देश की सबसे बड़ी सांप्रदायिक पार्टी यदि कोई है तो वो कांग्रेस है। समय-समय पर कांग्रेस के शासनकाल में संप्रदायिक दंगे की आड़ में हिंदू-मुसलमान-सिख और यहां तक कि जनजाति समुदाय के लोगों का कत्लेआम हुआ। जिस सिख पंथ की स्थापना गुरुओं ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए की थी, उन हिंदू-सिखों के बीच भी न केवल नफरत की बीज बोने की कोशिश की, बल्कि वर्ष 1984 में 3000 से अधिक सिखों का नरसंहार कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं ने किया और इसे हिंदू-सिख दंगे का नाम दे दिया। जो मुसलमान भाजपा विरोध के लिए कांग्रेस को वोट देते हैं, उन्हें तो यह भी पता नहीं कि कांग्रेस के कार्यकाल में इस देश में कई ऐसे दंगे हुए जिसमें 5000 से अधिक मुसलमानों का एक झटके में नरसंहार कर दिया गया!
भाजपा के कार्यकाल में 2002 में केवल एक दंगे गुजरात में हुए, जिसमें यदि 790 मुसलमान मरे तो 254 हिंदू भी मरे। कांग्रेस, उसके द्वारा वित्त पोषित मीडिया, अरब फंडेड एनजीओ बिरादरी और कटटरपंथी मुल्ला-मौलवी ऐसी ही कई सच्चाईयों को केवल इसलिए दबाते रहे हैं ताकि मुस्लिम समुदाय सच्चाई जानकर बंधुओ वोटर की हैसियत से आजाद न हो जाए।
चलिए अतीत के पन्नों से उठाते हैं कांग्रेस के चेहरे से नकाब
जुलाई 2012 में आसाम में बंग्लोदशी मुसलमानों ने बड़ी संख्या में न केवल यहां के मूल निवासी बोडो जनजाति के लोगों के घरों पर हमला किया, बल्कि उनका कत्लेआम भी किया। आज भी तीन लाख से अधिक बोडो जनजाति के लोग शरणार्थी शिविर में रहने को विवश हैं। मुस्लिम वोटों के लिए आसाम की कांग्रेसी सरकार ने बंग्लादेशी दंगाई मुसलमानों को न केवल खुलकर दंगा करने की आजादी दी, बल्कि इसका अप्रत्यक्ष समर्थन करते हुए चार दिनों तक सेना को भी दंगाग्रस्त इलाके में तैनात नहीं किया जबकि आसाम की सच्चाई यह है कि वहां सेना की टुकड़ी हमेशा मौजूद रहती है। ज्ञात हो कि तरुण गोगोई के नेतृत्व में पिछले दो कार्यकाल से लगातार आसाम में कांग्रेस की सरकार है।
वरिष्ठ पत्रकार मधु पूर्णिमा किश्वर लिखती हैं, ‘’किसी को लाखों की संख्या में आसाम में बोडो और मुस्लिमों के दुर्भाग्य की याद है, जिन्हें जुलाई 2012 में अपने गांवों को छोड़ना पड़ा था क्योंकि उनके घरों को आग लगा दी गई थी या उन्हें नष्ट कर दिया गया था? 8 अगस्त 2012 तक करीब 400 गांवों से बेदखल होकर 4 लाख से ज्यादा लोगों को 270 राहत शिविरों में पनाह लेनी पड़ी थी। तब असम के कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सेना की तैनाती में चार दिनों की देरी की थी, जबकि आसाम जैसे राज्य में बड़े पैमाने पर सेना की टुकडि़यां पहले से ही तैनात रहती हैं। हजारों की संख्या में लोग अभी भी शरणार्थी शिविरों में नारकीय स्थितियों में रह रहे हैं। उन दंगों को मीडिया ने क्यों भुला दिया?’’
आसाम में सेना की मौजूदगी के बाद भी कांग्रेस के मुख्यमंत्री तरुण गोगाई ने चार दिनों तक संप्रदायिकता का नंगा नाच चलने दिया। और यह दंगा भी किनके बीच था, बंग्लादेशी विदेशी मुसलमानों और भारत के मूल निवासी बोडो समुदाय के बीच। लेकिन मुस्लिम वोट बैंक के लिए आसाम में धड़ाधड़ बंग्लादेशी मुसलमानों को बसाती चली जा रही कांग्रेस के इशारे पर मीडिया में कहीं भी इस दंगे का जिक्र नहीं हुआ। हुआ भी तो कहीं छिटफुट। आज भी हकीकत यही है कि तीन लाख से अधिक बोडो हिंदू वहां शरणार्थी शिविरों में जीवन बसर कर रहे हैं।
इससे पहले आसाम में 1983 में हुआ था 5000 हजार मुसलमानों का नरसंहार
इसी तरह 18 फरवरी 1983 को आसाम के नेल्ली(nellie massacre ) में मुसलमानों का कत्लेआम हुआ था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 2200 मुसलमान मारे गए जबकि उस समय की मीडिया रिपोर्ट बताती है कि करीब 5000 हजार मुसलानों का नरसंहार किया गया था। मरने वालों में कुछ स्थानीय और ज्यादातर बंग्लादेशी मुसलमान थे। उस समय आसाम में राष्ट्रपति शासन था। देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी और आसाम के राज्यपाल ज्ञानी जैल सिंह थे। मरने वालों में अधिकांश बंग्लादेशी मुसलमान थे। नेल्ली का यह दंगा नगोन जिला के 14 गांवों- Alisingha, Khulapathar, Basundhari, Bugduba Beel, Bugduba Habi, Borjola, Butuni, Indurmari, Mati Parbat, Muladhari, Mati Parbat no. 8, Silbheta, Borburi and Nellie में फैल गया था।
मलियाना में मुस्लिम युवकों को लाइन में लगाकर भून दिया गया
उप्र स्थित मेरठ के मलियाना हशीमपुरा में 19 मई 1987 में जो दंगे हुए थे उसे वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने हिटलर द्वारा यहूदियों के कत्लेआम की संज्ञा दी है। उस दंगे में प्रशासन की ओर से पुलिस वालों ने करीब 42 मुसलम युवकों को लाइन में लगाकर गोली से उड़ा दिया और उनकी लाशों को नहर में बहा दिया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस दंगे में 51 हिंदू और 295 मुसलमान मारे गए थे। 19 मई को मुसलमानों ने 10 हिंदू युवकों की हत्या कर दी थी, जिसके बाद पूरा शहर दंगे की चपेट में आ गया था। उस वक्त केंद्र में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और उप्र में वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री थे। यह दंगा भी भड़का इसलिए था कि राजीव गांधी ने शाहबानो प्रकरण में मुस्लिम वोट बैंक को सहलाने के बाद अयोध्या में बाबरी मंदिर का ताला खुलवा दिया था, जिससे दंगा भड़क गया।
इस केस में कुछ न होता देखकर करीब 15 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने दंगे से जुड़ी फाइल वर्ष 2002 में गाजियाबाद से दिल्ली के तीस हजारी सेशन कोर्ट में स्थानांतरित किया। घटना के 26 साल बाद भी पीडि़त 36 मुसलमान परिवार आज तक न्याय पाने की आस में एडि़यां ही रगड़ रहे हैं।
1969 में गुजरात में कांग्रेसी शासन में योजनाबद्ध तरीके से हुआ था मुसलमानों का कत्लेआम
गुजरात के 1969 के दंगे को भी कौन भूल सकता है, जिसमें करीब 5000 मुसलमानों का कत्ले-आम हुआ था। वरिष्ठ पत्रकार मधु किश्वर ने एक गुजराती मुसलमान जफर सरेशवाला का गुजरात दंगों पर एक लंबा साक्षात्कार लिया है। जफर सरेशवाला के शब्दों में, ” अहमदाबाद में कालूपुर नाम का एक इलाका है जो कि मुस्लिम आबादी के केन्द्र में बसा हुआ है। उस लोकेलिटी में पुलिस स्टेशन रिलीफ रोड पर स्थित है। उस थाने के ठीक सामने एक मस्जिद है और कई मुस्लिमों की दुकानें हैं।
1969 के दंगों में उस मस्जिद और दुकानों को जला दिया गया था। जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने दंगा प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया तब वे उस स्थान पर भी आई थीं। मुझे आज भी याद है कि मैं उस समय पांच वर्ष का था। मेरे दादाजी वहां मौजूद थे और श्रीमती गांधी अपनी कार से उतरीं और उन्होंने कहा कि यहां एक पुलिस थाना है और वह भी 40 मीटर की दूरी पर, लेकिन एक मस्जिद और मुस्लिमों की दुकानों को जला दिया गया था।
वे अपनी गाड़ी से नीचे उतरीं, उन्होंने अपने संतरियों को बुलाया और उस दूरी को नापने को कहा। उनका कहना था कि यह कैसे संभव है कि पुलिस थाने के ठीक सामने मुस्लिमों की दुकानें जला दी जाती हैं? वह भी तब राज्य में और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार हो। यह अब तक का सबसे भयानक दंगा था और 1969 के दंगों में लगभग 5000 मुसलमानों को योजनाबद्ध तरीके से मारा गया था। पर किसी को याद है कि तब गुजरात में हितेन्द्र देसाई की कांग्रेस सरकार थी?’’
कांग्रेस के शासन में मुसलमान ही नहीं, सिखों का भी हुआ नरसंहार
इंदिरा गांधी की मौत के बाद 1984 में 3300 से अधिक सिखों का देश की राजधानी दिल्ली में नरसंहार हुआ। इसमें कांग्रेस के बड़े नेता जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार जैसों का नाम आया, लेकिन 29 साल बीतने के बाद भी किसी बड़े कांग्रेसियों को आज तक सजा नहीं मिली है। हिंदू-सिख दंगा नहीं, बल्कि कांग्रेसियों द्वारा सिखों का खुला नरसंहार था। दिल्ली के कांग्रेसी नेताओं ने हरियाणा से ट्रक भर-भर कर अपने कार्यकर्ताओं को दिल्ली बुलाया था। उस वक्त हरियाणा में भी कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस के नेता भीड को उकसा रहे थे और कार्यकर्ता घरों में घुकर सिखों का कत्लेआम कर रहे थे। उस वक्त राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे और उन्होंने कहा था कि “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो जमीन तो हिलती ही है।” मतलब राजीव गांधी का मौन समर्थन इस सिख नरसंहार को हासिल था।
1967 के बाद से देश में सर्वाधिक दंगे कांग्रेस के कार्यकाल में ही हुए हैं
देश का इतिहास देखिए। 60 के दशक के बाद देश में करीब 16 बड़े दंगे हुए हैं जिसमें से 15 केवल कांग्रेस शासित राज्य या उनके सहयोगी पार्टियों के शासन काल में हुए हैं। भाजपा के शासन में केवल एक 2002 में गुजरात में दंगा हुआ है, लेकिन झूठ के शोर में आज भाजपा सांप्रदायिक और 10 हजार से अधिक लोगों का नरसंहार जिन कांग्रेसी सरकारों के शासनकाल में हुआ है वो कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष पार्टी बनी हुई है।
कांग्रेस शासन काल में जितने भी दंगे हुए हैं, सही अर्थों में वो दंगे से अधिक नरसंहार थे, जिसमें किसी एक पूरे समुदाय को न केवल प्रशासन के द्वारा बल्कि कांग्रेसी कार्यकर्ताओं द्वारा भी कत्लेआम किया गया…।
सिख विरोधी दंगे, जख्म गहरे हैं…
ढाई दशक से ज्यादा वक्त हो चुका है, जब 31 अक्टूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद देशभर में भड़के सिख विरोधी दंगों में हजारों निर्दोष सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया था। कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर की क्लोजर रिपोर्ट खारिज होने के बाद 84 के दंगों के जख्म एक बार फिर हरे (हालांकि भरे ही कहां हैं?) हो गए हैं। इस मामले में कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार भी आरोपी हैं।
एक अनुमान के मुताबिक पूरे देश में करीब 10 हजार सिखों को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था, जिनमें 2500 से ज्यादा सिख तो देश की राजधानी दिल्लीमें मारे गए थे। एक आंकड़े के मुताबिक अकेले दिल्ली में करीब 3000 सिख बच्चों, महिलाओं और बड़ों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
दिल्ली में खासकर मध्यम और उच्च मध्यमवर्गीय सिख इलाकों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया गया। राजधानी के लाजपत नगर, जंगपुरा, डिफेंस कॉलोनी, फ्रेंड्स कॉलोनी, महारानी बाग, पटेल नगर, सफदरजंग एनक्लेव, पंजाबी बाग आदि कॉलोनियों में हिंसा का तांडव रचा गया। गुरुद्वारों, दुकानों, घरों को लूट लिया गया और उसके बाद उन्हें आग के हवाले कर दिया गया।
इतना ही नहीं मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में हिंसा का नंगा नाच खेला गया। जिन राज्यों में हिंसा भड़की वहां ज्यादातर में कांग्रेस की सरकारें थीं। पूरे देश में फैले इन दंगों में सैकड़ों सिख महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। युवक, वृद्ध, महिलाओं पर ट्रेन, बस और अन्य स्थानों पर खुलेआम हमले किए गए। पुलिस सिर्फ तमाशबीन बनी रही। कई मामलों में तो यह भी आरोप हैं कि पुलिस ने खुद दंगाइयों की मदद की
आजादी के बाद देश के सबसे बड़े इस नरसंहार (हालांकि अमेरिका ने हाल ही में इन सिखों की मौत को नरसंहार मानने से इनकार कर दिया है) के पीड़ित सिख आज भी न्याय के इंतजार में दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी, लेकिन… : इंदिरा गांधी के हत्यारे अंगरक्षकों- बेअंतसिंह, सतवंतसिंह और एक अन्य (केहरसिंह) को फांसी पर लटका दिया गया। …लेकिन हजारों सिखों की मौत के जिम्मेदार लोगों पर आज भी कानूनी शिकंजा नहीं कसा गया है।
क्या कहा था राजीव गांधी ने? : श्रीमती गांधी की मौत के बाद उनके बेटे राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने एक बयान दिया था, जो कहीं न कहीं सिख विरोधी दंगों को जस्टीफाई ही करता है। उन्होंने कहा था- जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। सवाल यह भी है कि राजीव गांधी के बयान के बाद प्रशासन और पुलिस ने दंगों के मामले में लीपापोती नहीं शुरू कर दी होगी।