लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के बाद विष्णु तिवारी करीब 20 साल बाद जेल से निकले हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। संस्था ने उत्तर प्रदेश के DGP और और मुख्य सचिव को जवाब देने को कहा है। विष्णु को रेप के मामले में फँसाया गया था। NHRC ने पूछा है कि इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है?
साथ ही पीड़ित विष्णु तिवारी को राहत और उनके पुनर्वास के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं, NHRC ने इसका भी विस्तृत विवरण माँगा है। इसके लिए 6 सप्ताह का समय दिया गया है। सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (सजा समीक्षा बोर्ड) पर सवाल उठाते हुए संस्था ने कहा है कि ये बोर्ड एकदम से निष्क्रिय हो गया है। ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें 75 वर्ष से अधिक की उम्र के बंदियों की जेल में ही मौत हो गई।
NHRC ने मीडिया रिपोर्ट्स के सामने आने पर इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया। कहा गया है कि एक 23 वर्ष के युवक को बलात्कार के मामले में ट्रायल कोर्ट उम्रकैद की सज़ा सुनाता है और 20 साल जेल में बिताने के बाद हाईकोर्ट उसे निर्दोष पाता है। इस अवधि के दौरान विष्णु तिवारी के परिवार के कई सदस्यों की मृत्यु हो गई।
जेल में उनका आचरण अच्छा पाया गया था। लेकिन, आश्चर्य की बात ये है कि इन सबके बावजूद उन्हें पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल नहीं दिया गया। भाई के अंतिम संस्कार में शामिल होने की भी अनुमति नहीं मिली। उन पर वर्ष 1999 में अनुसूचित जाति (SC) की एक महिला के साथ बलात्कार का आरोप लगा था। 2005 में वो न्याय के लिए हाईकोर्ट पहुँचे और वहाँ से उन्हें अब जाकर राहत मिली है।
बता दें कि CrPc की की धारा 433 के तहत, सरकार सज़ा को कम (मौत की सज़ा, आजीवन कारावास, सश्रम कारावास या साधारण कारावास) कर सकती है। सेंटेंस रिव्यू बोर्ड को इसके लिए अदालत की सज़ा की समीक्षा करनी पड़ती है। पीड़ित को हुए आघात, मानसिक पीड़ा और सामाजिक कलंक की क्षतिपूर्ति के लिए उसे क्या राहत दी गई है, NHRC ने ये विशेष रूप से पूछा है। विष्णु तिवारी पर रेप का मामला भूमि विवाद के कारण दायर किया गया था, जिस कारण उनके जीवन के दो दशक जेल में बीत गए।
विष्णु तिवारी के 20 साल कौन लौटाएगा?
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अपने भाई महादेव को जेल में खुद से मिलने आया हुआ देख कर विष्णु तिवारी हमेशा काँप जाते थे क्योंकि चार अपनों की मौत की खबर भी महादेव ही लेकर आए थे। सबसे पहले 2013 में उनके पिता की मौत हो गई। एक साल बाद ही माँ भी चल बसीं। उसके बाद उनके दो बड़े भाई भी दुनिया छोड़कर चले गए। विष्णु 5 भाइयों में तीसरे नंबर पर आते हैं। आगरा के सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने उनके लिए आवाज़ उठाई थी।
जेल के कैदियों का भी कहना है कि विष्णु उन सबके अच्छे मित्र बन गए थे और कैदियों के लिए भोजन पकाया करते थे। उनका सबसे पसंदीदा गाना ‘शोर (1972)’ में महेंद्र कपूर और मन्ना डे का गाया हुआ ‘जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम’ है, जिसे वो हमेशा गुनगुनाते रहते थे। जेल से छूटने के बाद वो एक ढाबा चलाना चाहते हैं, लेकिन उनके पास इसके लिए कोई पूँजी नहीं है। वो कहते हैं कि कहीं नौकरी कर के कुछ रुपए जमा करेंगे।