लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने डॉ. कफील खान की रिहाई के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस संबंध में शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है। इस साल सितंबर में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत कफील खान की हिरासत रद्द कर दी थी।
प्रदेश सरकार का कहना है कि कफील खान का अपराध करने का इतिहास पुराना है। इस बात को मद्देनजर रखते हुए उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। उसे निलंबित किया गया। एफआईआर दर्ज की गई और एनएसए भी लगाया गया था।
डॉ. कफ़ील खान को सीएए और एनआरसी के विरोध में भड़काऊ भाषण देने के मामले में योगी सरकार ने एनएसए के तहत हिरासत में लिया था। इस प्रकरण में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन्हें 1 सितंबर 2020 को राहत दी थी। हाई कोर्ट के आदेशानुसार एनएसए के तहत डॉ. कफ़ील की गिरफ्तारी और गिरफ्तारी की अवधि बढ़ाना गैरकानूनी था। हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद उसे मथुरा जेल से रिहा कर दिया गया था।
योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है, “डॉ. कफ़ील को यह जानकारी दी गई थी कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के आस-पास धारा 144 लागू है। हाई कोर्ट ने भी परिसर के 100 मीटर के दायरे में विरोध-प्रदर्शन पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद कफील खान वहाँ गए और एएमयू के छात्रों के बीच भड़काऊ भाषण दिया। उस भाषण के परिणामस्वरूप 13 दिसंबर 2019 को एएमयू के लगभग 10 हजार छात्रों ने अलीगढ़ की तरफ मार्च करना शुरू किया था। पुलिस ने उन छात्रों को किसी तरह समझाकर शांत किया, अन्यथा सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की आशंका थी।” योगी सरकार के मुताबिक़ हाई कोर्ट का यह आदेश सही नहीं था।
गौरतलब है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में सीएए को लेकर 12 दिसंबर 2019 को विरोध-प्रदर्शन हुआ था, जिसकी अगुवाई कफ़ील खान ने की थी। इस संबंध में अलीगढ़ सिविल लाइंस थाने में FIR दर्ज की गई थी। 29 जनवरी 2020 को कफील खान की गिरफ्तारी हुई थी और उन्हें मथुरा जेल भेज दिया गया था। इसके बाद 10 फरवरी को सीजेएम अलीगढ़ ने डॉ. कफ़ील की जमानत याचिका स्वीकार कर ली थी और 13 फरवरी को अलीगढ़ के जिलाधिकारी ने एनएसए लगाया था। कफील की माँ ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद उसे राहत मिली थी।