खाकी ने तोड़ा देश का भरोसा, जानें पालघर साधु हत्याकांड की पूरी कहानी

भीड़ द्वारा पीट-पीटकर किसी की हत्या कर देना यानी मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) किसी भी लोकतंत्र के लिए खतरनाक होती है लेकिन मॉब लिंचिंग की दो घटनाओं को अलग-अलग नज़र से देखना उससे भी ज्यादा खतरनाक है. पिछले दो-तीन दिनों से आप लगातार महाराष्ट्र के पालघर में दो संतों की भीड़ द्वारा की गई हत्या की खबरें देख रहे होंगे लेकिन मीडिया के एक हिस्से को, बुद्धिजीवियों को और कुछ नेताओं को ये मुद्दा उठाने में शर्म आ रही है लेकिन आज हम इस मामले से जुड़ा एक एक सच आपको दिखाएंगे और बताएंगे कि पालघर में आखिर हुआ क्या था लेकिन उससे पहले जरा कुछ देर के लिए कल्पना कीजिए कि अगर आप घर से बाहर निकलें, और कुछ लोग आप पर हमला कर दे. कुछ देर में पुलिसवाले भी वहां पर पहुंच जाएं, तो आपको क्या उम्मीद होगी.

आपको यही उम्मीद होगी कि पुलिसवाले आपको बचाएंगे. आपकी जान में जान आएगी. लेकिन आपको बचाने की जगह, अगर पुलिसवाले आपका हाथ पकड़कर हमलावरों के हवाले कर दें तो फिर क्या होगा? फिर वही होगा, जो महाराष्ट्र के पालघर में हुआ है, जहां दो साधुओं और उनके ड्राइवर को इसी तरह से पुलिसवालों ने मरने के लिए छोड़ दिया था. आपको सबसे पहले एक तस्वीर दिखाते हैं.

ये तस्वीर उस साधु की है, जिसे पालघर में भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था. ये घटना 16 अप्रैल यानी गुरुवार की है. ये साधु उम्मीद भरी नज़र से पुलिसवाले की तरफ देख रहा है. इसकी नज़र में जान बचाए जाने की उम्मीद है. पुलिस से ये आस है कि उसे बाहर खड़ी भीड़ के रहम पर नहीं छोड़ा जाएगा. ये पालघर में हुई हत्या की सबसे मार्मिक तस्वीर है. इसलिए हम कह रहे हैं कि पालघर में सिर्फ साधुओं की हत्या ही नहीं, पुलिस पर आम लोगों के विश्वास की भी हत्या हुई है.

अब आप सोचिए कि पहले पुलिस के पास अपराधी सरेंडर करते थे, लेकिन पालघर की घटना में अपराधियों के सामने पुलिस ने सरेंडर कर दिया. आप इन तस्वीरों को देखिए कि कैसे ये पुलिसकर्मी साधु को चौकी से बाहर ला रहा है. बुज़ुर्ग साधु ने पुलिसवाले का हाथ इस उम्मीद में पकड़ रखा है, कि वो भीड़ से उसे बचा लेगा. ये भरोसे का हाथ है, लेकिन पुलिसवाले ने ये हाथ छुड़ा लिया. फिर भीड़ उस साधु को लाठी-डंडों से पीटती रही, पुलिसवाले अपना हाथ छुड़ाकर पीछे हट गया.

पालघर मॉब लिंचिंग की तस्वीरें बहुत विचलित करने वाली हैं. आज हम इस लिंचिंग की घटना की पूरी पड़ताल करेंगे और वो सब बातें आपको बताएंगे जिन बातों पर मीडिया और बुद्धिजिवियों के एक वर्ग ने चुप्पी साध रखी है. इस घटना पर सबसे बड़े सवाल पुलिस पर उठ रहे हैं कि जब लॉकआउट था, तो पालघर में इतनी भीड़ कैसे इकट्ठा हो गई? भीड़ के सामने पुलिस इतनी मजबूर और बेबस क्यों दिख रही थी? पुलिसवाले क्यों इन लोगों को बचाने की कोशिश करती नहीं दिखे?, क्या पुलिस के ऊपर कोई दबाव था, जिससे इन लोगों को भीड़ के हवाले कर दिया? क्या पुलिस खुद किसी साज़िश का हिस्सा थी, जिससे इन साधुओं को पीट-पीट कर हत्या की गई?

पुलिस की मौजूदगी में भीड़ ने पीट पीटकर तीन लोगों की हत्या कर दी. इनमें दो संत भी थे . हमारे समाज में संतों को बहुत सम्मान दिया जाता है. गीता में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जब जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढता है तब तब मैं पृथ्वी पर जन्म लेता हूं. श्री कृष्ण ये भी कहते हैं कि साधुओं की रक्षा के लिए और दुर्जनों और पापियों के विनाश के लिए मैं हर युग में जन्म लेता हूं लेकिन सवाल ये है कि कलियुग में हुए इस पाप के खिलाफ कौन आवाज उठाएगा और कौन श्री कृष्ण की तरह इन साधुओं को न्याय दिलाएगा? शायद अभी तो हमारे देश का मीडिया और बुद्धिजीवी इनके लिए आवाज नहीं उठाना चाहते लेकिन ये वही लोग हैं जो आतंकवादी याकूब मेमन की फांसी का विरोध करते हैं. निर्भया के दोषियों की फांसी टलवाना चाहते हैं लेकिन तीन बेकसूर इंसानों की हत्या होने पर ये चुप हो जाते हैं.

पालघर में जिन लोगों की पीट-पीट कर हत्या की गई, उनमें 70 वर्ष के कल्पवृक्ष गिरी महाराज, 35 वर्ष के सुशील गिरी महाराज और 30 वर्ष के उनके ड्राइवर नीलेश यलगड़े थे. मुंबई में कांदिवाली के आश्रम से ये लोग एक संत के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए सूरत जा रहे थे. सूरत जाने के लिए इन्होंने मुंबई में एक गाड़ी बुक की थी. ये गाड़ी मारुति इको वैन थी, जिसे नीलेश यलगड़े चला रहा था. लॉकडाउन की वजह से ड्राइवर ने मुंबई-अहमदाबाद हाईवे की जगह अंदर के रास्तों से ही चलने का सुझाव दिया था. मुंबई से इन्होंने करीब 130 किलोमीटर का सफर तय कर लिया था लेकिन 16 अप्रैल यानी गुरुवार की रात को पालघर के गढ़-चिंचले गांव में इन लोगों की गाड़ी को घेर लिया गया. पहले गाड़ी पर पथराव हुआ. फिर इन लोगों को गाड़ी से बाहर निकाल कर पीटा गया. पुलिस भी आई, लेकिन पुलिस के सामने ही इन लोगों को पीट पीट कर मार डाला गया.

ये बताया गया कि पिछले कुछ दिनों से आसपास के इलाके में बच्चा चोर और किडनी-चोर गैंग की अफवाहें चल रही थीं. इसी की वजह से आसपास के गांववाले रात-रातभर जागकर पहरा दे रहे थे. इसी अफवाह की वजह से संतों पर हमला हुआ और उन्हें चोर समझ कर पीटा गया. यही कहानी महाराष्ट्र पुलिस और राज्य सरकार बता रही है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस घटना पर महाराष्ट्र सरकार से रिपोर्ट मांगी है. आज सुबह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से फोन पर बात की है. साधुओं की हत्या पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उद्धव ठाकरे से बात की. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने क्या कहा है, वो आपको दिखा देते हैं.

हमारा देश साधु संतों का देश है. हमारी परंपरा रही है कि संत आगे चलते हैं और उनके पीछे समाज चलता है. आम तौर पर साधु-संतों पर हमले की खबरें देखने-सुनने में नहीं आती. इसलिए पालघर की घटना सबको हैरान कर रही है. सब यही सोच रहे हैं कि साधु-संतों से किसी की क्या दुश्मनी होगी. अगर कोई अफवाह भी थी, तो इतनी निर्ममता से कैसे किसी को पीटा जा सकता है, कि उसकी जान ही चली जाए. हैरानी की बात ये है कि भगवा वस्त्र में होने के बावजूद किसी ने भी साधुओं के बारे में एक बार भी नहीं सोचा कि क्या ये लोग चोर हो सकते हैं?

 

इन स्थानीय लोगों ने बताया है कि पालघर में ऐसा कभी देखा या सुना नहीं गया कि आदिवासियों ने किसी संन्यासी या किसी भगवाधारी को हाथ लगाया हो. आदिवासी इलाकों में साधु-संतों का बहुत सम्मान किया जाता है, इसलिए इन्हें पीट-पीटकर मार डालने की घटना के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है. इसी बात से संदेह होता है कि क्या पालघर की हत्या राजनैतिक विचारों से प्रेरित थी? इसे समझने के लिए हमें पालघर की राजनीतिक पिक्चर देखनी होगी.

आदिवासी बहुल पालघर कम्यूनिस्ट पार्टियों और इनके जैसे विचारों वाले दलों का गढ़ है. पालघर में जिस जगह पर साधुओं की मॉब लिंचिंग हुई, वो जगह पालघर की डहाणु विधानसभा के अंदर आती है. डहाणु विधानसभा से मौजूदा विधायक विनोद निकोले, Communist Party of India (Marxist) यानी सीपीएम से हैं. डहाणु विधानसभा सीट शुरुआत के वर्षों में कांग्रेस जीतती थी. लेकिन वर्ष 1999 से यहां पर एनसीपी और सीपीएम का दबदबा बढ़ गया. 1999 से दो बार एनसीपी और 2 बार सीपीएम ने ये सीट जीती है. बीजेपी इस सीट पर सिर्फ एक बार, वर्ष 2014 में जीत पाई. 2019 के विधानसभा चुनाव में यहां पर सीपीएम और बीजेपी की सीधी टक्कर थी.

सीपीएम को एनसीपी और कांग्रेस का समर्थन था. अब पालघर की घटना पर जो जानकारियां हमें मिली हैं, उनके मुताबिक ये सच है कि आसपास के इलाके में चोरी की अफवाहें पहले से चल रही थीं. इसी वजह से पहले साधुओं को पकड़ कर मारा-पीटा गया. पास में ही वनविभाग की चौकी थी, वहां से पुलिस को सूचना गई. पुलिस घटना की जगह पर आई और साधुओं को लोगों से छुड़ाकर वनविभाग की चौकी में लाई. लेकिन इसी के बाद अचानक चौकी के बाहर भीड़ जुटने लगी. पुलिसवालों पर भी हमला किया गया. पुलिसवालों के सामने ही दोनों साधुओं और उनके ड्राइवर को मार डाला. हमें मिली जानकारी के मुताबिक वहां पर करीब डेढ़ से दो हज़ार लोगों की भीड़ थी. आरोप यही लग रहे हैं कि इनमें ज़्यादातर लोग सीपीएम और एनसीपी के स्थानीय नेताओं द्वारा लाए गए थे. बताया जा रहा है कि भीड़ में काश्तकारी नाम के एक क्रिश्चियन मिशनरी संगठन के लोग भी थे.

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