कॉन्ग्रेस के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड ने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ में असिस्टेंट प्रोफेसर विकास वाजपेयी द्वारा लिखा एक लेख प्रकाशित किया है। इसमें तबलीगी जमात को उसके सारे अपराधों से मुक्त करते हुए, राजनीतिक पार्टियों पर उन्हें बदनाम करने और अपनी नाकामियों का ठीकरा तबलीगी जमात के सिर फोड़ने का आरोप लगाया गया है।
सिर्फ यहीं न रुक कर लेखक हिन्दू समुदाय पर भी हमला करने से नहीं चूका, इस पूरे लेख के दौरान जहाँ वह अपनी हिन्दूफ़ोबिक मानसिकता का भौंडा प्रदर्शन करता नजर आता है वहीं इस्लामिक मिशनरी संगठन का बचाव करता दिखता है।
यह आर्टिकल वुहान वायरस संक्रमण के लिए पूरी तरह से सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए, दावा करता नजर आता है कि इसके लिए निजामुद्दीन मरकज में हुए तबलीगी जमात कार्यक्रम को दोषी ठहराना अन्याय होगा। यह कहने की जरूरत नहीं कि हालाँकि इस आर्टिकल की हेडलाइन “तबलीगी जमात पर पैदा किया गया उन्माद, उल्टा पड़ा” है लेकिन यह आर्टिकल कहीं भी इस हेडलाइन के पक्ष में सही तर्क प्रस्तुत करता नजर नहीं आता।
लेख में दावा किया गया- तबलीगी जमात पर दोषारोपण करना जितना आसान है कि उसने 13 मार्च से 15 मार्च के बीच मरकज में धार्मिक कार्यक्रम क्यों आयोजित किया, उतना ही आसान है यह भूल जाना कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने 13 मार्च को ऑन रिकॉर्ड यह कहा था कि देश में कोरोना वायरस न ही हेल्थ इमरजेंसी है न ही राष्ट्रीय इमरजेंसी। मरकज में शामिल होने वालों पर आरोप लगाना आसान है कि उन्होंने 15 मार्च के बाद जलसे को छोड़ा क्यों नहीं, और यह भूल जाना और भी आसान कि उस समय सरकार कितने अलग-अलग प्रकार की दुविधा भरी भाषा में बोल रही थी, कितनी अव्यवस्था का माहौल था।
लेखक ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार पर हमला करने के लिए बराबर मौके तलाशे लेकिन तबलीगी जमात की घृणात्मक कारगुजारियों पर चुप्पी साध गया।
इस पूरे लेख में लेखक ‘गोदी मीडिया’ और ‘गोबर पॉलिटिक्स’ कहते नहीं अघाता, हालाँकि, एक बार भी उसके मुँह से यह न फूटा कि ऑथॉरिटीज से बचने के लिए तबलीगी जमात के लोगों से जो कुछ भी बन सकता था, उन्होंने वो सब किया। यह बड़ा उलझाने वाला है कि किस प्रकार लेखक हिन्दू समुदाय पर भौंड़े कमेंट करते हुए भी इस्लामिक मिशनरी संगठन के सारे पापों को धोता हुआ नजर आता है। लेखक के कट्टर साम्प्रदायिक वर्ल्ड व्यू का उदाहरण इस बात से मिलता है कि वह इस पूरे मामले में हिंदू समुदाय को भी घसीट लाता है जिससे हिन्दू समुदाय का कोई संबंध ही नहीं। ऐसा लगता है कि पंथनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए मुस्लिम कट्टरपंथियों का बचाव करने के साथ-साथ हिन्दू समाज को जलील करना अनिवार्य शर्त है।
लेखक ने इस तथ्य को रेखांकित करना जरूरी नहीं समझा कि जमातियों ने स्वास्थ्य कर्मियों से बिलकुल भी सहयोग नहीं किया और कुछ जगहों पर वे महिला स्टॉफ तथा नर्सों के प्रति यौनिक हमलावर की भूमिका में देखे गए। वो नखरे दिखाते और इस कोरोना वायरस को फैलाने की मंशा से थूकते भी देखे गए। सरकारी दिशा-निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाते हुए एक बड़ी भारी संख्या में इकट्ठे होना इनके आपराधिक कारगुजारियों की फेहरिश्त में पहली कड़ी ही थी। जमातियों की क्रियाविधि तबसे बदतर ही होती गई है।
लेख दावा करता है कि वहाँ ‘बेहद कमी’ है PPE की, जबकि सरकार लगातार स्पष्टीकरण देती घूम रही कि अभी वर्तमान में किसी भी मेडिकल उपकरण आदि की कोई कमी नहीं है। वो लिखता है, “कैसे हमने सोच लिया कि तबलीगी जमात के लोग और माइग्रेंट खुद से सरकार के सामने आएंगे जबकि उन्हें अस्पताल में और बीमार हो जाने का भय हो? उन्हें सरकारी एजेंसियों ने जिस तरह से विलेन के रूप में पेश किया है इसके बाद तो दूसरों को भी इनकी चिंता होना शुरू हो गई है।”
यहाँ यह बताने की आवश्यकता है कि माइग्रेंट्स ने कभी भी खुद को सरकारी एजेंसियों से छुपाने की कोशिश नहीं की। सच तो यह है कि वे बड़ी मुश्किल में हैं इसलिए वो हर जगह खुद से सामने आए, जिनकी सहायता में राज्य और केंद्र सभी सरकारों ने वो सभी प्रकार की सहायता उन्हें मुहैया कराई जिसकी उन्हें जरूरत थी। इस प्रकार से जमातियों को माइग्रेंट्स के साथ एक खाने में रखना बदनीयती के अलावा कुछ नहीं समझा जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त जमाती सरकारी एजेंसियों से भी सहयोग नहीं कर रहे। जमातियों के कारनामों के लिए सरकार और मीडिया को दोषी ठहराना, जानबूझकर साजिशन इस्लामिक मिशनरी संगठन के साम्प्रदायिक विचारों से हमारा ध्यान हटाने भर की कोशिश है। निज़ामुद्दीन मरकज का मौलाना साद लगातार यह संदेश देता रहा कि वुहान कोरोना वायरस इस्लाम के खिलाफ साजिश है और सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत के समय शारीरिक निकटता की जरुरत पर बल देता रहा। जाहिल मौलाना सिखाता रहा कि यदि 70,000 देवदूत मिलकर मुस्लिमों को नहीं बचा सकते तो फिर डॉक्टर क्या बचाएंगे?
इस स्थिति में सरकार और मीडिया को दोषी ठहराना सफेद झूठ के सिवाय कुछ नहीं। लेखक यह भी दावा करता है- अगर आधिकारिक आँकड़ों पर भरोसा किया जाए तो कोरोना महामारी के चलते आई आपदा में भारत अभी उन देशों से बहुत पीछे है जो इस महामारी से बेहाल हैं जबकि भारत की आबादी कोरोना महामारी से बर्बाद बेहाल हुए देशों की अपेक्षा कहीं ज्यादा है, सिवाय चीन के अपवाद को छोड़कर। हालाँकि, किसी देश में मरीजों को दोषी नहीं ठहराया गया जैसे कि भारत में हो रहा। यहाँ लेखक बड़ी चालाकी से दक्षिण कोरिया का नाम भूल जाता है जिसने एक ईसाई ग्रुप को कोरोना वायरस संक्रमण के लिए दोषी ठहराया है।
तबलीगी जमात का टाइम बम पूरे देश में तब फटा जब मार्च के आखिरी हफ्ते में मरकज निजामुद्दीन और उसके आसपास के इलाकों से कोरोना वायरस के लक्षण वाले करीब 200 लोगों को दिल्ली के अलग अलग अस्पतालों में भर्ती करवाया गया। जिसके बाद मरकज के आसपास का इलाका दिल्ली पुलिस ने सील कर दिया। जल्दी ही पूरे देश से तबलीगी जमात से जुड़े हुए कोरोना संक्रमण के मरीज सामने आने लगे और देश इस जमात के कारण फैले संक्रमण से आतंकित होने लगा। लेकिन इसके बाद भी मीडिया का एक हिस्सा और राजनीतिक धड़ा कुतर्कों का सहारा लेते हुए इस्लामिक मिशनरी संगठन के पापों को धोने में लिप्त है। वहीं नेशनल हेराल्ड जैसों को लगता है कि आगे की राह हिन्दुओं के प्रति घृणा फैलाने से ही तय होने वाली हैं।