राजेश श्रीवास्तव
अर्थशास्त्री और लेखक गुरचरण दास कृषि क्षेत्र में सुधार के एक बड़े पैरोकार हैं और मोदी सरकार द्बारा लागू किये गए तीन नए कृषि क़ानूनों को काफ़ी हद तक सही मानते हैं । ‘इंडिया अनबाउंड’ नाम की प्रसिद्ध किताब के लेखक गुरचरण दास के अनुसार प्रधानमंत्री किसानों तक सही पैग़ाम देने में नाकाम रहे हैं। वो कहते हैं कि नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे बड़े कम्युनिकेटर होने के बावजूद किसानों तक अपनी बात पहुंचाने में सफल नहीं रहे। अगर समझने की कोशिश करें तो शायद यही कारण है कि किसानों का अांदोलन पांचवे दौर की बातचीत के बाद भी थम नहीं रहा है। किसानों का आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है। इस बार किसानों ने आर-पार का मूड बना लिया है और वे सरकार से किसी तरह की बातचीत की स्थिति में दिख ही नहीं रहे हैं। सरकार जरूर बातचीत कर रही है और किसानों से अपील कर रही है कि आप आंदोलन खत्म करिये बच्चों व बुजुर्गों को घर भेज दीजिये पर किसान टस से मस नहीं हो रहे हैं। वह महीनों का राशन लेकर ऐसे जमे हैं जैसे बिना कानून वापस लिये उन्हें वापस ही नहीं आना है। किसान आंदोलन के मामले में देखा जाये तो मोदी सरकार की रणनीति पूरी तरह विफल रही । पहले तो सरकार ने उन्हें अपने रुवाब में लेने की कोशिश की ।
वाटर केनन और लाठी के दम पर हटाने की कोशिश की जब बात नहीं बनी तो बातचीत का रास्ता निकाला। प्रधानमंत्री ने मन की बात की। पर किसान अब मन की सुनने को तैयार नहीं उन्हें कागज पर लिखा हुआ चाहिए कि कानून वापस हो गया। जबकि मोदी सरकार के मंत्री लगातार उन्हें चिढ़ा रहे हैं कि जो अांदोलन कर रहे हैं वह किसान नहीं हैं, सिर्फ दो ही राज्यों के किसान ही आंदोलन क्यों कर रहे हैं, इस तरह की टिप्पणियों ने किसानों को और उग्र कर दिया है। इस बार अन्नदाता और सरकार की ऐसी ठनी है कि बीच का रास्ता निकलता ही नहीं दिख रहा है और किसानों के नेताओं से हुई बातचीत को आधार मानें तो बिना कानून वापसी के यह लोग हटने को तैयार नहीं होंगे। आगामी आठ दिसंबर को किसान संगठनों ने भारत बंद का ऐलान किया है। अब देखना यह भी जरूरी होगा कि यह बंद कितना सफल रहता है।
दरअसल सरकार ने समझा था कि जिस तरह वह एनआरसी और नोटबंदी सरीखेअन्य आंदोलनों से निपट चुकी है उसी तरह किसानों के आंदोलन से भी निपट लिया जायेगा। लेकिन सरकार को यह समझना होगा कि जितना दिन आंदोलन खिंच रहा है किसानों की संख्या उतनी ही बढ़ेगी और उसे रोकना और कठिन होता जायेगा। क्योंकि देश में अगर किसी भी प्रोफेशन की बात करें तो सबसे ज्यादा अन्नदाता ही हैं। देश का लगभग हर तीसरा नागरिक किसान है या उसके परिवार में कोई न कोई खेती-किसानी से जुड़ा है इसलिए संवेदना सबकी किसानों के साथ ही है।
बीते नौ दिनों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान अब और आक्रामक रुख़ अपना रहे हैं। सरकार के साथ होने वाली पाँचवे दौर की बैठक से पहले किसानों ने साफ कर दिया है कि अब वो अपनी माँगों से पीछे नहीं हटेंगे । पहले जो किसान एमएसपी का क़ानूनी अधिकार मिलने पर मानने को तैयार थे, वो अब तीनों क़ानूनों को रद्द करने से कम किसी भी बात पर मानने को तैयार नहीं हैं। किसानों की एक ही माँग है कि तीनों क़ानून पूरी तरह रद्द होने चाहिए। वह इससे कम किसी भी बात पर नहीं मानेंगे। सरकार से जो चर्चा होनी थी, हो चुकी। अब दो-टूक बात होगी। जब तक सरकार क़ानून वापस नहीं लेगी, वह यहीं डटे रहेंगे।
पंजाब से दिल्ली की तरफ मार्च कर रहे किसानों के काफ़िले को रोकने की सरकार ने हरसंभव कोशिश की। सड़कों पर बैरिकेड लगाये, सड़के खोद दीं, पानी की बौछारें कीं, लेकिन किसान हर बाधा को लांघते हुए दिल्ली पहुँच गए। तब से हर दिन किसानों का आंदोलन और मज़बूत होता जा रहा है। पंजाब और हरियाणा से घर-घर से लोग यहाँ पहुँच रहे हैं। प्रदर्शनकारियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए किसान आंदोलन के नेता भी अपनी रणनीति बदल रहे हैं। किसान नेता कहते हैं कि जनता में ज़बरदस्त गुस्सा है। अगर यूनियन के नेता सरकार से समझौता करेंगे, तो किसान अपने नेताओं को ही बदल देंगे, लेकिन पीछे नहीं हटेंगे। अब किसानों ने शनिवार और रविवार की वार्ता पूरी होने से पहले ही आठ दिसंबर को भारत बंद का ऐलान कर दिया है। क्या ये वार्ता को डीरेल यानी पटरी से उतारने का एक प्रयास है? सरकार स्पष्ट रूप से समझ ले कि अगर उसने माँगे नहीं मानीं, तो ये आंदोलन और बड़ा होता जाएगा। सरकार सिर्फ़ इसलिए इन क़ानूनों पर पीछे नहीं हट रही, क्योंकि सरकार को यह लग रहा है कि यदि वो पीछे हटी तो प्रधानमंत्री मोदी का जो जादू है, वो टूट जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार यह कहते रहे हैं कि ये कृषि क़ानून किसानों के हित में हैं और किसानों को प्रदर्शन करने के लिए बरगलाया गया है। वाराणासी में दिये अपने बयान में भी प्रधानमंत्री ने यही बात दोहराई थी। इसके बाद से उन्होंने इस विषय पर कोई बयान नहीं दिया है। किसानों में इसको लेकर भी खासा आक्रोश है।