें साल 2005 में हुआ अयोध्या अटैक, वाराणसी के दश्वामेघ मंदिर में साल 2006 में हुआ आतंकी हमला और फैजाबाद तथा लखनऊ के जिला अदालत में हुई ब्लास्ट की घटना शामिल हैं। लखनऊ में करीब 11 महीने के कार्यकाल में उन्होंने कई बड़ी घटनाओं के खुलासे किए और चर्चा में बने रहे।
श्रीप्रकाश शुक्ला का किया एनकाउंटर
कहा जाता है कि आईपीएस अधिकारी राजेश कुमार पांडेय ने अपनी पूरी सेवा काल के दौरान 80 से ज्यादा एनकाउंटर किये। उन्होंने किसी समय यूपी के कुख्यात डॉन रहे श्रीप्रकाश शुक्ला का भी एनकाउंटर किया था। कभी यूपी के सीएम कल्याण सिंह की सुपारी लेने वाले श्रीप्रकाश शुक्ला को दबोचने के लिए 4 मई 1998 को राज्य के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने यूपी पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को चयनित कर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) गठन किया। राजेश कुमार पांडे को भी इस टीम में जगह मिली।
23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के तत्कालीन प्रभारी अरुण कुमार को खबर मिलती है कि श्रीप्रकाश शुक्ला दिल्ली से गाजियाबाद की ओर आ रहा है। एसटीएफ की टीम ने तुरंत उसकी घेराबंदी का प्लान बना लिया। जैसे ही शुक्ला की कार ने वसुंधरा एन्क्लेव पार किया, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम ने उसका पीछा शुरू कर दिया। उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ की टीम ने अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया। पुलिस ने उससे सरेंडर करने के लिए कहा कि लेकिन उसने फायरिंग कर दी। एसटीएफ की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया। उसका एनकाउंटर करने वालों में राजेश पांडेय शामिल थे।
मुन्ना बजरंगी को मारी गोली
बात 1998 की है। तब पुलिस को सूचना मिली की कुख्यात अपराधी मुन्ना बजरंगी दिल्ली में मौजूद है। उस वक्त मुन्ना बजरंगी को दबोचने के लिए राजेश पांडेय के नेतृत्व में एक टीम दिल्ली के लिए रवाना की गई। सीमापुरी बॉर्डर पर मुन्ना बजरंगी और उसके गुर्गों के साथ राजेश पांडेय की टीम की मुठभेड़ हुई। इस दौरान मुन्ना बजरंगी को पुलिस की गोली लगी और वो घायल हो गया। डॉक्टरों ने मुन्ना को मृत घोषित कर मुर्दा घर भेज दिया था। लेकिन बाद में उसकी सांसें चलने लगीं तो पुलिस उसे लेकर अस्पताल गई थी।
बाद में मुन्ना बजरंगी कई दिनों तक बागपत जेल में कैद रहा। यहां सुनील राठी ने मुन्ना को दस गोलियां मार कर उसकी हत्या कर दी। पोस्टमार्टम के दौरान मुन्ना के शरीर से एक गोली निकली। यह वहीं गोली बताई जाती है, जो एसटीएफ की मुठभेड़ के दौरान पुलिस अफसर राजेश पांडेय ने मारी थी। 20 साल बाद पुरानी गोली माफिया डॉन की लाश से निकलने की काफी चर्चा रही।