नई दिल्ली। रविवार शाम नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में नकाबपोश गुंडों की भीड़ ने ताबड़तोड़ लाठी, डंडे, रॉड चलाए जिससे परिसर में हिंसा के बीच अफरातफरी का माहौल रहा। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक शीतकालीन सेमेस्टर के लिए पंजीकरण कराने आए छात्रों को विरोध करने वाले प्रदर्शनकारी छात्रों के समूह ने उन्हें रजिस्ट्रशन करने से रोका तथा यहाँ कार्यरत कर्मचारियों को जबरन बाहर निकाल दिया था और इसी के साथ सर्वर को निष्क्रिय कर रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को बाधित किया था।
Masked naxals forcibly stopping the students from registering in winter semester. Mobile phone of person recording it was snatched as you can see #EmergencyinJNU pic.twitter.com/8RnWxsCQeq
— Naive (@vimal_thinks) January 5, 2020
दरअसल इस साल अक्टूबर से जेएनयू में कुछ छात्र हॉस्टल फीस में वृद्धि के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। जो कि आखिर में आंशिक रूप से वापस हो गया था। लेकिन इसके बाद भी छात्रों ने तभी से कक्षाओं को चलने नहीं दिया है। वहीं 1 जनवरी से विश्वविद्यालय ने शीतकालीन सेमेस्टर के लिए पंजीकरण करना शुरू कर दिया था। लेकिन ज़्यादातर वामपंथी छात्रों द्वारा लगातार हो रहे हिंसक प्रदर्शनों को देखकर लगता है कि आंदोलनकारी छात्र विश्वविद्यालय में सामान्य स्थिति में वापस आने से बहुत खुश नहीं थे। जिससे विश्वविद्यालय का माहौल जल्द ही हिंसक रूप ले लिया। जिसमें लेफ्ट और ABVP एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे।
हिंसा भड़कने के तुरंत बाद व्हाट्सएप पर हुई बातचीत के स्क्रीनशॉट्स का इस्तेमाल सोशल मीडिया पर गोलबंदी शुरू करने के लिए बखूबी किया गया। इस बातचीत के एक हिस्से को विवादित पत्रकार बरखा दत्त ने रविवार देर रात ट्वीट करके सोशल मीडिया पर साझा किया। जिसमें यूजर आनंद को ग्रुप के अन्य सदस्यों से पूछते हुए देखा गया कि जेएनयू के समर्थन में कुछ लोग मुख्य द्वार पर आ रहे हैं क्या हमें वहाँ कुछ करना है?
This message is from a WhatsApp group called ‘Unity Against Left’ – I’ve edited out the group because of privacy laws on showing numbers, but the operative message retained : “main gate par kuch karna hai” against those who “support JNU” #JNUViolence
यह मैसेज ‘यूनिटी अगेंस्ट लेफ्ट’ नामक ग्रुप का था। जिसका अर्थ था कि संदेश भेजने वाला लेफ्ट के खिलाफ था। इसलिए माना गया कि इस पर एबीवीपी और राष्ट्रीय सेवा संघ के छात्रों का हाथ है। वास्तव में जेएनयू में हिंसा भड़कने के बाद से कुछ छात्र यह प्रचार करने और शोर मचाने में व्यस्त रहे कि हिंसा करने वाले एबीवीपी के गुंडे थे।
यहाँ यह बताना बेहद जरूरी है कि दिसंबर 2019 के आखिरी सप्ताह में लिबरल, वामपंथी-कॉन्ग्रेसी गुट ने सीएए के ख़िलाफ दंगाइयों को मास्क पहन कर पहचान छुपाने के तरीके सुझाए थे। ताकि पुलिस द्वारा उनकी सही और आसानी से पहचान न हो सके। यही कारण था कि रविवार की रात जेएनयू कैंपस के अंदर हिंसा में शामिल अधिकांश हथियार धारी गुंड़ों ने अपनी पहचान को छुपाने के लिए नकाब पहन कर खुद को ढक रखा था।
The Delhi police took videos of protests to run them through facial recognition software to identify protesters.
Cover you mouth and nose + eyes or forehead. You can use make up and face paint too. Look it up if you have time but there are some simple and cheap solutions.
‘Thequint’ ने बाकायदा इस पर पूरा मार्गदर्शन किया था दंगाईयों और हिंसा करने वालों का, जिसे आप उनके लेख में देख सकते हैं। यहाँ तक की फेसिअल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर से बचने के भी टिप्स दिए गए हैं।
वहीं बरखा दत्त ने अनजाने में ट्विटर पर जो मोबाइल नंबर साझा किया वह आनंद मंगनाले की थी। उस नंबर की जब जाँच पड़ताल की गई तो पता चला कि यह वही मोबाइल नंबर थी जिसे कॉन्ग्रेस ने क्राउडफण्डिंग के लिए इस्तेमाल किया था।
हालाँकि, इस पेज को बंद कर दिया गया। वैसे आपको बता दें कि आनंद मंगनाले ने पहले जेडीयू के प्रशांत किशोर के साथ काम किया था। वहीं उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनाव से पहले यानि कि वर्ष 2016 में पूर्व कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के लिए भी रणनीतिकार के रूप में काम किया था। हालाँकि, यह साफ़ नहीं हो सका कि राहुल गाँधी के इमेज मेकओवर के लिए मंगनाले टीम का हिस्सा रहा या नहीं।
व्हाट्सएप पर बातचीत के ऐसे और भी कई स्क्रीनशॉट सामने आए जहाँ आनंद ने ‘भारत माता की जय’ जैसै कोटेशन को अपने नाम के साथ जोड़ा था ताकि यह दिखाई दे कि वह दक्षिणपंथ का समर्थन करता है।
आनंद ने व्हाट्सएप ग्रुप ‘यूनिटी अगेंस्ट लेफ्ट के सदस्यों से पूछा था कि ‘गेट पर क्या किया जाना चाहिए क्योंकि मन में था कि कुछ किया जाना चाहिए’। जेएनयू हिंसा के बाद शुरुआत में ही कॉन्ग्रेस का लिंक सामने आने के बाद कॉन्ग्रेस ने जल्द ही आनंद से अपने को अलग करने की कोशिश की और अपने साथी को एक झटके में त्याग दिया और आनन-फानन में कॉन्ग्रेस द्वारा देर रात एक ट्वीट करके कहा गया कि यह संख्या एक निजी वेंडर की है जिसे उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए काम पर रखा था लेकिन बाद में उसे हटा दिया गया था।
The SM team of INC had hired the services of several private vendors to run the crowd funding campaign, for a limited period before Lok Sabha Elections after which it was discontinued. The number belonged to a vendor and has nothing to do with INC.
हालाँकि यह पहले ही हमने बताया था कि कॉन्ग्रेस ने आनंद के नंबर का इस्तेमाल क्राउडफंडिंग के लिए किया था। यहाँ तक कि आनंद अभी भी कॉन्ग्रेस और कॉन्ग्रेस के नेताओं के लिए क्राउडफंडिंग का ही एक हिस्सा हैं। यहाँ तक कि कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ के लिए धन की डिमांड करने वाला यह ट्वीट नवंबर वर्ष 2019 का है।
The new or rather the only star in @INCIndia Campaigns, who knows how to shut propoganda on TV debates, has taken a #Crowdfunding route for his #election.
If we are to build a real #Democracy which works for people, we have to keep the corporates out. https://www.ourdemocracy.in/Campaign/ProfGouravVallabh …
हालाँकि, जेएनयू हिंसा के समन्वय समूह में कॉन्ग्रेस के साथ आनंद के संबंध सामने आने के बाद आनंद ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से स्पष्टीकरण भी दिया। अपने बचाव में, आनंद ने दावा किया कि उसने और जानकारी जुटाने के लिए कई “दक्षिणपंथी ग्रुप में घुसपैठ” की है। वाह…। कॉन्ग्रेस के क्राउडफंडिंग के प्रचारक भी एसीपी प्रद्युम्न की दोहरी भूमिका में आ गया है।
आनंद ने दावा किया कि जब ग्रुप में थोड़ी शांति हुई तो उसने यह पूछकर उसने उन्हें भड़काने की कोशिश की कि मुख्य द्वार पर क्या होना है क्योंकि वह जानना चाहता था कि लोग कहाँ हैं और उनकी योजना क्या है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि मंगनाले न तो जेएनयू का छात्र है और न ही कोई जाँच अधिकारी।
उसके द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण यह बताता है कि ग्रुप वास्तव में एबीवीपी और दक्षिणपंथी छात्रों द्वारा कैंपस में होने वाली हिंसा रोकने के लिए बनाया गया था। हालाँकि ऐसा लगता नहीं है।
एक ट्विटर यूजर ‘Gujju_Er’ ने एक ही व्हाट्सएप ग्रुप के कई स्क्रीनशॉट्स को पोस्ट किया जिसमें अत्यधिक डरा देने वाले तथ्य सामने आए। दरअसल व्हाट्सएप में एक सुविधा है जहाँ कोई भी व्यक्ति एक लिंक भेजकर ग्रुप में शामिल होने के लिए सार्वजनिक तौर पर आमंत्रित कर सकता है। कुछ ऐसा ही दूसरे स्क्रीनशॉट में देखा गया कि आनंद ने शामिल होने के लिए आमंत्रित लिंक पर क्लिक करके व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल नहीं हुआ। लेकिन जब इस ग्रुप को बनाया गया था तो उसे ग्रुप के एडमिन द्वारा जोड़ा गया था।
So this Congress’ Campaigner @FightAnand is saying that he infiltrated ABVP’s group. But, there are screenshots from creating of the group till dissolving it
1. He was added by admin of group. Didn’t joined by invite link
2. Who all are having conversation in group?: Ubaid-Adil
https://platform.twitter.com/widgets.js
इसका मतलब है कि आनंद ने ‘दक्षिणपंथी गतिविधियों’ पर नज़र रखने के लिए ग्रुप में घुसपैठ नहीं की बल्कि उसे एक ऐसे ग्रुप का हिस्सा बनाया गया था। जिसे ‘लेफ्ट-विरोधी’ के रूप में पेश किया गया था। इसीलिए उन्होंने लेफ्ट-विरोधी संदेशों को हिंसा भड़काने के लिए पोस्ट किया था ताकि जब स्क्रीनशॉट चुनिंदा रूप से जारी किए जाएँ तो यह ‘राइट विंग’ और एबीवीपी के छात्रों द्वारा सुनियोजित हिंसा की तरह दिखाई दे।
गुज्जू_ईआर द्वारा साझा किए गए तीसरे स्क्रीनशॉट में, एक कॉन्ग्रेस का आनंद, उबैद और एक बुल्ला आदिल के बीच बातचीत देख सकते हैं, जो चर्चा कर रहे हैं कि मुख्य द्वार पर क्या किया जा सकता है जहाँ जेएनयू समर्थक आने वाले थे। अब “उबैद” और “बुल्ला आदिल” एबीवीपी के कार्यकर्ता तो हो नहीं सकते। इससे पहले कि उनके कॉन्ग्रेस कनेक्शन सामने आते आनंद जेएनयू परिसर के अंदर से ही लाइव अपडेट ट्वीट करते रहे। जबकि उस समय जेएनयू में हिंसा हो रही थी।
यदि वह छात्र नहीं है या फिर सुरक्षा एजेंसियों के साथ नहीं है, तो फिर कॉन्ग्रेस का क्राउडफंडिंग अभियान समन्वयक क्या था? जो हिंसा फैलने पर कैंपस में ‘अपनी गतिविधियों पर नजर रखने’ के लिए ‘दक्षिणपंथी व्हाट्सएप ग्रुपों’ में घुसपैठ भी कर रहा था? खासकर जब उनकी खुद की बातचीत हिंसा भड़काने जैसी हो रही हो। आनंद आगे टी पॉइंट के बारे में कहता है कि जहाँ छात्र सुरक्षित महसूस करने के लिए एकत्र हुए थे। अब यह ‘टी पॉइंट’ कहीं और ही दिखाई देता है।
जेएनयू के छात्र, द वायर और द क्विंट के स्तंभकार ने फेसबुक पर कहा था कि लगभग 8 बजे उसने और उसके सहयोगियों ने हेलमेट पहना और गुंडों का पता लगाने के लिए हॉस्टल के पास घूमने लगे। उसका कहना है कि मुख्य गेट के पास पुलिस का नियंत्रण था। पुलिस छात्रों को हॉस्टल में वापस जाने के लिए कहती है इस बात को इमाम ने अपनी पोस्ट में लिखा है। इसलिए ध्यान में आता है कि इमाम और मंगनाले लगभग एक ही समय पर साबरमती हॉस्टल के टी-पॉइंट पर थे।
शर्जील इमाम वही व्यक्ति है जो जेएनयू में संविधान को जलाना चाहता था और राम जन्मभूमि के फैसले के बाद कैंपस में ‘संविधान जलाने का समारोह‘ करना चाहता था। वह नई दिल्ली के शाहीन बाग में सड़क को जाम करने वाले लोगों में से भी एक था। यहीं सीएए के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने धरना दिया था। इमाम ने शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शनों को ‘हांगकांग शैली’ में आयोजित किया था। दरअसल हांगकांग के प्रदर्शनकारी हांगकांग सरकार द्वारा भगोड़े अपराधियों के संशोधन बिल के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। यहाँ भी प्रदर्शनकारियों ने बड़े पैमाने पर मुखौटे, हेलमेट का उपयोग खुद को आंसू गैस के गोलों से और साथ ही अपने चेहरे को छिपाने के लिए किया था।
JNU हिंसा में शामिल गुंडों ने भी क्विंट के बताए रास्ते पर चलते हुए वैसे ही मास्क पहना है।
जेएनयू हिंसा में कॉन्ग्रेस कैसे शामिल है? इस पर एक नज़र डालें तो कॉन्ग्रेस की छात्र शाखा, एनएसयूआई पहले से ही सीएए विरोधी प्रदर्शनों को आयोजित करने में शामिल थी जो कि बाद में हिंसक हो गई थी। व्हाट्सएप ग्रुप का नाम ‘यूनिटी अगेंस्ट लेफ्ट’ रखा जाता है। और बातचीत में शामिल लोग कॉन्ग्रेस से जुड़े हैं। इस बात का अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं कि क्या “उबैद” और “बुल्ला आदिल” कभी एबीवीपी ग्रुप का हिस्सा हो सकते हैं।
यदि ये फर्जी ग्रुप हैं जो आपस की बातचीत के स्क्रीनशॉट को साझा करने के लिए बनाए गए हैं, जो कि जेएनयू हिंसा को अंजाम देने की वास्तविक बातचीत का दिखावा तो खुद करते हैं और दोष ABVP पर डालते हैं। निश्चित रूप से इस हिंसा से एबीवीपी को तो कोई फायदा नहीं है। किसको है ये आप सभी को पता है? कौन है जो देश में अराजकता, हिंसा और दंगे की स्थिति पैदा करना चाहता है? अब देखना यह होगा कि भारत में अराजकता पैदा करने के लिए कॉन्ग्रेस और वामपंथियों का यह इकोसिस्टम कितनी दूर तक जाएगा?