नई दिल्ली। वन चाइना पॉलिसी को लेकर हमेशा से ही चीन काफी आक्रामक रुख इख्तियार करता रहा है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के दौरान ड्रैगन की वन चाइना पॉलिसी पर कई बार खुद पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने सवाल उठाते हुए इसको गलत बताया था। अब इसके खिलाफ एक बार फिर से रिपब्लिकन सांसद उतर आए हैं। इन्होंने सदन में इसके खिलाफ एक विधेयक भी पेश किया है। विदेश मामलों के जानकार मानते हैं कि यदि ये विधेयक पास हो जाता है तो चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यही वजह है कि इस विधेयक को लेकर चीन की धड़कनें भी कहीं न कहीं बढ़ी हुई हैं। अमेरिकी संसद में चीन की वन चाइना पॉलिसी के खिलाफ विधेयक को सांसद टॉम टिफनी और स्कॉट पेरी ने पेश किया है। इसके जरिए इन दोनों ने राष्ट्रपति बाइडन से ताइवान को अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सदस्यता देने का समर्थन करने और उससे फ्री ट्रेड को लेकर समझौता करने की अपील की गई है।
ये पूछे जाने पर कि क्या इसके बाद ताइवान को भविष्य में एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर देखा जा सकेगा या इस तरह की मान्यता उसको मिल जाएगी, प्रोफेसर भास्कर ने बताया कि ये काफी मुश्किल है। उनका कहना है कि ताइवान हो या हांगकांग यहां पर चीनी समर्थक भी कम नहीं हैं। इसलिए ये कहना कि उसको भविष्य में स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर मान्यता दी जाएगी काफी मुश्किल है। हालांकि ताइवान इसको लेकर काफी समय से प्रयासरत है। लेकिन इसमें वो सफल होगा इस बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता है।
प्रोफेसर भास्कर की मानें तो यदि ये विधेयक पास होता है तो अमेरिका सीधेतौर पर हांगकांग और ताइवान से न सिर्फ संबंध स्थापित कर सकेगा बल्कि व्यापार और इससे संबंधित स्वतंत्र नीतियां भी बना सकेगा, जिसमें चीन की दखल की जरूरत नहीं होगी। ऐसा करने से वो ताइवान की सुरक्षा संबंधी जरूरतों को भी पूरा कर सकेगा। चीन के लिए ये दोनों ही स्थितियां कहीं न कहीं खराब साबित होंगी। अमेरिका यदि इस विधेयक पर मुहर लगाता है तो चीन को व्यापारिक आथर्कि और राजनीतिक तौर पर इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।