सर्वेश तिवारी श्रीमुख
मेरे गोपालगंज का उदाहरण देख लीजिए। मुझे लगता है कि आज से तीस साल पहले तक गोपालगंज शहर के लिए “बाढ़ का कहर” एक काल्पनिक बात रही होगी। क्योंकि मात्र तीस साल पहले तक गोपालगंज शहर के बीच से हो कर कुल छह बरसाती नदियाँ-नाले निकलते थे। इनमें जो सबसे पतला नाला था उसकी चौड़ाई भी तीस-चालीस फीट से कम नहीं होगी। यह गोपालगंज का प्राकृतिक ड्रेनेज सिस्टम था जो बरसात के जल को घण्टे भर में शहर के बाहर खेतों चँवर आदि में छोड़ आता था। ऐसा जबरदस्त सिस्टम, कि एक बार पूरी गंडक नदी ही घूम जाय गोपालगंज की ओर तब भी शहर नहीं डूबता।
आपको बताऊँ, तीस साल से कम आयु के लोगों में किसी ने उन छह में से चार नदियों का नाम तक नहीं सुना। आज उनका कोई चिन्ह तक नहीं। और शेष दो नदियाँ आज तीन तीन फीट चौड़ाई वाले नालों में बदल गयी हैं। आज मात्र चार दिनों की बरसात में मेरा शहर डूब गया है।
जानते हैं नदियाँ कहाँ गयीं? उसे शहर का मध्यम वर्ग खा गया, गरीब खा गए। सच कह रहा हूँ, नदियों की जमीन पर न किसी बड़े बिल्डर का घर बना है न किसी नेता अफसर का। सब आम लोग छेक के घर बनवाये हैं। ये वही आम लोग हैं जो आज बाढ़ के लिए कभी सरकार को तो कभी भगवान को दोषी ठहरा रहे हैं।
आपको आश्चर्य होगा, सरकारी भू मापन के नक्शे में सारे नदी-नाले जीवित हैं। इस लेख को लिखने के पहले मैंने शहर के सबसे सीनियर अमीन दिनेश्वर मिश्र जी से बात की थी। उन्होंने बताया कि नक्शे में सारी जमीन दर्ज है, जमीन पर सब गायब हो गया है।
हुजूर! यही हैं हम। यही है हमारा देश… आज केवल मेरा शहर नहीं डूबा, मेरा पूरा राज्य डूब गया है। छपरा, सिवान, पटना सब डूबे हुए हैं। शहर यदि नदियों के बाढ़ से डूब जाँय तो बात समझ में आती है, पर बरसात से डूबें तो बात समझ में नहीं आती। सबके डूबने के पीछे यही एकमात्र कारण है।
क्या लगता है, पटना छपरा में इस तरह के नाले नहीं होंगे? बरसाती नदियाँ नहीं होंगी? एक-दो नहीं पचासों होंगी। सब को लूट लिया गया। कुछ को बड़े लोगों ने लूटा, कुछ को छोटे लोगों ने… जिसको जितना मौका मिला, उसने उतना लूटा।
कौन है दोषी? क्या केवल प्रशासन? क्या केवल सरकार? प्रशासन का दोष इतना है कि जब हम आत्महत्या कर रहे थे तो उसने हाथ नहीं रोका, लेकिन अपने पेट में छुरा हर बार हमने स्वयं मारा है। नदियों-नालों को न नीतीश ने बन्द किया है, न लालू ने। नदियों को हमने बन्द किया है।
शहरों को डूबाने के लिए हम भले प्रकृति को दोष दें, पर शहर प्रकृति के कारण नहीं वहाँ के लोगों के कुकर्मों के कारण डूबते हैं। पहले हम डूबे हैं, उसके बाद शहर डूबा है।
मेरा राज्य हर वर्ष डूबेगा। न नीतीश रोक पाएंगे, न लालू… हाँ, कोई ऐसा पागल आये जो जबरदस्ती इन चोरों से अपनी सरकारी जमीन छीने, तो शायद स्थितियाँ कुछ सुधरे। यह देश अब अच्छे लोगों से नहीं, हिटलरों से सुधरेगा।
कहीं पढ़ा था, हमारे देश में अधिक से अधिक पचास करोड़ लोगों के जीने लायक संसाधन है। अभी हम लगभग डेढ़ सौ करोड़ हैं, अर्थात क्षमता से तीन गुने… हम यदि अब भी नहीं रुके तो डूबना तय ही है। कोई नहीं बचा सकता…