मुंबई । जैसे –जैसे देश और दुनिया में कोरोना का संकट आगे बढ रहा है, वैसे-वैसे ही महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट भी पांव पसार रहा है, महाराष्ट्र में 2019 विधानसभा चुनाव के बाद से ही लगातार राजनीतिक उठा-पटक देखने को मिल रही है, सबसे पहले चुनावों में एक साथ गठबंधन में लड़ी बीजेपी-शिवसेना अलग हुई, फिर अचानक एक दिन बीजेपी ने एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली, लेकिन फडण्वीस सरकार विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया, फिर प्रदेश में शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बनी, उद्धव ठाकरे ने नये सीएम के रुप में शपथ लिया, तब लगा था कि महाराष्ट्र में सबकुछ ठीक हो गया है, लेकिन अब कोरोना संकट के साथ ही महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट खड़ा होता दिख रहा है।
क्या है महाराष्ट्र का राजनीतिक संकट
दरअसल संविधान की धारा 164(4) के मुताबिक कोई मंत्री या सीएम जो निरंतर 6 महीने तक राज्य के विधान मंडल का सदस्य नहीं है, तो उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा, ऐसे में साफ है कि उद्धव ठाकरे को 27 मई से पहले विधानसभा या विधानपरिषद किसी भी एक सदन का सदस्य होना जरुरी हो जाता है, लेकिन फिलहाल जो हालात है, उसमें महाराष्ट्र में विधान परिषद का चुनाव होता नहीं दिख रहा है, हालांकि प्रदेश में 9 विधान परिषद की सीटें 15 अप्रैल को खाली हो गई है, लेकिन चुनाव आयोग ने फिलहाल कोरोना की वजह से इन सीटों पर चुनाव अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर दिया है, जिससे महाराष्ट्र धीरे-धीरे राजनीतिक संकट की ओर बढता दिख रहा है।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर सीएम ठाकरे के पास इस राजनीतिक संकट को टालने के लिये क्या-क्या विकल्प हैं, पहला विकल्प तो ये है कि 3 मई को जब लॉकडाउन खत्म होगा, तो चुनाव आयोग विधान परिषद के चुनाव की अधिसूचना जारी करे, तथा 28 मई से पहले इन 9 सीटों पर चुनाव करा ले, क्योंकि विधान परिषद के चुनाव प्रक्रिया आमतौर पर 15 दिन में ही पूरी हो जाती है, दूसरा विकल्प ये है कि विधान परिषद की 12 मनोनीत सीटों में से खाली 2 सीटों में से एक पर राज्यपाल सीएम उद्धव ठाकरे को मनोनीत कर दें, जिसका प्रस्ताव राज्य कैबिनेट ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को भेज भी रखा है, तीसरा विकल्प ये है कि उद्धव ठाकरे सीएम पद से इस्तीफा देकर कुछ दिनों बाद एक बार फिर से शपथ ग्रहण करें।
विधान परिषद में भले ही 11 सीटें खाली हुई हो, लेकिन उद्धव ठाकरे के लिये राह उतनी भी आसान नहीं है, दरअसल विधान परिषद की जिन 9 सीटों पर चुनाव होना है, ये कब होंगे, इसका पूरा अधिकार इलेक्शन कमीशन के पास है, जिन दो सीटों पर मनोनयन होना है, इस पर कैबिनेट के फैसले को मानने या ना मानने का अधिकार राज्यपाल के पास है, इससे पहले भी गवर्नर ने 2 रिक्त सीटों के लिये अदिति नाडवले और शिवाजी मुर्जे के नाम की कैबिनेट की सिफारिश को खारिज कर दिया था, यहां एक बात और ध्यान देने वाली है कि इन दोनों सीटों का कार्यकाल 6 जून को समाप्त हो जाएगा, यानी अगर उद्धव ठाकरे इन दोनों में से किसी एक पर मनोनीत होते हैं, तो फिर उन्हें जल्द से जल्द किसी एक रास्ते से सदन में आना पड़ेगा, हालांकि उन्हें कुछ समय मिल जाएगा।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
मामले में विशेषज्ञों की राय भी अलग-अलग है, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए चुनाव आयोग को 28 मई से पहले ही विधान परिषद का चुनाव करा लेना चाहिये, इसके लिये अगर महाअघाड़ी सरकार चाहे तो कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है, लेकिन पद से इस्तीफा देकर दोबारा शपथ लेना ठीक नहीं है, इससे स्थिति और खराब होगी।