आखिर क्यों पीएम बार-बार कर रहे वन नेशन वन इलेक्शन की बात

राजेश श्रीवास्तव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को संविधान दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने एक बार फिर देश के लिए वन नेशन-वन इलेक्शन को जरूरी बताया। पीएम मोदी ने कहा कि देश में हर कुछ महीने में कहीं ना कहीं चुनाव हो रहे होते हैं, जिस पर बहुत खर्च होता है। ऐसे में इस पर सोचने की जरूरत है। मोदी ने कहा कि अब हमें पूरी तरह से डिजिटलकरण की ओर बढ़ना चाहिए और कागज के इस्तेमाल को बंद करना चाहिए। उन्होंने पीठासीन अधिकारियों के 8०वें अखिल भारतीय सम्मेलन के समापन सत्र को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिग के ज़रिए सम्बोधित करते हुए फिर इसकी चर्चा की।
प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष जून में भी ‘एक देश, एक चुनाव’ के मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। वो काफ़ी समय से लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने पर ज़ोर देते रहे हैं। वन नेशन वन इलेक्शन की जरूरत बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे देश में हर साल कई चुनाव होते हैं, जिसमें पंचायत चुनाव से लेकर नगर निगम चुनाव, विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव और उपचुनाव तक शामिल हैं। इस संबोधन के दौरान पीएम में बैठक में मौजूद सभी पीठासीन अधिकारियों और संबंधित लोगों से अपील की कि वह वन नेशन वन इलेक्शन यानी एक देश एक चुनाव को लेकर गंभीरता से चर्चा करें और देखें कि कैसे इस ओर देश आगे बढ़ सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर देशभर में अध्ययन और मंथन करना जरूरी है, जिससे कि इसको मुमकिन किया जा सके। उन्होंने कहा कि साल के कई महीने इन चुनावों में ही निकल जाते हैं, जिसकी वजह से इन चुनावों पर जनता का करोड़ों रुपये तो खर्च होता ही है, इसके अलावा चुनावों की वजह से लगने वाली आदर्श आचार संहिता के कारण कई विकास के कार्य भी रुक जाते हैं और उससे देश के विकास और प्रगति पर भी असर पड़ता है। वन नेशन वन इलेक्शन की ओर बढ़ने के लिए प्रधानमंत्री ने सभी चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट रखने का भी सुझाव दिया, प्रधानमंत्री ने सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर इस देश में होने वाले अलग अलग चुनावों के लिए अलग अलग वोटर लिस्ट की जरूरत क्यों है। क्यों नहीं एक ही वोटर लिस्ट से देशभर में पंचायत से लेकर लोकसभा तक का चुनाव करवाया जा सकता। पीएम ने कहा कि ऐसा होने से लोगों को होने वाली दिक्कत और परेशानी से तो बचा जा ही सकेगा, साथ ही करोड़ों रुपए की बचत भी हो सकती है।
यह कोई पहला मौका नहीं है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में वन नेशन वन इलेक्शन यानी एक देश एक चुनाव की बात की हो। इससे पहले भी प्रधानमंत्री वन नेशन वन इलेक्शन की बात करते रहे हैं। इसके साथ ही लॉ कमीशन भी वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर अलग-अलग राजनीतिक दलों से उनकी सलाह मांग चुका है। उस दौरान कई राजनीतिक दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन की बात रखते हुए वन नेशन वन इलेक्शन की ओर आगे बढ़ने का सुझाव दिया था तो कई राजनीतिक दलों ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि हमारे देश में यह मुमकिन नहीं है। क्योंकि इतने बड़े देश में सारे चुनाव एक साथ करवाना तर्कसंगत नहीं है।
लेकिन आपको मालुम होना चाहिए कि वन नेशन वन इलेक्शन कोई नया आइडिया नहीं है। आजाद भारत का पहला लोकसभा चुनाव भी इसी तर्ज पर हुआ था। यही नहीं, 1952, 1957, 1962 और 1967 का चुनाव भी इसी अवधारणा पर कराया गया था। लेकिन इसके बाद अलग-अलग तारीखों पर चुनाव होने लगे। आधिकारिक तौर पर चुनाव आयोग ने पहली बार 1983 में इसे लेकर सुझाव दिया दिया था। आयोग ने कहा था कि देश में ऐसे सिस्टम की जरूरत कीी जरूरत है जिससे लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराये जा सकें। इसके पक्ष में कई तर्क भी हंै- मसलन, सरकारी खजाने पर खर्च का भार कम होगा। चुनाव आयोग को बार-बार चुनाव की तैयारी नहीं करनी पड़ेगी। चुनाव पारदर्शी और बेहरत ढंग से हो सकेंगे। पूरे देश में एक ही वोटर लिस्ट होगी। अधिक संख्या में लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे। चुनाव ड्यूटी में तैनात सुरक्षाकर्मियों का समय बचेगा। चुनाव प्रचार में लगने वाले नेताओं का खर्च बचेगा और वे इसका उपयोग देश के लिए कर सकेंगे। लेकिन इन सबके बावजूद हर बार इसका विरोध सबसे अधिक हर राज्य की क्ष्ोत्रीय पार्टियां ही करती हैं क्योंकि लोकसभा चुनाव तो एक साथ होते हैं पर विधानसभा चुनाव अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर होते हैं। क्ष्ोत्रीय दलों का मानना है कि विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर होता है। इन मुद्दों के लिए सीध्ो तौर पर विधायक और मुख्यमंत्री जवाबदेह होता है। और अगर दोनों चुनाव एक साथ होंगे तो राष्ट्रीय मुद्दों के आगे स्थानीय मुद्दे गौण हो जाएंगे और क्ष्ोत्रीय दलों की उपियोगिता कम हो जायेगी। राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर राष्ट्रीय दल दोनों जगह सरकार बनाने का काम पूरा कर लंेगे और क्ष्ोत्रीय दलों का अस्तित्व खत्म हो जायेगा। आप इसी से समझ सकते हैं कि अगर बीजेपी 2०19 में एक साथ चुनाव कराती तो उसके राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के मुद्दे के आगे क्या यूपी में शिक्षा मित्रों की भर्ती, बुंदेलखंड में पानी की किल्लत पर चर्चा नहीं होती। कर्नाटक-तमिलनाडु का जल विवाद और जलीकट्टू जैसे छोटे मुद्दे कहीं गुम हो जाते। पिछले कई चुनावों में राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को स्थानीय मुद्दों के चलते खासी मेहनत करनी पड़ती है या फिर क्ष्ोत्रीय दलों के साथ नूरा-कुश्ती। इसी के लिए प्रधानमंत्री चाहते हैं कि वन नेशन वन इलेक्शन का कानून बने ताकि उनकी राष्ट्रीय छवि के सहारे सभी राज्यों में भी इसी छवि को भुनाया जा सके। लेकिन यह भी जानिये कि वन नेशन वन इलेक्शन के तर्ज पर चुनाव कराना है तो संविधान में संशोधन की जरूरत होगी। इसके लिए संसद के दोनों सदनों से सहमति की आवश्यकता होगी। इस संशोधन के बगैर राज्य सरकारों को भंग करना और एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं हो पायेगा।