सोनभद्र। जिले के गर्भ में सोने की भारी खान का पता लगाने में सरकार को 40 साल से अधिक का समय लग गया। इतना ही नहीं गुलामी के दौर में अंग्रेजों ने भी सोने की खान का पता लगाने की कोशिश की थी लेकिन, वह कामयाब नहीं हो सके थे। आजादी से पहले ही सोना के लिए हुई खोज के चलते ही पहाड़ी का नाम सोन पहाड़ी पड़ गया था, तब से लेकर अब तक यहां के आदिवासी इसे सोन पहाड़ी के नाम से ही जानते हैं। उन्हें इस बात का तनिक भी इल्म नहीं था कि इन पहाड़ियों के गर्भ में तीन हजार टन सोना दबा पड़ा है।
सोनभद्र जिला पहले से ही खनिज संपदा के लिए पूरे देश में विख्यात था, लेकिन अब यहां पर सोने के अपार भंडार मिलने के बाद यह पूरी दुनिया की निगाह में आ गया है। यह काम एकाएक नहीं हुआ है, बल्कि इसकी खोज और पुख्ता करने में वैज्ञानिकों की टीम को 40 साल का लंबा वक्त लग गया। सरकारी अभिलेखों के अनुसार सोनभद्र में सबसे पहले सोने की खोज 1980 के दशक में हुआ था।
सीमांकन का कार्य हुआ पूरा
वरिष्ठ खान अधिकारी केके राय ने बताया कि शासन के निर्देश पर चिह्नित सभी खनन स्थलों का सीमांकन कार्य गुरुवार को पूरा कर लिया गया है। बताया कि अब वन विभाग की भूमि के नक्शे से सीमांकन का मिलान कराकर यह देखा जाएगा कि कहीं यह स्थल वन भूमि में तो नहीं आ रहा है। अगर यह खदानें वन भूमि के दायरे में आएंगी तो इसकी रिपोर्ट शासन को प्रेषित किया जाएगा, ताकि इस भूमि को धारा 20 के तहत अधिग्रहित किया जा सके। बताया कि खनन चालू होते ही प्रदेश सरकार को अरबों रुपये का राजस्व मिलेगा, जिसकी कोई सटीक गणना वर्तमान समय में संभव नहीं है।
जीएसआइ की दो हेलीकाप्टर जिले में
जिले में तीन लाख टन सोना मिलने के बाद उसके उत्खनन में तेजी लाने के लिए शासन स्तर पर प्रयास तेज हो गए हैं। भूगर्भ वैज्ञानिकों की टीम जिले में डेरा डालकर खनन से पूर्व हर एंगल पर काम करना शुरू कर दिया है। गुरुवार को जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की टीम के दो हेलीकाप्टर जिले में डेरा डाले हुए हैं। टीम द्वारा हेलीकाप्टर से मेडल लटका कर चिन्हित स्थान के आसपास भ्रमण कर रही है।