नई दिल्ली। कोरोना वायरस की चपेट में यूं तो पूरी दुनिया ही है और सभी इससे पार पाने की कोशिश भी कर रहे हैं। लेकिन, कुछ देश ऐसे हैं जिन्होंने इसके प्रसार को अपने यहां पर रोकने में सफलता हासिल की है। इस सफलता के पीछे कुछ वजह भी जरूर रही हैं। इस सफलता के पीछे सरकार और प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इन सभी के बीच कुछ देशों में कुछ चेहरे भी रहे हैं जो इस जंग की सफलता का या तो अहम हिस्सा रहे हैं या फिर उनके कंधों पर इस जंग को जीतने की बड़ी जिम्मेदारी है। ऐसे ही दो नाम हमारे सामने भी हैं। इनमें से एक नाम जर्मनी की वैज्ञानिक प्रोफेसर मेरिलिन एडो का है तो दूसरा नाम दक्षिण कोरिया की जुंग इउन केओंग का है। केओंगे को जहां दक्षिण कोरिया में नेशनल हीरो घोषित किया गया है वहीं एडो से लोगों को काफी उम्मीदें हैं।
मेरिलिन एडो
एडो जर्मन सेंटर फॉर इन्फेक्शन रिसर्च की प्रोफेसर हैं और उनके कंधों पर इस वायरस से निजात दिलाने की वैक्सीन बनाने की जिम्मेदारी है। प्रोफेसर एडो अपनी इस जिम्मेदारी को दिन-रात एक कर निभाने में जुटी हुई हैं। इस जिम्मेदारी को निभाने में उनके साथ उनकी टीम उनका सहयोग कर रही है। आपको लगता होगा कि एडो की तरह तो जर्मनी के दूसरे वैज्ञानिक और पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इस वैक्सीन की खोज में लगे हैं तो एडो में ऐसा क्या है कि जर्मनी के लोगों को उनसे सबसे अधिक उम्मीद है।
इस सवाल का जवाब हमारे पास है। दरअसल, उनसे ये उम्मीद इसलिए की जा रही है क्योंकि इससे पहले जब इबोला और मर्स जैसी घातक बीमारियों का प्रकोप बढ़ा था तब उन्होंने ही इनकी वैक्सीन विकसित की थी। इसलिए आज जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का कहर व्याप्त है तो जर्मनी की सरकार ने उन पर अपना पूरा भरोसा जताया है। वो इस संस्था की प्रमुख भी हैं। इंफेक्शियस डिजीज में उनकी विशेषज्ञता भी है। आपको बता दें कि उनके पिता भी एक डॉक्टर हैं। उन्होंने एचआईवी पॉजीटिव मरीज में टी-सेल्स पर भी शोध किया है। बीते सात वर्षों से एडो इस संस्था के साथ जुड़ी हुई हैं। फिलहाल वो कोरोना वायरस की काट के लिए वेक्टर बेस्ड वैक्सीन बनाने की कोशिशों में जुटी हैं।
जुंग इउन केओंग
केओंग दक्षिण कोरिया के सेंटर फॉर डिजीज एंड प्रिवेंशन की अध्यक्ष हैं। आपको बता दें कि जुंग को देश ही नहीं दुनियाभर की मीडिया ने मिलकर नेशनल हीरो बनाया है। एडो की ही तरह वो भी कोरोना संकट की शुरुआत से ही दिन रात इसकी वैक्सीन बनाने पर काम कर रही हैं। यॉनहॉप एजेंसी की मानें तो वह पिछले काफी दिनों से न तो अपने घर ही गई हैं और न ही ऑफिस से बाहर ही निकली हैं। एजेंसी के मुताबिक उन्होंने इस बीमारी की दवाई बनाने में खुद को पूरी तरह से झोंक रखा है।
आपको बता दें कि 20 जनवरी 2020 को दक्षिण कोरिया में कोरोना वायरस का पहला मामला उस वक्त सामने आया था जब एक महिला कुछ दिन पहले ही चीन के वुहान से आई थी। इसके बाद उसने यहां पर एक चर्च में प्रार्थना सभा में हिस्सा लिया था, जिसके बाद मामले अचानक बढ़ गए थे। लेकिन, प्रशासन ने समय चर्च के सभी सदस्यों का पहले टेस्ट करवाया और फिर जो कोई भी इसमें पॉजीटिव मिला उसका पूरा इलाज करवाया गया। केओंग की बदौलत ही दक्षिण कोरिया में टेस्टिंग का काम इतने बड़े पैमाने पर संभव हो पाया था। स्थानीय मीडिया की मानें तो देश में इस जानलेवा वायरस के संक्रमण के फैलाव को केओंग की सूझबूझ से ही कम किया जा सका।