नागरिकता बिल-2019:- देशहित, पूर्वोत्तर के मूलनिवासियों के हित व पड़ोसी मुस्लिम देशों के प्रताड़ित गैर मुस्लिमों के हित के साथ शरणागत मुस्लिमों का भी रखता है पूरा ख्याल। घुसपैठियों के लिये होगी आफत
राहुल कुमार गुप्त
खुद को राम के अनुयायी कहने वालों के पास राम के ही नाम से दो बार पूर्ण बहुमत के साथ देश की बागडोर हाथ में आयी। लेकिन साथ में दुविधाएं भी पग-पग में परीक्षा लेने के लिये खड़ी रहीं और खड़ी हैं। जब दो महानतम विशेषणों से समान प्रेम व अटूट श्रद्धा होती है और दोनों किसी एक विषय पर विरोधाभास उत्पन्न करते हों और तब किसी एक को ही चुनना हो, यह दौर ज़िंदगी का सबसे कठिन दौर होता है।
इसी दौर से हर बार दो-चार होना पड़ रहा है इस हिंदूवादी का ठप्पा लगी सरकार को। भारत में दल तो हो सकते हैं किसी विशेष धर्म या जाति को लेकर, लेकिन भारत की सत्ता संभालते ही वो दल धर्मनिरपेक्ष स्वतः हो जाते हैं। यह भारतीय संविधान की पवित्रता है कि इसे अंगीकार करते ही सभी सरकारें धर्मनिरपेक्ष हो जाती हैं उन्हें सभी के लिये समान अवसर और समानता का तथा संविधान में उल्लिखित बातों का अक्षरशः पालन करना अनिवार्य हो जाता है। नागरिकता बिल संशोधन -2019 को लोकसभा में पेश करने व पास करा लेने के बीच तमाम विरोधी व विपक्ष उस पर हिंदूवादी व हिन्दू राष्ट्र की तरफ बढ़ता कदम बता कर धार्मिक उन्माद भड़काने का कार्य कर रहे हैं। मोदी-2 सरकार दुविधा की उस खाई से निकलकर इस निर्णय को स्वीकृत कराने के लिये आगे बढ़ी है जो किसी अन्य के लिये संभव नहीं था। यह सरकार हिंदूवादी सरकार तो तब होती जब हिंदुओं के आराध्य राम के आदर्शों को आत्मसात करती। किन्तु जिन्हें 70 सालों से राम से कोई इत्तेफाक नहीं वो आज राम के आदर्शों की बात करने लगे हैं। यह भी अपने आप में रोचक हैं।
संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने सुंदरकांड में विभीषण के शरणागत होने को लेकर एक चौपाई लिखी है।
राम जी ने शरणागत का आशय बहुत ही खूब समझाया है।
“सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि॥”
भावार्थ:-(श्री रामजी कहते हैं-) जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आए हुए का त्याग कर देते हैं, वे पामर (क्षुद्र) हैं, पापमय हैं, उन्हें देखने में भी हानि है (पाप लगता है)॥
देश के संसाधनों और गंभीरतम शरणागतों को देखते हुए यहाँ मोदी-2 सरकार को राम जी के आदर्शों से थोड़ा समझौता करना पड़ रहा है। लेकिन इसका तात्पर्य ये कतई नहीं कि वो राम के खिलाफ हैं वो राष्ट्रहित को आगे लेकर राम के आदर्शों पर भी खरे उतरेंगे लेकिन धर्म और ईश्वर बाद में पहले राष्ट्र! ऐसी भावना रखने वाले धर्म में बँटवारा कैसे कर सकते हैं। यह तो कमजोर पड़ी विपक्ष है जो कुछ न होने पर हरचीज को धर्म से जोड़ दो कि थ्योरी पर चल रही है। इस बिल से पूर्वोत्तर के मूलनिवासियों का अस्तित्व बचा रहेगा। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के प्रताड़ित गैर मुस्लिमों के लिये एक नया सबेरा लेकर आया है। विपक्ष म्यांमार के रोहंगिया मुस्लिमों के लिये भी इस बिल में नागरिकता देने की मांग कर रहा है। सरकार देश के संसाधनों को ध्यान में रखकर पहले उन शरणार्थियों को तवज्जो दे रहा है जिन्हें अन्य देशों में वाजिब और ससम्मान जगह न मिले। मुस्लिम राष्ट्रों में मुस्लिम इस्लाम के कानून पर आराम से इज्जत के साथ जीवन निर्वाह कर सकता है। क्योंकि बचपन से ही इस्लामिक कानून की जानकारी व उस पर विश्वास अमल हो जाता है। समस्या तो पड़ोसी देशों के उन गैर मुस्लिमों के साथ है जो पशुओं से भी बदतर जीवन जीने को विवश हैं। फिर सरकार घुसपैठियों पर कार्रवाई कर रही है न कि शरणागतों पर, मुस्लिम शरणागतों को भी व्यापार और कारोबार का पूरा अधिकार है वो अपनी रोजी-रोटी इज्जत के साथ यहाँ भी और अपने देशों में भी कमा सकते हैं। जो विरोध आज देश में इस नागरिकता बिल के खिलाफ हो रहे हैं काश् ये बड़ी-बड़ी और ऊँची हस्तियाँ उन 67 सालों से पीड़ित शरणार्थियों की भी आवाज बनते तो आज पड़ोसी मुस्लिम देशों में गैर मुस्लिमों की हालत इतनी दयनीय न होती। आप न्याय को किनारे कर धर्म को आगे कर सरकार को बदनाम करने की कोशिश तो कर सकते हो किन्तु भारतीय संविधान भारत के लोगों के लिये है।
मूल अधिकार भारतियों को प्रदत्त हैं न कि विदेशियों व शरणागतों को। शरणागतों को नागरिकता देने के बाद ही मूल अधिकारों व सभी प्रकार के अधिकार उन्हें स्वतः मिल जाते हैं।
आजादी के बाद लगभग एक दशक ही बाहर रहने वाली सरकार आज विपक्ष में रहकर अपनी कामचोरी और गलतियाँ अभी हाल ही में बनी सरकार पर मढ़ रही है, राज्यसभा में बहस चालू है कांग्रेस के आनंद शर्मा ने शरणार्थियों के लिये उचित कैंप नहीं बना पाई का भी आरोप सरकार पर लगाया। पर उन्हें 67 साल तक के अपने कार्य देखने चाहिये थे। विपक्ष देशहित और पूर्वोत्तर के हित के लिये बात करते तो बेहतर था वो नागरिकता के बेहतर बिल को धर्म का चश्मा लगाकर पुनः खाई बनाने में जुट गये।
लेकिन सरकार देश में धर्म नहीं बल्कि न्याय और संविधान को ही महत्व दे रही है। बहुत सी योजनाएं मुस्लिमों के हित के लिये शुरू हैं, संघ भी हजारों मुस्लिम छात्रों को अपने खर्चे पर पढ़ा रहा है। यहाँ हिन्दू-मुस्लिम तो है ही नहीं! हाँ! बीजेपी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति नहीं कर रही जो की अभी तक होती आयी है वो भी संविधान से भी परे रहकर भी। बस कुछ लोगों को इसीलिये लगता है कि बीजेपी मुस्लिम विरोधी है। एक पूर्वाग्रह बना लेने पर ही बीजेपी को हर मायने पे मुस्लिम विरोधी साबित करने का चलन सा बना लिया गया है। सन् 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बड़े कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि,” देश के संसाधनों में पहला हक मुस्लिमों का है।” जो आर्टिकल-14 के सरासर खिलाफ था किन्तु अफसोस यहाँ सियासत पहले और देश बाद में है उन तमाम लोगों के लिये जो द्वैत प्रकृति रखते हैं।
अगर न्याय और राष्ट्र के संसाधनों को ध्यान में न रखकर हिंदू धर्म से चलते तो शरणागतों को बिना विवेक के अपना लिया जाता भले देश में पर्याप्त संसाधन होते या न होते भले यहाँ के लोगों का हक मारा जाता। किन्तु संवैधानिक और न्यायिक प्रक्रिया के चलते राष्ट्र और मानवता को सर्वोपरि रखते हुए यह CAB Billबहुत सी दुविधाओं के बाद अपने असल रूप में आ पाया।