गोरखपुर। नेपाल के विधायकों और कुछ नेताओं ने नेपाल द्वारा जारी नए नक्शे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। इन नेताओं ने कहा है कि नेपाल का नक्शा दोनो देशों की रिश्तों की डोर कमजोर कर रहा है। नेपाल के मर्चवार क्षेत्र से कांग्रेसी विधायक अष्टभुजा पाठक, भैरहवां के विधायक संतोष पांडेय व राष्ट्रीय जनता समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता महेंद्र यादव ने कहा कि नेपाल की संसद ने नक्शे में बदलाव के लिए पहाड़ पर खींची जिस नई लकीर पर मुहर लगाई है, वह देश के मैदानी इलाकों में दरार का कारण बन रही है। भारत से रोटी-बेटी का रिश्ता रखने वाले नवलपरासी, रूपनदेही समेत 22 जिलों के लगभग एक करोड़ मधेशी नागरिक इस नए नक्शे को स्वीकार नहीं कर पा रहे। लिपुलेख, कालापानी व लिंपियाधुरा के मुद्दे पर उपजे तनाव का असर भारत-नेपाल की 1751 किलोमीटर लंबी सरहद पर भी नजर आ रहा है, जो फिलहाल उदास है।
सशंकित हैं सीमावर्ती इलाकों में लोग
सता रही रिश्तेदारों की चिंता
भारत के ठूठीबारी निवासी सोनू मद्धेशिया, अनिल कसौधन व अमित की शादी नेपाल में हुई है। उन्हें यह कभी नहीं लगा कि नेपाल दूसरा देश है। लेकिन वर्तमान हालात और बदली परिस्थितियों को देखते हुए उन्हें संबंधियों की चिंता सता रही है। सीमावर्ती इलाकों में उनके जैसे हजारों लोग हैं जो इस तनाव से चिंतित हैं।
उपेक्षित हैं नेपाल में रह रहे मधेशी
नेपाल के नवलपरासी, रूपनदेही, कपिलवस्तु, झापा, मोरंग, सुनसरी, सप्तसरी, धनुषा, भोजपुर समेत तराई के 22 जिलों में रहने वाले मधेशियों की बोली-भाषा, खान-पान, रहन-सहन पहाड़ी नेपालियों से अलग है। ऐसे में काठमांडू से वह उपेक्षित होते आए हैं, जिसको लेकर मधेशी समय-समय पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते रहे हैं। नेपाल की सदन में 33 सांसद मधेशी हैं, इसके बावजूद होने वाली उपेक्षा मधेशियों को सालती है।
चीनी 125, भिंडी 100 में बिक रही
नेपाल में अधिकांश खाद्यान्न भारत से जाता है। कोरोना संक्रमण को देखते हुए 23 मार्च से सीमाएं सील हैं। मालवाहक ट्रकों को आवाजाही की छूट होने के बावजूद नेपाल में खाद्य पदार्थों के दाम आसमान पर पहुंच गए हैं। चीनी 125 तो भिंडी 100 रुपये किलो है। आलू भी नब्बे रुपये किलो पहुंच गया है। पूर्व गृह राज्य मंत्री व सांसद, नेपाली कांग्रेस, नवलपरासी देवेंद्र राज कंडेल ने कहा है कि सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच जो परिस्थिति उत्पन्न हुई है, उसे मिल बैठ कर हल करना चाहिए। भारत-नेपाल धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक आधार पर जुड़े हुए हैं। नेपाल सरकार को तथ्य व प्रमाण के आधार पर इस मसले को सुलझाना चाहिए।