लव जिहाद और जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जो कानून लागू किया है, उसका 224 पूर्व IAS अधिकारियों ने समर्थन किया है। इससे पहले 104 पूर्व आईएएस अधिकारियों ने इस कानून को ‘हेट पॉलिटिक्स’ का हिस्सा बताते हुए वापस लेने की माँग की थी।
टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक 224 पूर्व नौकरशाहों ने पत्र में कहा है, “यह चिंता का विषय है कि खुद को गैर राजनीतिक दिखाने वाला सेवानिवृत्त अधिकारियों का एक समूह पक्षपाती है और उसका रवैया हर मुद्दे पर सत्ता विरोधी है। वह समूह इस तरह के अनैतिक बयान देकर भारतीय संविधान, उससे जुड़े लोगों, संस्थानों और खुद आईएएस अधिकारियों की छवि खराब करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ता है।”
‘फोरम ऑफ़ कंसर्न्ड सिटिज़न्स’ (Forum of Concerned Citizens) के बैनर तले 224 सेवानिवृत्त अधिकारियों ने कहा कि ‘पक्षपाती’ प्रशासनिक अधिकारियों और कुछ अन्य लोगों की रुचि इस बात में है कि कैसे भारत की अखंडता को नुकसान पहुँचाया जाए।
पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले योगेन्द्र नरेन ने कहा कि ‘धर्मांतरण के खिलाफ़ क़ानून’ ग़ैरक़ानूनी तरीके से होने वाले धर्म परिवर्तन के मामलों पर निगाह रखने के लिए ज़रूरी है। उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस तरह के मामलों से निपटने के लिए यह क़ानून बना कर बिलकुल सही किया। उन्होंने कहा, “यह सभी पर लागू होता है। यह किसी एक धर्म या वर्ग को निशाना नहीं बनाता है। अगर कोई धर्म परिवर्तन करवाना चाहता है तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा। सरकार के पास यह तय करने का अधिकार है कि धर्म परिवर्तन किस तरह किए जाएँगे।”
104 पूर्व आईएएस अधिकारियों द्वारा किए गए दावों से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए नरेन ने कहा कि जनता ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को चुना है और सरकार के पास इस तरह के क़ानून को लागू करने का अधिकार है। इस क़ानून की ‘संवैधानिक वैधता’ जाँचने के लिए न्यायपालिका है। जबरन धर्मांतरण की समस्या को कई समाचार पत्र सामने लेकर आए हैं और इस मामले में सरकार की तरफ से कदम उठाए जाने के लिए यही सही समय था।
कुछ दिनों पहले 104 पूर्व आईएएस अधिकारियों ने योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर आरोप लगाया था कि उत्तर प्रदेश ‘नफ़रत की राजनीति’ का केंद्र बन गया है। अधिकारियों ने अपने पत्र में लिखा था, “यह काफी दुःखद है कि पिछले कुछ सालों में, उत्तर प्रदेश जिसे गंगा-जमुनी तहजीब का गढ़ माना जाता था वह कट्टरता, विभाजन और नफ़रत की राजनीति का केंद्र बन चुका है। इसके अलावा शासन से जुड़ी संस्थाएँ समाज में ज़हर घोलने का काम कर रही हैं।”