लखनऊ। लव जिहाद पर आजकल बहस तेज है। कई राज्य इसे रोकने के लिए कानून लाने की तैयारी कर रहे हैं। मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश काफी आगे बढ़ चुके हैं, जबकि हरियाणा भी इस ओर विचार के संकेत दे चुका है। राज्य मौजूदा कानूनी खामियां गिनाते हुए नया कानून लाने की बात कर रहे हैं। कानून प्रलोभन, दबाव, धमकी या शादी का झांसा देकर जबरन धर्म परिर्वतन पर रोक लगाने के उद्देश्य से लाया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि मौजूदा कानून में क्या खामियां हैं और नया कानून इसे कैसे दूर करेगा, साथ ही क्या राज्यों को ऐसा कानून बनाने का अधिकार है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि संविधान किसी भी व्यक्ति को कोई भी धर्म मानने और प्रचार करने के साथ किसी भी धर्म के व्यक्ति से शादी की आजादी देता है, लेकिन अवैध धर्मान्तरण गलत है। वे कहते हैं कि धोखे से प्राप्त की गई कोई भी चीज कानून की निगाह में अमान्य और शून्य है और इस तरह की गई शादी भी उसी में आएगी। लव जिहाद तो प्रचलित तौर पर बोला जाने वाला शब्द है। वास्तव में कानून अवैध धर्मान्तरण के खिलाफ लाया जा रहा है। अभी अवैध धर्मान्तरण रोकने के लिए कोई सर्वमान्य कानून नहीं है। कुछ राज्यों ने इस तरह के कानून बनाए थे लेकिन पूरे देश के लिए समान कानून नहीं है।
कानून के मामले में पहला सवाल उठता है कि क्या राज्य को ऐसा कानून बनाने का अधिकार है। इसका जवाब सुप्रीम कोर्ट के 1977 के स्टेनसलाउस बमान मध्य प्रदेश फैसले में मिलता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अवैध धर्मान्तरण रोकने के लिए लाए गए मध्य प्रदेश और उड़ीसा के कानून को वैध ठहराया था और कहा था कि राज्य सरकार को ऐसा कानून लाने का अधिकार है। कोर्ट ने दोनों कानूनों को वैध ठहराते हुए कहा था कि मध्य प्रदेश और उड़ीसा का कानून जबरदस्ती, प्रलोभन या फर्जीवाड़े से एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन की मनाही करता है और इसके लिए दंड का प्रावधान करता है। दूसरा सवाल है कि मौजूदा कानून में क्या खामी है, जो नया कानून लाना पड़ रहा है।
अवैध धर्म परिवर्तन को लेकर कोई कानून नहीं
इस पर उत्तर प्रदेश में लाए जा रहे नये कानून पर यूपी विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस आदित्य नाथ मित्तल कहते हैं कि वर्तमान में अवैध धर्म परिवर्तन को लेकर कोई कानून नहीं है। भारतीय दंड सहिंता (आइपीसी) में सिर्फ किसी की धार्मिक भावना आहत करने, देवी देवताओं को अपमानित करने और धार्मिक स्थल को क्षति पहुंचाने को ही दंडनीय बनाया गया है, ऐसा इसलिए क्योंकि आइपीसी 1860 में बनी थी तब ये चीजें नहीं थीं। मुगलकाल और ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के समय धर्म परिवर्तन पूरी तरह से खुला था क्योंकि तत्कालीन सरकारें और तत्कालीन शासक इसको बढ़ावा देते थे इसका समर्थन करते थे इसलिए जबरन धर्म परिवर्तन की बात आजादी के बाद आयी। शादी कोई किसी भी धर्म के व्यक्ति से कर सकता है उसमें कोई रोक नहीं है। रोक सिर्फ वहीं है, जहां बाध्य किया जा रहा है। आजकल की जो घटनाएं देखने मे आयी हैं, चाहे गाजियाबाद का मामला हो या कानपुर अथवा लखीमपुर खीरी का इन सबमें धर्म परिवर्तन करने पर विवश किया जा रहा है।
धोखे से किया गया धर्म परिवर्तन अवैध
कानून सिर्फ जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के बारे में है। मर्जी से दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करने की स्वतंत्रता अभी भी स्पेशल मैरिज एक्ट में है। संविधान के अनुच्छेद- 21 में पसंद का जीवनसाथी चुनने की छूट है। केन्द्रीय विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस बीएस चौहान कहते हैं कि स्वेच्छा से किया गया धर्म परिवर्तन वैध है, लेकिन किसी लोभ लालच, दबाव या धोखे से किया गया धर्म परिवर्तन अवैध है। सुप्रीम कोर्ट कई फैसलों में कह चुका है कि सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन अवैध है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला अनुच्छेद 141 में कानून की तरह लागू किया जा सकता है। पहचान छुपा कर शादी करने पर जस्टिस चौहान कहते हैं कि ऐसा करना फ्राड है और फ्राड से हासिल कोई भी चीज शून्य होती है। ऐसे ही शादी भी शून्य होगी। शादी के मामले मे अभी शिकायत करने का अधिकार सिर्फ पत्नी को है।