नई दिल्ली। लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन सेना के बीच हुई आपसी झड़प के बाद नेपाल से सटी भारत की सोनौली सीमा पर सतर्कता बढ़ाते हुए SSB व पुलिस ने गश्त तेज कर दी है। सीमा के आसपास कड़ी नजर रखी जा रही है। सरहद की तरफ जाने वाले पगडंडी मार्गों पर जवान लगातार पैट्रोलिंग कर रहे हैं। इस बीच भारत-नेपाल की खुली सीमा पर सुरक्षा एजेंसियों की पैनी नजर है।
एसपी रोहित सिंह सजवान ने बताया कि बॉर्डर की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। सुरक्षा एजेंसियाँ भी लगी हुई हैं। नेपाल व भारत में आवाजाही के लिए सोनौली व ठूठीबारी बॉर्डर का इस्तेमाल किया जाता है। लॉकडाउन के कारण से इसको सील कर दिया गया है। शर्तों के साथ सोनौली बॉर्डर से एंट्री मिल रही है। खुली सीमा पर भारत की तरफ से SSB की तैनाती की गई है। संवेदनशील जगहों पर CCTV कैमरे भी लगाए गए हैं। उधर, बिहार के सीतामढ़ी में नेपाल पुलिस की ओर से फायरिंग व नक्शा विवाद को लेकर बॉर्डर पर अलर्ट जारी किया गया है।
कहाँ से शुरू हुआ भारत-नेपाल के बीच तनाव
दरअसल, अभी हाल में भारत ने लिपुलेख से धारचूला तक सड़क बनाई थी। जिसका उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया। इसके बाद ही नेपाल की सरकार ने विरोध जताते हुए 18 मई को नया नक्शा जारी किया था। भारत ने इस पर आपत्ति जताई थी।
पिछले महीने नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने नेपाली संसद में घोषणा की कि भारत के कब्जे वाले कालापानी क्षेत्र (पिथौरागढ़ जिला) पर नेपाल का ‘निर्विवाद रूप से’ हक है। इसलिए इस क्षेत्र को पाने के लिए राजनीतिक और कूटनीतिक कदम उठाने जा रही है।
ओली की कैबिनेट ने नेपाल का एक नया राजनीतिक मानचित्र पेश किया है, जिसमें कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को नेपाल के क्षेत्र के रूप में दिखाया गया। हालाँकि, इस खबर की सूचना पाते ही भारत ने इसका विरोध किया। लेकिन 13 जून को नक्शे में बदलाव से जुड़ा बिल शनिवार को पास कर दिया गया। वहाँ की संसद में इसके सपोर्ट में 258 वोट पड़े।
इसके बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ”हमने गौर किया है कि नेपाल की प्रतिनिधि सभा ने नक्शे में बदलाव के लिए संशोधन विधेयक पारित किया है ताकि वे कुछ भारतीय क्षेत्रों को अपने देश में दिखा सकें। हालाँकि, हमने इस बारे में पहले ही स्थिति स्पष्ट कर दी है। यह ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित नहीं है। ऐसे में उनका दावा जायज नहीं है। यह सीमा विवाद पर होने वाली बातचीत के हमारे मौजूदा समझौते का उल्लंघन भी है।”
लॉकडाउन में नेपाल पर बनी चौकियोंं पर नजर आई चीनी भाषा
लॉकडाउन में बॉर्डर पर नेपाल की ओर से अस्थाई चौकियाँ बनाने का मामला सामने आया था। इसके बाद पता चला कि बरगदवा सहित बॉर्डर की कई नेपाली चौकियों पर लगे टेंट पर चीनी भाषा का इस्तेमाल किया गया। जब मामले ने तूल पकड़ा तो एसएसबी ने छानबीन शुरू की, लेकिन तब कोई बड़ा मामला निकलकर सामने नहीं आया।
मगर, अब खुलासा हुआ है कि भारत से लगने वाली नेपाल की सीमा में हाल के फेरबदल के पीछे चीन का संबंध सामने आया है। दरअसल, खुफिया एजेंसियों को पता चला है कि नेपाल में चीन की युवा राजदूत होऊ यांगी ने इसमें अहम भूमिका निभाई और भारत के खिलाफ बड़ा कदम उठाने के लिए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को तैयार किया। इसी के बाद ओली ने ऐसी रूपरेखा तैयार की और राष्ट्रीय मानचित्र के विस्तार के इस प्रस्ताव पर विपक्षी नेपाली कॉन्ग्रेस भी सरकार के साथ आ गई। यहाँ बता दें ओली अपने पहले कार्यकाल में भी और मौजूदा कार्यकाल में भी चीन के साथ नए समीकरण बनाने की कोशिश कर चुके हैं।
वहीं, यांगी पहले पाकिस्तान में 3 साल काम कर चुकी हैं। वहाँ पर उनके काम को देखते हुए उन्हें नेपाल में स्वतंत्र रूप से काम करने का मौका दिया गया। इसके बाद वह ओली के आवास पर भी धड़ल्ले से आने जाने लगी। बस इसी बात का संकेत मिलने के बाद ही थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे ने चीन का नाम लिए बगैर नेपाल के कदम को किसी की शह पर उठाया गया बताया था। साथ ही नेपाल के कदम पर हैरानी जताई थी कि चीन के प्रभाव में आकर ओली ने बिना सोचे समझे अप्रत्याशित काम कर डाला।
नेपाली नेताओं की क्या है प्रतिक्रिया?
हालाँकि, पीएम ओली द्वारा नक्शा लाए जाने के बाद नेपाल में कई जगह इस मैप का उत्साह मनाया जा रहा है। मगर, कुछ लोग ऐसे भी है, जो इससे बेहद नाराज हैं। दरअसल, नेपाल के विधायकों और कुछ नेताओं ने नेपाल के हालिया कदम पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। इन नेताओं ने कहा है कि नेपाल का नक्शा दोनो देशों की रिश्तों की डोर कमजोर कर रहा है।
नेपाल के मर्चवार क्षेत्र से कॉन्ग्रेसी विधायक अष्टभुजा पाठक, भैरहवां के विधायक संतोष पांडेय व राष्ट्रीय जनता समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता महेंद्र यादव ने कहा कि नेपाल की संसद ने नक्शे में बदलाव के लिए पहाड़ पर खींची जिस नई लकीर पर मुहर लगाई है, वह देश के मैदानी इलाकों में दरार का कारण बन रही है।
भारत से रोटी-बेटी का रिश्ता रखने वाले नवलपरासी, रूपनदेही समेत 22 जिलों के लगभग एक करोड़ मधेशी नागरिक इस नए नक्शे को स्वीकार नहीं कर पा रहे। लिपुलेख, कालापानी व लिंपियाधुरा के मुद्दे पर उपजे तनाव का असर भारत-नेपाल की 1751 km लंबी सरहद पर भी नजर आ रहा है, जहाँ मधेशी लोगों में किसी अनहोनी को लेकर संशय है।
रूपनदेही जिले में एक कार्यक्रम में इन नेताओं ने कहा कि भारत-नेपाल धार्मिक व सांस्कृतिक आधार पर जुड़े हैं। दोनों देशों की जनता में कटुता के लिए कोई जगह नहीं है। संसद के निचले सदन, प्रतिनिधि सभा में विवादित नक्शे को लेकर पेश संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी मिलने से तराई के सीमा के निकट रहने वाले लोग संशय में हैं।
मधेशी समुदाय
नेपाल की संसद में मधेशी समुदाय के 33 जनप्रतिनिधियों की सहभागिता होने के बाद भी यह समुदाय नेपाल में उपेक्षित है। इसके लेकर इन्होंने कई बार आंदोलन भी किए, सड़कों पर भी आए। लेकिन भी नेपाल के संविधान में मधेशी समुदाय को नेपाल के लोकतंत्र में जगह नहीं मिल पाई।
बता दें, इन सबका एक कारण यह भी बताया जाता है कि नेपाल के नवलपरासी, रूपनदेही, कपिलवस्तु, झापा, मोरंग, सुनसरी, सप्तसरी, धनुषा, भोजपुर समेत तराई के 22 जिलों में रहने वाले मधेशियों की बोली-भाषा, खान-पान, रहन-सहन पहाड़ी नेपालियों से अलग है। इसी कारण इन्हें वहाँ उपेक्षा झेलनी पड़ती है। इनके जनप्रतिनिधियों का कहना है कि नेपाल में भारत के खिलाफ मुहिम चला कर चुनाव जीतना अब यहाँ की परंपरा बन चुकी है।