नई दिल्ली। 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में हिंसा और बर्बरता की भयावह स्थिति देखने को मिली थी। प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने पुलिस बैरिकेड तोड़कर भगदड़ मचाया, तोड़फोड़ की और सार्वजनिक संपत्तियों एवं वाहनों को नुकसान पहुँचाया। ऐतिहासिक इमारत लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराकर तिरंगे का अपमान किया।
किसानों ने ‘शांतिपूर्ण’ मार्च निकालने की बात कह कर ट्रैक्टर रैली निकालने की अनुमति माँगी थी। मगर इस दौरान जिस तरह की क्रूरता और हिंसा को अंजाम दिया गया, वो सबने देखा। इसके बाद ‘प्रदर्शनकारियों’ का नेतृत्व करने वाले राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव के निशाने पर आ गए।
हिंसक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए, दिल्ली पुलिस ने ट्रैक्टर रैली के पीछे एक बड़ी और आपराधिक साजिश की जाँच के लिए कठोर गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम और धारा 124 (ए) (राजद्रोह) के तहत प्राथमिकी दर्ज की। एफआईआर में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत का भी जिक्र है, जिन्होंने दिल्ली में कहर बरपाने और भीड़ को उकसाने का काम किया।
कौन हैं राकेश टिकैत?
राकेश टिकैत सितंबर 2020 में केंद्र द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख नेताओं में से एक के रूप में उभरे हैं। वे भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रवक्ता हैं। इस समय बीकेयू के प्रमुख उनके बड़े भाई नरेश टिकैत हैं। लेकिन, संगठन की बागडोर असल मायनों में राकेश टिकैत ने सँभाल रखी है।
राकेश को उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत की विरासत मिली, जो 1980 के दशक में सबसे अग्रणी किसान नेताओं में से एक थे। माना जाता है कि महेंद्र सिंह टिकैत को किसानों से व्यापक समर्थन था, जिसका इस्तेमाल उन्होंने दिल्ली के सत्ता गलियारों में कृषि और किसानों के बारे में सरकार की नीतियों को प्रभावित करने के लिए किया था।
भारतीय किसान यूनियन 1987 में अस्तित्व में आई, जब महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसानों ने शामली जिले के करमूखेड़ी में एक बड़ा आंदोलन किया। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप दो किसान जयपाल और अकबर की मृत्यु हो गई थी। यह घटना के बाद बीकेयू का गठन किया गया था और महेंद्र टिकैत को इसका अध्यक्ष बनाया गया था।
मेरठ विश्वविद्यालय से एमए और एलएलबी पूरा करने के बाद राकेश टिकैत 1985 में दिल्ली पुलिस में शामिल हुए। जल्द ही, 1990 के दशक में राकेश ने दिल्ली पुलिस से नौकरी छोड़ दी और अपने पिता और बड़े भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में कदम रखा। यद्यपि नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन (BKU) के वर्तमान अध्यक्ष हैं, लेकिन यह आरोप लगाया जाता है कि संगठन के कामकाज को राकेश टिकैत द्वारा काफी हद तक नियंत्रित किया जाता है।
राकेश टिकैत ने एक बार कृषि बिल का समर्थन किया था
राकेश टिकैत ने मोदी सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों का समर्थन किया था। बीकेयू ने लिखित में माँग की थी कि भारतीय किसान को एपीएमसी के अत्याचार से मुक्त किया जाए। हालाँकि जब विपक्ष ने मोदी सरकार को घेरने के लिए इसका मुद्दा बनाया तो राकेश टिकैत ने भी यूटर्न ले लिया।
1/4 This is Kisan Manifesto prepared by KCC. It is a very comprehensive document which details out problems and solutions to agriculture crisis. Liberalisation/ Freedom of agriculture is the essence. All political parties should adopt these suggestions if they are sincere (cont) pic.twitter.com/xmQz4E0bAC
— Bhartiya Kisan Union (@BKU_KisanUnion) April 3, 2019
बता दें कि 27 साल पहले जिन सुधारों को लेकर किसानों के अब तक के सबसे बड़े नेता महेंद्र सिंह टिकैत सरकार से लड़े थे, आज नए कृषि कानूनों में उन्हें पूरा किए जाने के खिलाफ ही उनके बेटे राकेश टिकैत ने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
राकेश टिकैत न सिर्फ पिता का कहे भूले हैं, वे अपनी कही बातों से भी अब पीछे हट रहे हैं। वे आज उन्हीं सुधारों का विरोध कर रहे हैं जिसकी इस साल जून में उन्होंने प्रशंसा की थी। इतना ही नहीं 2019 के आम चुनावों के वक्त जब कॉन्ग्रेस ने इन्हें अपने घोषणा-पत्र में जगह दी थी, तब भी बीकेयू ने उसे सराहा था। जून 2020 में राकेश टिकैत ने ‘एक मंडी’ के तोहफे को सराहते हुए सरकार के कदम का स्वागत किया था।
आज यही BKU इन कृषि सुधारों का विरोध कर रही है। इसका कारण क्या है? यह कैसी किसान पॉलिटिक्स है? यह बेहतर राकेश टिकैत ही बता सकते हैं, क्योंकि AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के भी BKU के साथ लिंक सामने आए हैं।
राकेश टिकैत और 2013 मुजफ्फरनगर दंगे
टिकैत लगातार चल रहे किसानों के विरोध-प्रदर्शनों से राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब टिकैत पर अशांति फैलाने का आरोप लगाया गया है। 2013 में, टिकैत को उनके कथित भड़काऊ भाषणों के लिए नामजद किया गया था, जिनके कारण 2013 में मुजफ्फरनगर भड़क गया था। राकेश पर 7 सितंबर 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों में सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने का मामला दर्ज किया गया था।
मुजफ्फरनगर के निवासियों के अनुसार, राकेश टिकैत और उनके भाई नरेश टिकैत, दोनों शहर में भीषण सांप्रदायिक दंगा भड़काने के लिए ‘पहले अपराधी’ थे। राकेश टिकैत ने 7 सितंबर को महापंचायत में भाग लिया था और पुलिस ने उन्हें उनके भड़काऊ भाषणों के माध्यम से सांप्रदायिक जुनून को हवा देने के लिए नामजद किया था।
टिकैत ने तब स्वीकार किया था कि वह महापंचायत की बैठक में शामिल हुए थे, लेकिन इसके मद्देनजर हुई हिंसा से उन्होंने हाथ पीछे खींच लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि भीड़ नियंत्रण से बाहर थी और वे किसी नेता की बात नहीं सुन रही थी।
टिकैत ने तब कहा था, “वे हमारे लोग नहीं थे। वे किसी नेता की बात नहीं सुन रहे थे। वे किसी भी मंच से संबंधित नहीं थे। 27 अगस्त की घटना के बारे में प्रारंभिक एफआईआर में गलत तरीके से लोगों का नाम रखने के लिए वे पुलिस से नाराज थे।”
दंगों में 60 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और हजारों लोग बेघर हो गए थे। दंगों के सिलसिले में 6 बलात्कार के मामले भी दर्ज किए गए। टिकैत ने तब दावा किया था कि ‘जाटों’ पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाया गया था और उन्होंने नए सिरे से जाँच की माँग की थी।
गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा की हालिया घटना में भी इसी तरह की चीजें देखने को मिली। यहाँ भी टिकैत ने उनके नेतृत्व में हिंसक हुए विरोध-प्रदर्शन से खुद का बचाव किया। जाहिर तौर पर, टिकैत उन नेताओं में से हैं, जो सार्वजनिक चकाचौंध में तो बने रहना चाहते हैं, लेकिन खुद के किए गए कृत्यों के नतीजों की जिम्मेदारी भी नहीं लेना चाहते हैं।
टिकैत का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें उन्होंने प्रदर्शनकारियों को लाठी और झंडे लेकर चलने के लिए कहा। बक्कल उखाड़ने के धमकी दी थी। लेकिन ट्रैक्टर रैली के दौरान प्रदर्शनकारियों द्वारा अराजकता और अव्यवस्था फैलाने की जिम्मेदारी लेने से टिकैत ने इनकार कर दिया और इसके लिए केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को दोषी ठहराया।
राकेश टिकैत, एक असफल नेता
2004 में टिकैत ने बीकेयू का राजनीतिक विंग ‘बहुजन किसान दल’ बनाया। टिकैत ने खुद यह चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन उनकी पार्टी ने एक भी सीट नहीं जीती थी। 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में, बीकेडी ने कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन किया, जहाँ टिकैत ने खतौली सीट से चुनाव लड़ा था। वह ये चुनाव भी नहीं जीत पाए। वह फिर 2009 में राष्ट्रीय लोक दल (RLD) में शामिल हो गए, जो उस समय NDA गठबंधन का साथी था। हालाँकि, गठबंधन टूट गया और RLD, UPA में शामिल हो गया।
2014 में वे अमरोहा से आम चुनाव लड़े। इसे 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट समुदाय को खुश करने के कदम के रूप में देखा गया था। वह फिर से जीतने में असफल रहे।
आज ‘लिबरल’ टिकैत को भारतीय राजनीति में होने वाली अगली बड़ी चीज़ के रूप में याद कर रहे हैं, जहाँ वे मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगों को आसानी से भूल जाते हैं। दरअसल, मोदी के खिलाफ खड़े होने पर सभी उत्तेजक भाषणों, हिंसा के सभी आरोपों को माफ कर दिया जाता है।