लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय में दो साल से उपनिदेशक का फर्जी दफ्तर चल रहा था। रविवार को सात लोगों की गिरफ्तारी के बाद सोमवार को जब पुलिस सचिवालय पहुंची तो इस बात का खुलासा हुआ। करीब दो घंटे की पड़ताल में पुलिस ने यह जानने का प्रयास किया कि किस तरह से यहां सब कुछ मैनेज हुआ। उपनिदेशक का बोर्ड कब लगाया जाता था और कब उतारा जाता था। कैसे कोई दो साल तक चले इस फर्जीवाड़े को जान नहीं सका।
विवेचक एसीपी गोमतीनगर संतोष कुमार सिंह ने सचिवालय में तीन कर्मचारियों से काफी सवाल जवाब किए। इस दौरान एसटीएफ से मिली जानकारी के आधार पर दो अन्य कर्मचारियों को भी बुलाया गया लेकिन वह सचिवालय से जा चुके थे और उनके मोबाइल स्विच ऑफ मिले।
इस फर्जीवाड़े में शासन के आदेश पर इंदौर निवासी मंजीत भाटिया उर्फ रिंकू की तहरीर पर हजरतगंज कोतवाली में 13 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था। इनमें सात लोग रविवार को गिरफ्तार किए गए थे। इस मामले की विवेचना एसीपी संतोष कुमार सिंह को दी गई है। एसीपी रविवार को एसटीएफ के साथ ही कार्रवाई में थे। आरोपियों से पूछताछ के बाद एसटीएफ ने कई तथ्य एसीपी को दिए। इन तथ्यों के आधार पर ही एसीपी ने सोमवार को पड़ताल शुरू की।
कथित पत्रकार एके राजीव के घर से मिले कई दस्तावेजों को जांचने के बाद एसीपी दोपहर बाद सचिवालय पहुंचे। यहां पर सीसी फुटेज देखे तो पता चला कि छह महीने से ज्यादा का रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। इसके बाद ही उन्होंने गार्ड, प्रवेश पास चेक करने वाले कर्मचारियों के बाद तीन अन्य लोगों से भी पूछताछ की। एसीपी ने बताया कि इस सम्बन्ध में कुछ जानकारियां जुटायी गई है जिसके आधार पर मंगलवार को कई लोगों के बयान लिए जाएंगे।