दयानंद पांडेय
मोदी वार्ड के कुछ मरीजों ने लालकृष्ण आडवाणी की इस फोटो को जैसे अपनी खुराक बना ली है। अभी गुरु पूर्णिमा पर भी इस फोटो को मोदी वार्ड के मरीजों ने सोशल मीडिया पर , कैप्शन सहित खूब परोसा। इस कैप्शन से उलट मेरा मानना है कि भगवान किसी भी को लालकृष्ण आडवाणी जैसा गुरु न दे। मेरी जानकारी में लालकृष्ण आडवाणी जैसा कृतघ्न गुरु कोई दूसरा नहीं होगा। यह पहली बार मैं ने देखा है कि अपने शिष्य की प्रगति पर , कोई गुरु इतना और किस कदर अपने को पीड़ित बता कर निरंतर विक्टिम कार्ड खेला हो। अब तो खैर लालकृष्ण आडवाणी का सार्वजनिक जीवन लगभग समाप्त है। लेकिन मोदी के पहले कार्यकाल में जब भी कभी किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में आडवाणी जी नरेंद्र मोदी को देखते , देखते ही अपना चेहरा इतना बेचारा और बेबस बना लेते थे गोया नरेंद्र मोदी ने उन्हें कितने जूते मारे हों।
मोदी वार्ड के मरीजों ने आडवाणी के इस जूता खाने का अभिनय वाले चेहरे की फोटो को अपना हथियार बना लिया। आज तक बनाए हुए हैं। आडवाणी जी की अंगुलबाजी की यह आदत नई नहीं है , मोदी के साथ। अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी आडवाणी जी बावजूद तमाम मित्रता और प्रगाढ़ता के , अपनी अंगुलबाजी करते ही रहते थे। याद कीजिए कि एक समय आडवाणी जी की निरंतर अंगुलबाजी से परेशान अटल बिहारी वाजपेयी ने गोवा सम्मेलन में जब अपने भाषण में साफ़ कहा कि न टायर्ड , न रिटायर्ड , आडवाणी जी के नेतृत्व में विजय की ओर प्रस्थान ! इतना ही कह कर अटल जी बैठ गए थे। पूरी भाजपा सन्नाटे में आ गई और वाजपेयी जी के चरणों में बैठ गई। आडवाणी जी को तब भी लगता था कि भाजपा के लिए सारी मेहनत तो मैं ने की और सत्ता की असल मलाई अटल जी काट रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने की आडवाणी जी की लालसा और महत्वाकांक्षा बलवती थी। लेकिन वह भूल जाते थे कि अयोध्या रथ यात्रा और बाबरी ढांचा ध्वस्त करने , कट्टर हिंदूवादी की उन की छवि के कारण मिली-जुली सरकार में उन की स्वीकार्यता खंडित हो जाती थी।
इसी खंडित स्वीकार्यता को अखंड करने के चक्कर में आडवाणी जी पाकिस्तान में जिन्ना की मजार पर जा पहुंचे। नतीजतन न इधर के रह गए , न उधर के। धोबी का कुत्ता बन गए। राष्ट्रीय स्वयं संघ ने उन्हें दूध से मक्खी की तरह सत्ता दौड़ से बाहर कर दिया। संयोग ही था कि जब 2014 में बतौर मुख्य मंत्री , गुजरात की सफलता के कारण प्रधान मंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम को प्रस्तावित कर दिया गया। आडवाणी जी तुरंत ही कैकेयी की तरह कोपभवन चले गए। प्राइम मिनिस्टर इन वोटिंग का सपना ही टूट गया। तो यशवंत सिनहा , अरुण शौरी , शत्रुघन सिनहा जैसे लोगों को अपनी चाल में फांसा। चुनाव के पहले ही से मोदी को घेरने और हराने की रणनीति बनाई। ब्लैकमेलिंग की सारी हदें पार कीं। लाक्षागृह की कमीनगी के तीर चलाए। इतना कि तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी भी संदेह के घेरे में आ गए। फौरन नितिन गडकरी को हटा कर , राजनाथ सिंह को अध्यक्ष बनाया गया। और नरेंद्र मोदी को कमान सौंप दी गई। लेकिन आडवाणी जी का आपरेशन मोदी जारी रहा। सुषमा स्वराज भी आडवाणी ग्रुप के प्रभाव में आईं।
लेकिन अच्छा यह भी है कि मोदी वार्ड के मरीजों के लिए यह गुरु दवा न सही , दवा का भ्रम बन कर ही सही उपस्थित है। कुछ तो उपयोगिता है , इस भटके और कुंठित गुरु की। इस के गुरुडम की। कि मोदी वार्ड के मरीज आडवाणी नाम की ऐसी फ़ोटो तलाशते हैं और इस की तकिया लगा कर एन डी टी वी पर रवीश कुमार का शो देख कर अपने जीवित होने और जीत की उम्मीद का सपना जोड़ते हैं। गुड है यह भी। कि मोदी वार्ड के मरीज आडवाणी नाम की ऐसी फ़ोटो तलाश कर रवीश कुमार के शो में ग़म ग़लत करते हैं। एक बार सोच कर देखिए कि यह लालकृष्ण आडवाणी की फोटो न होती , रवीश कुमार का एन डी टी पर शो न होता तो मोदी वार्ड के बिचारे मरीजों का क्या होता भला ! आडवाणी जी की यह फ़ोटो न होती तो भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहां जाते बेचारे। नहीं यह कोरोना , यह चीन आदि-इत्यादि तो अस्थाई विषय हैं , मोदी को गरियाने के लिए। लेकिन आडवाणी की यह फ़ोटो स्थाई विषय है। मानवीय स्वभाव के अनुसार करुणा भी उपजाती है और मासूम लोगों की नज़र में नरेंद्र मोदी को कमीना बताने में पूरा काम करती है। बस दिक्कत यही है कि आडवाणी की ऐसी करुण फ़ोटो को पेश करने वाले बीमार भले हों , दर कमीने भी हैं। सो यह करुणा भाप बन कर उड़ जाती है। फ़ोटो अपना प्रभाव नहीं डाल पाती। और आडवाणी जी की यह करुण फोटो उन का ही उपहास उड़ाने लगती है।