दयानंद पांडेय
कल का दिन राष्ट्रीय शर्म का तो था ही पर कृपया मुझे यह कहने की अनुमति दीजिए कि लालकिले की प्राचीर पर जो भी कुछ अप्रिय हुआ वह आतंकी कार्रवाई थी। आंदोलनकारी , या दंगाई घटना नहीं थी। ठीक वैसे ही जैसे यह ट्रैक्टर रैली के नाम पर टेरर रैली थी। बधाई दीजिए मोदी सरकार और दिल्ली पुलिस को कि उन्हों ने पूरे धैर्य और संयम से काम लिया। इतना कुछ घट जाने के बावजूद एक भी गोली नहीं चलाई। नहीं क्या आई टी ओ , क्या लालक़िला , जालियां वाला बाग़ बनने में देर नहीं लगती। दिल्ली पुलिस के पास लाठी ही नहीं , रिवाल्वर भी थी।
सोचिए कि अगर दिल्ली पुलिस पुलिसियापन पर आ जाती तो इन दंगाइयों , इन आतंकियों का क्या होता। लेकिन दिल्ली पुलिस के सब्र को प्रणाम कीजिए। कि पुलिस पर घोड़े दौड़ाते रहे निहंग , तलवार भी चलाते रहे। लाठी और रॉड से पुलिस वालों को घेर-घेर कर मारते रहे। पुलिस वाले पिटते रहे , जान बचाने के लिए खुद नालों में कूदते रहे पर आंसू गैस और हलके लाठी चार्ज तक ही सीमित रहे। एक भी गोली नहीं चलाई। और तो और इन हिंसक लोगों ने पुलिस वालों को ट्रैक्टर से कुचलने की बार-बार कोशिश की। फिर भी पुलिस ने रिवाल्वर नहीं निकाली। मोदी सरकार ने भी सुरक्षा बलों को काबू में रखा। क्यों कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट दलों की पूरी तैयारी दिल्ली की अनेक जगहों पर जालियां वाला बाग़ बनाने की थी।
लालकिले पर जब आतंकियों ने तिरंगे की जगह एक धार्मिक और एक किसान संगठन के झंडे फहराए तो हंसिया-हथौड़ा का झंडा भी वहां पहुंचाया गया। पर झंडा फहराने वाले ध्यान नहीं दिया उस पर तो वह लालक़िले की प्राचीर की रेलिंग पर ही वह हंसिया-हथौड़ा का झंडा लगा कर खुश हो गया। गनीमत कि कांग्रेस का झंडा वहां नहीं दिखा। कहां तो यह लोग किसान आंदोलन के नाम पर गणतंत्र दिवस का जश्न मनाने और अपनी ताकत दिखाने का दावा कर रहे थे। शांति प्रिय आंदोलन बनाने का दावा था। पुलिस तो पुलिस आज मीडिया के लोग भी खूब पीटे गए। उन के कैमरे तोड़े गए। गाड़ियां तोड़ी गईं। बीते साल भी यही दिसंबर , यही जनवरी थी। जब सी ए ए को ले कर जामिया मिलिया , जे एन यू , शाहीन बाग़ और दिल्ली दंगे हुए थे।
इस बार दिसंबर , जनवरी में भी वही लोग हैं। बस जगह और आंदोलन का नाम बदल गया है। मक़सद लेकिन एक है। हिंसा के सामने पुलिस ने बल प्रयोग नहीं किया , गोली नहीं चलाई यह तो गुड था। पर लालक़िले की प्राचीर पर पुलिस को इंतज़ाम पक्का और पुख्ता करना चाहिए था। सुरक्षा बलों की ऐसी दीवार खड़ी करनी थी कि वहां फटकने की किसी की जुर्रत न होती। इस लिए भी कि पुलिस के पास पर्याप्त इंटेलिजेंस इनपुट था। पाकिस्तान का हाथ मालूम था। कांग्रेस और कम्युनिस्ट का हाथ मालूम था। इन हिंसक लोगों ने लालक़िला पहुंचने का ऐलान भी बारंबार किया था। पर इस सब के बावजूद अमित शाह का फेल्योर बीते साल भी दिल्ली दंगे में दिखा था , इस साल भी दिख गया।
ठीक है कि इस हिंसक भीड़ पर गोली न चलाने का फैसला बहुत दुरुस्त था , शानदार था , पर दिल्ली की सभी सरहद पर , लालक़िला पर , अर्ध सैनिक बलों की भारी तैनाती कर लोहे की दीवार तो बना ही देनी चाहिए थी , कल रात ही। जो नहीं किया गया। सब से बड़ी चूक यही थी। बाक़ी किसान आंदोलन या ऐसे अन्य आंदोलनों से जुड़े हिंसक लोगों को तो यह सब करना ही था , करते रहेंगे। तब तक , जब तक मोदी सरकार को गिरा नहीं देते। कुल मक़सद यही है। जनादेश का सम्मान करना अभी तक यह लोग नहीं सीख पाए। संसद , संविधान , सुप्रीम कोर्ट और सेना का सम्मान करना नहीं सीख पाए। देखना फिर भी दिलचस्प होगा कि बजट के दिन आगामी एक फ़रवरी को संसद घेरने का ऐलान का क्या होगा ? मोदी सरकार हिंसक भीड़ के आगे ऐसे ही सकुचाती लजाती अपनी लाज लुटाती रहेगी या फिर इन आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर इन के होश ठिकाने लगा देगी।
लालक़िला के भीतर गेस्ट हाऊस भी है। मुझे वहां ठहरने का अवसर मिला है। लालक़िला के भीतर के गेस्ट हाऊस में रहने के कारण लालक़िला में भीतर प्रवेश करने और बाहर जाने के लिए मेरे पास अधिकृत पास भी था। पास दिखाने के बावजूद पुलिस और सेना के लोग सघन तलाशी लेते थे। बाद में मुझे सुरक्षा से जुड़े लोग पहचान भी गए थे। फिर भी सुरक्षा बल और सेना के लोग मेरी सघन तलाशी लेते थे। लालक़िला के भीतर वैसे भी कई बार जाने का अवसर मिला है। पर कल जिस तरह उपद्रवी , आतंकियों ने लालक़िला के प्राचीर पर तिरंगे की जगह एक धार्मिक और एक किसान संगठन का झंडा फहराया वह बहुत शर्मनाक था। राष्ट्रीय शर्म था।
उपद्रवियों ने लालक़िला के भीतर और बाहर काफी तोड़-फोड़ भी की है। गणतंत्र परेड में आई झांकियों तक को तोड़ दिया। टिकट काउंटर तोड़ दिया। और तो और गणतंत्र परेड में भाग लेने आए कोई चार सौ बच्चों को बंधक बना लिया था। कोई चार घंटे बाद यह बच्चे मुक्त हुए। फिर जिस तरह कल यह आतंकी लालक़िला परिसर में घुसे , इतनी आसानी से तो बहादुरशाह ज़फ़र के समय अंगरेज भी नहीं घुसे थे। प्रश्न है कि लालक़िला परिसर में सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर क्यों कर दी गई थी कल ?
लालक़िला के प्राचीर पर पहली बार तिरंगा भले पंडित नेहरू ने 15 अगस्त , 1947 को फहराया था। पर बहुत कम लोग जानते हैं कि लालक़िला पर तिरंगा फहराने का सपना नेता जी सुभाषचंद्र बोस का था। यह सुभाषचंद्र बोस की ही इच्छा थी। जिसे नेहरू ने पूरा किया था। महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहने पर भी बहुत लोग नाक-भौं सिकोड़ते हैं। प्रतिवाद करते हैं। तंज करते हैं। पर यह बात भी बहुत कम लोग जानते हैं कि गांधी को महात्मा की उपाधि रवींद्रनाथ टैगोर ने दी थी जब कि यह नेता जी सुभाषचंद्र बोस ही थे जिन्हों ने महात्मा गांधी को फ़ादर ऑफ़ द नेशन कहा था। फ़ादर ऑफ़ द नेशन मतलब राष्ट्रपिता। जय हिंद का नारा भी नेता जी सुभाषचंद्र बोस का दिया हुआ है।
सच तो यह है कि देश की सरहद पर चीन और पाकिस्तान के दांत खट्टे करने वाली मोदी सरकार घरेलू मोर्चे पर लगातार धूल चाटती जा रही है। पस्त होती जा रही है। मोदी सरकार को भली-भांति यह जान लेना चाहिए कि विदेशी कूटनीति के अलावा घरेलू मोर्चे पर भी ज़बरदस्त कूटनीति की ज़रूरत होती है। नहीं कभी शाहीन बाग़ , कभी तबलीगी जमात , कभी मज़दूरों का पलायन और विस्थापन तो कभी किसान आंदोलन की यह रपटीली राह देश को बहुत तेज़ी से गृह युद्ध के मुहाने पर ले जा चुकी हैं। घरेलू मोर्चे पर जैसे कश्मीर में 370 हटा कर आतंक का क़िला फतह किया है , वैसे ही इन अराजक तत्वों पर भी समय रहते अगर फतह नहीं किया तो सारा राफेल , कोरोना वैक्सीन आदि-इत्यादि की उपलब्धि , 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन , जनधन खाते में नियमित पैसा , किसान सम्मान निधि , मुफ्त गैस , मुफ्त मकान और शौचालय आदि जनप्रिय काम किसी काम नहीं आने वाले। शांति के मोर्चे पर अगर कोई अपना घर ठीक नहीं कर सकता तो समझिए कुछ नहीं कर सकता। फिर सारा देश तो छोड़िए , हर बार दिल्ली में ही मोदी सरकार लात खा जाती है। मात खा जाती है।
सो समय आ गया है कि नरेंद्र मोदी अपने गृह मंत्री अमित शाह को फौरन से पेस्तर बदल दें। अमित शाह जोड़-तोड़ , चुनावी गणित और हेन-तेन में भले पारंगत हों पर गृह मंत्रालय और प्रशासन संभालने में पूरी तरह विफल साबित होते दिख रहे हैं। दिल्ली देश का दिल है। जो दिल नहीं संभाल सकता , किडनी , लीवर , फेफड़ा भी कैसे संभाल सकता है। यानी जो दिल्ली नहीं संभाल सकता , वह पूरा देश कैसे संभाल सकता है। बीते दिनों पश्चिम बंगाल से कुछ आई पी एस अफसरों को दिल्ली बुलवाया था अमित शाह ने , ममता बनर्जी ने अंगूठा दिखा दिया। अमित शाह कुछ नहीं कर पाए। ऐसे और भी कई मामले हैं। नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ जैसा कोई दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ा प्रशासन वाला व्यक्ति गृह मंत्री बना लेना चाहिए। नहीं , दिल्ली ऐसे ही जब-तब झुलसती और जलती रहेगी। और अरविंद केजरीवाल जैसे व्यक्ति आप के सिर पर बैठ कर लगातार हवा खारिज करते रहेंगे। आप मन मसोस कर उस बदबू को बर्दाश्त करते रहेंगे।